1947 के बंटवारे के दौरान इस सिख ने खो दिए थे परिवार के 18 सदस्य, दास्तां सुन कांप उठेगी रूह (Watch video)

Edited By Vatika,Updated: 14 Aug, 2020 03:17 PM

देश भर में जहां आज़ादी दिवस धूम -धाम से मनाया जाता है वहीं इस दिवस पर एक परिवार ख़ून के आंसू बहाता है।

अमृतसर (सुमित खन्ना): देश भर में जहां आज़ादी दिवस धूम -धाम से मनाया जाता है वहीं इस दिवस पर एक परिवार ख़ून के आंसू बहाता है। दरअसल यह दुखभरी दास्तां अमृतसर के भारत -पाक सीमा के पास के गांव के रहने वाले ज्ञानी गुरदीप सिंह की है, जिसके परिवार के 18 सदस्यों का 1947 के बंटवारे दौरान बेरहमी से कत्ल कर दिया गया। 

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पत्रकार के साथ बातचीत करते गुरदीप सिंह ने बताया कि उनका पैतृक गांव छापा, जो लाहौर में स्थित था और ननिहाल गांव अटारी नज़दीक है। उन्होंने बताया कि बंटवारे के समय चाहे मेरी उम्र 4 साल थी लेकिन उसी समय की हर बात मुझे आज भी याद हैं। उन्होंने बताया कि मुझे मेरी माता ने बताया था कि जब बंटवारे का शोर पड़ना शुरू हुआ तो हमने बहुत ज़ोर लगाया कि यहां से चल जाऐं क्योंकि हमारा गांव पाकिस्तान में आ गया था। लेकिन हमारे बुज़ुर्गों का यहां सभी के साथ बहुत प्यार था, जिस कारण वह वहां से नहीं जाना चाहते थे फिर जब 17 अगस्त को ऐलान हुआ कि हमारा गांव पाकिस्तान में आ गया तो दंगे करने वालों ने इकठ्ठा होकर लूटमार करनी शुरू कर दी। इस दौरान मेरे दादा -दादी ने पिता को कहा कि बच्चे लेकर के साथ वाले गांव चले जाओ। उन्होंने जबरन हमें सभी को वहां भेज दिया। 

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इसके बाद जब रात हुई तो हमारे पिता को किसी ने बताया कि आपके माता -पिता का वहां कत्ल कर दिया गया है। इसके बाद मेरे पिता फिर से हमारे दादा -दादी को देखने उसी गांव में चले गए तो देखा कि घर को लूटकर आग लगा दी थी और सभी को मारकर गली में फैंका थी। गांववासियों ने मेरे पिता को बहुत समझाया कि आप यहां से चले जाओ तो वह वापिस आ गए। इसके बाद हमने उसी गांव में रात गुजारी और सुबह उठ कर अटारी सरहद की तरफ जाने लगे तो बलोच मिलट्री ने मेरे पिता के गले में गोली मार दी, जिस कारण उनकी वहीं मौत हो गई जबकि मेरी माता और मैं गंभीर रूप में घायल हो गए। इसके बाद जब हम आगे गए तो वहां फिर हमें घेर लिया गया उन्होंने फिर से हम सभी गोलियां मार दीं, जिस कारण सब मारे गए जबकि मेरी मां और मैं बच गए। वहां से गुज़र रहा सरदार मुझे और मेरी मां को अटारी अस्पताल छोड़ गया। जहां 4 महीने इलाज के बाद हमारी सेहत में सुधार हुआ। इसके बाद हमें 6 महीने बाद पता लगा कि मेरा छोटा भाई भी इस दौर में बच गया था जिसको हमारे रिश्तेदार उठा कर ले गए थे। उन्होंने बताया कि यह दुखांत केवल हमारे साथ ही नहीं बल्कि कई परिवारों के साथ हुआ था। 

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