Edited By Suraj Thakur,Updated: 07 Jan, 2019 05:34 PM

भारत के कुल जनसंख्या का 76.4% लोगों को केंद्र सरकार से आरक्षण प्राप्त है सिर्फ 23.6 प्रतिशत लोगों को आरक्षण प्राप्त नहीं है।
नेशनल डेस्क। (सूरज ठाकुर) आज सोमवार को मोदी सरकार ने सवर्णों को दस फीसदी आरक्षण देने का ऐलान किया। मोदी सरकार के इस फैसले को आगामी लोकसभा चुनाव से जोड़कर देखा जाना लाजमी है। चूंकि यह फैसला तो सरकार सत्ता में आते भी ले सकती थी, पर ऐसा नहीं हुआ। इस मौके पर आपको बताने जा रहे हैं कि भारत में आरक्षण का मुद्दा कोई नया नहीं है। जब अंग्रेज भारत पर काबिज थे, तभी आरक्षण का घुन भारत को लग गया था। देश में 1902 में आरक्षण की पहली आधिकारिक अधिसूचना जारी हुई थी। पढ़ें पूरी रिपोर्ट...

आजादी से पहले आरक्षण
हंटर कमिश्न व ब्रिटिश रूल...
1882 में एजुकेशन में भारतीयों की भागीदारी को सुनिश्चित करने के लिए हंटर कमिश्न का गठन किया गया था। महात्मा ज्योतिराब फुले ने शिक्षा से वंचित लोगों के बच्चों की शिक्षा में अनिवार्यता और उनके लिए नौकरियों में आरक्षण की मांग की थी। महात्मा ज्योतिराब फुले का जन्म 11 अप्रैल 1827 को पुणे में हुआ था। उनकी माता का नाम चिमणाबाई तथा पिता का नाम गोविन्दराव था। उन्होंने महाराष्ट्र में सर्वप्रथम महिला शिक्षा तथा अछूतोद्धार का काम आरंभ किया था।...
आरक्षण की पहली अधिसूचना...
1891 में केरला में त्रावणकोर रियासत में जब सिविल नौकरियों में बाहरी लोगों को तरजीह दी जाने लगी तो स्थानीय लोगों ने इसका जमकर विरोध किया था। इस दौरान सरकारी नौकरियों में आरक्षण की मांग हुई।1901-02 में कोल्हापुर रियासत के छत्रपति शाहूजी महाराज ने शिक्षा से वंचित तबकों के लिए मुफ्त शिक्षा का प्रावधान किया। इस दौरान छात्रों के लिए अनेक हॉस्टल भी खोले गए। 1902 में कोल्हापुर रियासत में पहली बार अधिसूचना जारी की गई। जिसमें कहा गया कि पिछड़े व वंचित समुदाय के लोगों को नौकरियों में 50 फीसदी आरक्षण दिया जाए। देश के इतिहास में वंचित व पिछड़े वर्ग के लिए यह पहला आधिकारिक आदेश माना जाता है। 1908 अग्रेजों ने भी प्रशासन में नौकरियों में कमजोर जाति के लोगों भागीदारी सुनिश्चित की थी।

आजादी के बाद...
1953 में कालेलकर आयोग गठन किया गया था, आयोग का मुख्य काम था कि वह सामाजिक एवं शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्ग की स्थिति का मूल्यांकन करें। OBC शब्द का जन्म भी इसी आयोग से हुआ था और ओबीसी से संबंधित सिफारिशों को सरकार ने अस्वीकार किया था। लेकिन अनुसूचित जनजाति एवं अनुसूचित जाति से संबंधित सभी सिफारिशों को सरकार ने स्वीकार किया था।

मंडल कमिश्न...
पिछड़े वर्गों को आरक्षण देने की पहल 1979 में पूर्व प्रधानमंत्री मोररजी देसाई के समय में हुई। आकलन के आधार पर सीटों में आरक्षण कोटे को निर्धारित करने के लिए मंडल कमीश्न का गठन किया गया। मंडल कमिश्न के पास अन्य पिछड़े वर्गों OBC का सही आंकड़ा नहीं था। कमीश्न ने 1930 के आंकड़ों के आधार पर 1257 जातियों को पिछड़ा घोषित कर दिया और इनकी आबादी 52 फीसदी तय कर दी।

1990 में मंडल कमिश्न...
1980 में कमीश्न ने अपनी रिपोर्ट सौंपते हुए पिछड़ी जातियों के कोटे को 22 फीसदी से 49.5 फीसदी करने की सिफारिश की। इसमें OBC के लिए 27 फीसदी का प्रावधान किया गया। इसके विरोध में जब सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई तो आरक्षण को जायज ठहराते हुए कोर्ट ने आदेश दिए कि आरक्षण का दायरा 50 फीसदी से अधिक नहीं होना चाहिए। 1990 में मंडल आयोग की सिफारिशों को तत्कालीन प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह ने सरकारी नौकरियों में लागू किया था।

संवैधानिक दायरा
संविधान के भाग तीन में समानता के अधिकार का उल्लेख है। अनुछेच्द 15 के मुताबिक किसी व्यक्ति के साथ जाति, प्रजाति, लिंग,धर्म या जन्म स्थान के नाम पर भेदभाव नहीं किया जाएगा। 15(4) के मुताबिक राज्य सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े, अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति के लिए वह विशेष प्रावधान कर सकता है।अनुछेच्द 16 में अवसरों की समानता पर प्रकाश डाला गया है। 16 (4) के मुताबिक यदि राज्य को लगता है कि सरकारी सेवाओं में पिछड़े वर्गों को पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं है तो वह उनके लिए पद आरिक्षित कर सकता है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 15 और 16 के अनुसार समाज के पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण मुहैया कराता है।

अभी यह है व्यव्स्था...
अनुसूचित जाति (दलित) - 22.5%
अनुसूचित जनजाति (आदिवासी) - 15%
ओबीसी - 27%
कुल प्रतिशत - 49.5%
सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के अनुसार अधिकतम आरक्षण की सीमा 50% है लेकिन कुछ राज्यों में यह सीमा 50 फ़ीसदी से ज्यादा है। आरक्षित वर्ग के व्यक्तियों को भारत सरकार के नौकरी एवं शिक्षण संस्थाओं में 49.5% तक का आरक्षण प्राप्त है। भारत के कुल जनसंख्या का 76.4% लोगों को केंद्र सरकार से आरक्षण प्राप्त है सिर्फ 23.6 प्रतिशत लोगों को आरक्षण प्राप्त नहीं है।
भारत की संसद...
भारत की संसद में 543 सीटों में से 84 (15.47%) अनुसूचित जाति / दलितों के लिए आरक्षित हैं और एसटी / जनजातियों के लिए 47 (8.66%) हैं।