Edited By Kamini,Updated: 18 Aug, 2025 06:43 PM

तीनों भाइयों ने अपनी कड़ी मेहनत और नई सोच से खेती की पारंपरिक परिभाषा ही बदल डाली है।
पंजाब डेस्क : पंजाब के 3 किसान भाइयों ने एक नई मिसाल बना डाली। तीनों भाइयों ने अपनी कड़ी मेहनत और नई सोच से खेती की पारंपरिक परिभाषा ही बदल डाली है। ये तीनों किसान भाई अबोहर के ढींगावाली गांव के रहने वाले हैं। तीनों भाई जयपाल सिंह सिहाग, जितेंद्रपाल सिंह सिहाग, सुरेंद्र पाल सिहाग ने 3 रंगों की (सफेद, हरा, व खाकी) रंग की नरमा और कपास उगा रहे हैं।
गौरतलब है कि तीनों भाई मिलकर 140 एकड़ पुश्तैनी जमीन में जैविक खेती करते हैं। यही नही ये तीनों भाई किसान ही नहीं बल्कि उद्यमी और पर्यावरण संरक्षक भी है। इनके प्रयासों से आज लगभग 300 महिलाओं को स्थायी रोजगार मिला हुआ है। ग्रामीण अर्थव्यवस्था और पर्यावरण संरक्षण को नया आयाम देने वाले किसान सुरेंद्र पाल सिहाग ने एक ऐसा ईको-सिस्टम तैयार किया है, जो आत्मनिर्भरता, जैविक खेती और महिलाओं के रोजगार का अनोखा संगम है।

सिहाग बताते हैं कि वर्ष 1996 में नरमे और कपास की फसल पूरी तरह बर्बाद हो जाने के बाद उन्होंने कई रासायनिक कीटनाशकों का प्रयोग किया, लेकिन सफलता हाथ नहीं लगी। इस घटना ने उन्हें सोचने पर मजबूर कर दिया कि रासायनिक खेती टिकाऊ नहीं है। बचपन से परिवार में बिना रसायन वाली सब्जियां खाने की परंपरा रही, जिसने उन्हें जैविक खेती अपनाने की प्रेरणा दी। आज वे 140 एकड़ जमीन पर करीब 20 तरह की फसलें उगा रहे हैं, जिनमें गेहूं, सरसों, चना, नरमा, धान और विभिन्न दालें शामिल हैं। इसके अलावा वे सब्जियां और 3 रंगों की कपास भी पैदा कर रहे हैं। सिहाग के पास देसी नस्ल की 150 गायें भी हैं, जिनके दूध, घी और मक्खन का इस्तेमाल उनका परिवार और नजदीकी परिचित करते हैं। बता दें कि देश में बहुत कम किसान होंगी, जिन्होंने अलग-अलग नरमे और कपास की खेती की हो।

जानकारी के मुताबिक, ये तीनों किसान भाई इन 3 रंगों की कपास से सीधे कपड़ा तैयार करवाते हैं, जिससे इन्हें कपड़ा भी रंगने की जरूरत नहीं पड़ती। इन किसानों ने बताया कि देश के सरकारी रिसर्च सेंटर रंगीन कपास के बीच उपबल्ध नहीं करवाते हैं। इसलिए इन्होंने हरे रंगी के बीज आस्ट्रेलिया से मंगवाए हैं, जोकि बहुत ही मुश्किल से मिले हैं। वहीं सरकार के पास जो बीज हैं वह बहुत मंहगे हैं। इन्हें सिर्फ बड़े कॉर्पोरेट घराने के लोग ही खरीद सकते हैं।
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