अपने ही डुबाएंगे अकाली दल की कश्ती!

Edited By swetha,Updated: 08 Sep, 2019 12:16 PM

akali dal

बड़े बादल साहिब यानि प्रकाश सिंह बादल अक्सर अपने बयानों में अकाली दल और भाजपा के नाखुन-मांस के रिश्ते की उदाहरण देते देखे जाते रहे हैं पर शायद जल्द ही उनका यह उदाहरण गलत साबित होता दिखेगा।

जालंधर: बड़े बादल साहिब यानि प्रकाश सिंह बादल अक्सर अपने बयानों में अकाली दल और भाजपा के नाखुन-मांस के रिश्ते की उदाहरण देते देखे जाते रहे हैं पर शायद जल्द ही उनका यह उदाहरण गलत साबित होता दिखेगा। राज्य में गठबंधन के जानकारों की माने तो आर.एस.एस. के दबाव में  पंजाब विधानसभा चुनाव 2022 में भाजपा पंजाब में अकाली दल का साथ छोड़कर अकेले चुनाव लड़ने का फैसला ले सकती है। इसका एक कारण यह भी है कि जब से इन दोनों पाॢटयों का गठबंधन हुआ है तब से पंजाब में अकाली दल ने भाजपा को बुरी तरह से दबाकर रखा है।

इसके चलते भाजपा और आर.एस.एस. पंजाब में चुनावी बिसात बिछाने में जुटी है और राज्य के कई बड़े नेताओं से संपर्क साधने में लगी है। दोआबा के कई भाजपा नेताओं ने इसी चक्कर में अपना सियासी करियर दांव पर लगा दिया है। उन्होंने अकाली दल से पंजाब में भाजपा के पूरे हक देने की मांग की थी। कई भाजपा नेताओं को अकाली दल के खिलाफ बोलने की कीमत भी चुकानी पड़ी। इस बारे में आर.एस.एस.  व भाजपा से जुड़े एक बड़े नेता का कहना है कि आज मौजूदा समय में जिस प्रकार से देशभर में मोदी और भाजपा की लहर है उसे देख कर पंजाब भाजपा और आर.एस.एस. की ओर से लगातार हाईकमान पर दबाव बनाया जा रहा है कि पंजाब में अब भाजपा अकेले अपने दम पर चुनाव लड़े। अगर इस दौर में भाजपा ने पंजाब में अपनी वैल्यू न बढ़ाई तो आने वाले समय में स्थिति और खराब होगी। 

उक्त सीनियर भाजपा नेता ने साफ कहा कि पिछले 30 सालों में पंजाब में भाजपाई अकाली दल की गुलामी करते आए हैं। जब वाजपेयी प्रधानमंत्री बने थे तब भी पंजाब से भाजपा और आर.एस.एस. की ओर से पंजाब में अकेले चुनाव लडऩे की आवाज उठी थी पर तब बड़े बादल के भाजपा हाईकमान के कुछ नेताओं के साथ नजदीकी रिश्तों के चलते ऐसा कुछ हो न सका पर अकाली दल ने उन सारे भाजपा नेताओं को चिन्हित कर उनका सियासी करियर ही खत्म कर दिया था।  जानकार बताते हैं कि पंजाब में कांग्रेस सरकार है और भाजपा हाईकमान तक यह रिपोर्ट पहुंची है कि पंजाब में अगर 2017 में शिअद-भाजपा गठबंधन की हार हुई थी तो उसके लिए मुख्य तौर पर जिम्मेदार अकाली दल ही था। 

आर.एस.एस. के अंदरूनी जानकार बताते हैं कि भाजपा हाईकमान पंजाब भाजपा और आर.एस.एस. की इस मांग से सहमत है, पर इस बात को लेकर पहल सीधे अलग चुनाव लडऩे के फैसले से नहीं की जाएगी। इसके लिए पहले 117 सीटों के 50-50 वितरण से बात शुरू होगी। अगर तो इस सीट वितरण पर कोई रजामंदी हो पाई तो ठीक वर्ना फिर अलग चुनाव का फैसला लिया जा सकता है। फिलहाल श्री गुरु नानक देव जी के 550वें प्रकाशोत्सव को ध्यान में रखते हुए इस साल के अंत तक ऐसा कुछ सामने नहीं आएगा, लेकिन वर्ष 2020 शुरू होने के साथ ही भाजपा अपने तेवर तीखे कर सकती है। 


जानकार बताते हैं कि भाजपा पंजाब के कई कांग्रेसी, अकाली, टकसाली अकाली, आम आदमी पार्टी, खैहरा गुट व लोक इंसाफ पार्टी आदि के नेताओं से संपर्क  साधने में लगी हुई है। इस सारे काम को भाजपा नेताओं द्वारा न करके आर.एस.एस. के नेताओं द्वारा अंजाम दिया जा रहा है ताकि किसी प्रकार का कोई शक भाजपा पर न हो। पंजाब में ऐसे चेहरों को तलाशा जा रहा है जो भाजपा की जीत का चेहरा बन सकें। वहीं अकाली दल के कुछ नेताओं से बात करने पर पता चला कि असल में यह सब दोनों पाॢटयां आपसी प्लानिंग से कर रही हैं, क्योंकि पंजाब में अकाली दल का ग्राफ तेजी से गिरा है। ऐसे में अपने ही अकाली दल की कश्ती को डुबाएंगे। ऐसे में भाजपा हाईकमान नहीं चाहती कि अकाली दल के चक्कर में एक बार फिर पंजाब हाथ से निकले, इसलिए दोनों पाॢटयां आपसी सहमति से अलग चुनाव लड़कर फिर गठबंधन सरकार बना सकती हैं।ऐसा करने पर सीटें भाजपा की ज्यादा आ गई तो अकाली दल की स्थिति विकट होगी, क्योंकि ज्यादा सीटें आने पर भाजपा पंजाब के मुख्यमंत्री का पद कभी अकाली दल को नहीं सौंपेगी। वहीं अकाली दल उप मुख्यमंत्री का पद लेकर सरकार में रहना पसंद नहीं करेगा। इसलिए देखना होगा कि आखिर भाजपा और अकाली दल आगामी विधानसभा चुनावों में क्या रणनीति लेकर मैदान में उतरते हैं।

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