Edited By Vatika,Updated: 09 Apr, 2025 03:18 PM

सरकारी विभागों का पक्ष मजबूती से नहीं रखा जाता जिस कारण अपराधी सलाखों के पीछे जाने से बच जाते हैं।
जालंधर: पंजाब के जालंधर, लुधियाना , मंडी गोबिंदगढ़ जैसे शहरों में फर्जी बिलों का गोरखधंधा थमने का नाम नहीं ले रहा। यह अवैध कारोबार कई साल पहले वैट के दौर से शुरू हुआ था और आज जी.एस.टी. लागू होने के बावजूद बदस्तूर जारी है। हालात यह हैं कि 18 प्रतिशत जी.एस.टी. दर वाले बिल महज 4 प्रतिशत की कीमत पर खुले बाजार में बिक रहे हैं। जी.एस.टी. विभाग की निष्क्रियता, विभाग में मौजूद कुछ काली भेड़ों और कुछ अधिकारियों की कथित मिलीभगत के चलते यह धंधा दिन-ब-दिन बढ़ता जा रहा है, जिससे सरकार को करोडों अरबों रुपए का चूना लग रहा है।
खास बात यह है कि पिछले समय दौरान जालंधर में करोड़ों रुपए के फर्जी बिल काटने के कई मामले सामने आए, जिनमें से कईयों विरुद्ध कार्रवाई आज कागजों में ही चल रही है और लंबित है। विभाग दोषियों से ठोस वसूली नहीं कर पाया। माना जा रहा था कि जीएसटी लागू होने से इस गोरखधंधे पर अंकुश लगेगा, लेकिन इसके उलट यह कारोबार और फल-फूल गया। पुराने सूत्रधारों के साथ-साथ नए खिलाड़ी भी इस खेल में शामिल हो गए हैं। शहर में चर्चा है कि कई कारोबारियों की जी.एस.टी. अधिकारियों से सेटिंग है, जिसके चलते वे बेखौफ होकर अपना धंधा फैला रहे हैं।
सेल परचेज में एडजस्टमैंट की आड़ में चल रहा खेल
सूत्रों के अनुसार, फर्जी बिलों के सूत्रधारों ने ऐसे कारोबारियों से गठजोड़ कर रखा है, जिन्हें अपनी बैलेंस शीट में सेल-परचेज को एडजस्ट करने के लिए बिल चाहिए। ये गिरोह बिना कोई खरीदारी किए हर तरह के आइटम के बिल काट देते हैं। सबसे ज्यादा बिल लोहे, स्क्रैप और उससे जुड़े सामानों के काटे जाते हैं, लेकिन दर्जनों अन्य आइटमों के बिल भी आसानी से उपलब्ध हैं। कई उद्योगपति और निर्यातक इन बिलों का इस्तेमाल जी.एस.टी. रिफंड के लिए करते हैं, लेकिन विभाग की जांच में पकड़े जाने पर रिफंड रोक दिया जाता है। हैरानी की बात यह है कि जी.एस.टी. विभाग के उच्च अधिकारियों को इस खेल की पूरी जानकारी होने के बावजूद पिछले समय दौरान कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई। सूत्रों का दावा है कि जालंधर में फर्जी फर्मों और उनके मालिकों की पहचान अधिकारियों को हो चुकी है, फिर भी वे चुप्पी साधे हुए हैं। अगर सख्ती बरती जाए तो अकेले जालंधर से करोड़ों अरबों रुपए के फर्जी बिल पकड़े जा सकते हैं।
अधिकारियों की तैनाती भी बड़ा मुद्दा
जी.एस.टी. विभाग से जुड़े कुछ ईमानदार अधिकारियों का कहना है कि अक्सर कई शहरों में डी.ई.टी.सी. (अपील) का पद लंबे लंबे समय तक खाली पड़ा रहता है, जिस वजह से भी टैक्स विवाद और अपीलें सालों से लंबित रहती हैं। अधिकारियों का मानना है कि इस पोस्ट के सभी पद भरने से न केवल विवादों का निपटारा जल्द होगा, बल्कि फर्जी बिलों पर भी लगाम लगेगी और सरकार का राजस्व भी बढ़ेगा।
जनता और सरकार पर बोझ है यह धंधा
यह फर्जीवाड़ा न केवल सरकारी खजाने को नुकसान पहुंचा रहा है, बल्कि ईमानदार कारोबारियों के लिए भी मुश्किलें खड़ी कर रहा है। विशेषज्ञों का कहना है कि अगर विभाग सक्रिय होकर कड़े कदम उठाए, तो इस अवैध धंधे पर रोक लग सकती है। फिलहाल, जालंधर में फर्जी बिलों का यह खेल खुलेआम चल रहा है।इस खेल के पुराने खिलाड़ी लगातार अपना घेरा विशाल करते जा रहे हैं और इतने शातिर हैं कि हर साल नई नई फर्मों के नाम पर कारोबार करते रहते हैं। विभाग पास सूचनाएं पहुंचती भी हैं पर आजकल हालात यह हैं कि फाइनेंशियल क्राइम को तो जुर्म माना ही नहीं जाता। अदालतों में भी सरकारी विभागों का पक्ष मजबूती से नहीं रखा जाता जिस कारण अपराधी सलाखों के पीछे जाने से बच जाते हैं।