विधानसभा चुनाव में 70 फीसदी सीटों पर सिख चेहरे उतारेगी भाजपा, ‘सहयोगी’ की भी तलाश

Edited By Tania pathak,Updated: 07 Nov, 2020 10:05 AM

bjp will field sikh faces in 70 seats in assembly elections

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सहारे भाजपा पंजाब की चुनावी वैतरणी पार करने के मूड में है। इसी वजह से पार्टी किसी को मुख्यमंत्री पद का चेहरा घोषित करने की बजाय मोदी के नाम पर वोट मांगेगी....

चंडीगढ़ (हरिश्चंद्र): भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने 2022 का पंजाब विधानसभा चुनाव जीतने के लिए खुद कमान संभालने का निर्णय ले लिया है। प्रदेश इकाई के रोजमर्रा के कामकाज की समीक्षा के लिए प्रभारी के अलावा अन्य दिग्गज व अनुभवी नेता को जिम्मेदारी जल्द सौंपी जाएगी। बिहार से निपटने के बाद अब केंद्रीय नेतृत्व का पूरा फोकस पंजाब पर होगा। करीब सवा साल बाद राज्य में चुनाव होने हैं और पार्टी इस दौरान खुद को इतना मजबूत करना चाहती है कि पहली बार अपने दम पर सत्ता पर आसीन हो सके।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सहारे भाजपा पंजाब की चुनावी वैतरणी पार करने के मूड में है। इसी वजह से पार्टी किसी को मुख्यमंत्री पद का चेहरा घोषित करने की बजाय मोदी के नाम पर वोट मांगेगी। वैसे भी पंजाब में भाजपा के पास ऐसा नेता नहीं है जिसके भरोसे लहर बना कर चुनाव जीता जा सके। यह भी संभव है कि अन्य दल के दिग्गज को पार्टी में शामिल किया जाए जो अनुभवी होने के साथ-साथ बेदाग छवि रखता हो। अकाली दल द्वारा कृषि कानूनों के मसले पर राजग से अलग होने के बाद बदले राजनीतिक हालात में भाजपा को पंजाब की चुनावी जमीन उपजाऊ नजर आने लगी है। अकाली के झटके को भाजपा अब एक चुनौती और अवसर के रूप में ले रही है। पंजाब भाजपा लंबे समय से सूबे में अकाली दल से अलग होकर चुनाव लड़ने की गुहार हाईकमान से लगाती रही है मगर अब अकाली दल ने खुद ही मौका दे दिया है।

आगामी चुनाव में एक बार फिर आर.एस.एस. की भूमिका अहम रहेगी। इसके लिए संघ अंदरखाते अपनी गतिविधियां पहले से ही चलाए हुए था जबकि करीब दस दिन पहले संघ कार्यकर्ता सक्रिय रूप से भाजपा के लिए आधार बनाने में जुट गए हैं। सूत्रों की मानें तो भाजपा 2017 चुनाव भी अकेले लडऩे के लिए अंदरखाते तैयारी कर रही थी। मोहन भागवत समेत संघ के कई पदाधिकारियों ने मालवा पर पूरा फोकस रखा था और कई-कई दिन के लगातार कार्यक्रम मालवा को दिए थे। संघ के पंजाब के कद्दावर पदाधिकारी ब्रिगेडियर रिटायर्ड जगदीश गगनेजा की 2016 में हत्या कर दी गई थी। तब भाजपा को करारा झटका लगा था। उनकी हत्या के करीब चार माह बाद चुनाव को अकेले लडऩे से कदम पीछे खींच लिए थे। 

एक वरिष्ठ पार्टी नेता ने बताया कि 117 सदस्यीय विधानसभा के लिए चेहरों की तलाश संघ को सौंपी गई है। यह तय है कि करीब 70 फीसदी सिख चेहरों को कमल पर चुनाव लड़ाया जाए। सूत्रों की मानें तो हाल ही में नई दिल्ली में राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा ने पंजाब भाजपा के कोर ग्रुप के साथ बैठक दौरान पार्टी की चुनावी तैयारियों को लेकर सक्रियता बढ़ाने को कहा है।

दलित वोट बैंक के लिए बसपा पहली पसंद, ढींढसा पर भी नजरें
भाजपा फिलहाल चाहे कह रही हो कि पंजाब में अकेले सभी सीटों पर चुनाव लड़ेगी, मगर इतना तय है कि किसी सहयोगी के साथ गठबंधन या तालमेल जरूर करेगी। अलबत्ता इस बार बड़े भाई के रूप में रहना चाहेगी। राज्य के दलित वोट बैंक को लुभाने के लिए बसपा पहली पसंद हो सकती है। यू.पी. के हालिया राज्यसभा चुनाव से भी ऐसी झलक मिलती है कि भाजपा नेतृत्व और मायावती के रुख में अब काफी बदलाव आ गया है। बसपा से बात सिरे न चढ़ी तो अकाली दल (डैमोक्रेटिक) चुनावी सांझेदार बन सकता है। नवगठित अकाली दल के प्रधान सुखदेव सिंह ढींढसा को गत वर्ष ही केंद्र सरकार ने पद्म भूषण से नवाजा था। ढींढसा को तीसरे सबसे बड़े नागरिक सम्मान से भाजपा के साथ रिश्तों का सहज अंदाजा लगाया जा सकता है। न केवल प्रधानमंत्री बल्कि अन्य शीर्ष नेताओं के साथ संबंध बहुत गहरे हैं। पंजाब में अकाली दल (डैमोक्रेटिक) ने जिस तरह से सक्रियता बढ़ाई हुई है और कई वरिष्ठ व निर्विवाद नेताओं ने दामन थामा है, उससे भाजपा नेतृत्व का झुकाव उनकी ओर हो सकता है।

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