पंजाबी सूबा स्थापना दिवसः आजादी से पहले पंजाब के टुकड़े करने की मांग

Edited By somnath,Updated: 31 Oct, 2018 04:42 PM

punjab foundation day

1 नवंबर को पंजाबी सूबा और हरियाणा स्थापना दिवस है। पंजाबी सूबे के गठन और हरियाणा स्थापना दिवस को जानने से पहले इसके इतिहास को जानना जरूरी है। इतिहास के झरोखे से देखें तो विभाजन का दंश झेलने से पहले ही पंजाब को टुकड़ों में बांटने की मांग उठनी शुरू हो...

जालंधर(सोमनाथ कैंथ): 1 नवंबर को पंजाबी सूबा और हरियाणा स्थापना दिवस है। पंजाबी सूबे के गठन और हरियाणा स्थापना दिवस को जानने से पहले इसके इतिहास को जानना जरूरी है। इतिहास के झरोखे से देखें तो विभाजन का दंश झेलने से पहले ही पंजाब को टुकड़ों में बांटने की मांग उठनी शुरू हो गई थी। पंजाबी केसरी की तरफ से जुटाए गए तथ्यों के आधार पर आपको अवगत करवाया जा रहा है कि कैसे पंजाब को देश से अलग करने और टुकड़ों में बांटने की सियासत हुई। 
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पहला तथ्य
सन् 1930 में शायर मुहम्मद इक़बाल ने भारत के उत्तर-पश्चिमी चार प्रांतों सिंध, बलूचिस्तान, पंजाब तथा अफ़गान (सूबा-ए-सरहद)- को मिलाकर एक अलग राष्ट्र का मांग की थी। 1947 में देश को मिली आजादी के साथ ही पंजाब के भी दो टुकड़े हो गए। एक पूर्वी पंजाब और दूसरा पश्चिमी पंजाब। पश्चिमी पंजाब आज पाकिस्तान में है और यह पाकिस्तान का सबसे बड़ा प्रांत है। आज भी पाकिस्तान के 48% लोग पंजाबी भाषा समझते और बोलते हैं।

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दूसरा तथ्य
हरियाणा को अलग राज्य बनाने की मांग भी पाकिस्तान में ही उठी थी। सबसे पहले यह मांग सन् 1923 में स्वामी सत्यानंद ने लाहौर (पाकिस्तान) में की थी। इसके बाद दीनबन्धु सर छोटूराम की अध्यक्षता में मेरठ में आल इंडिया स्टूडैंटस  कांफ्रेस में हरियाणा को अलग राज्य बनाने की मांग उठी। सन् 1926 में दिल्ली में आल इंडिया मुस्लिम लीग की कांफ्रेंस में प्रस्ताव पारित किया गया कि पंजाब में हिंदी भाषीय क्षेत्र एवं अंबाला मंडल को पंजाब से हटाकर दिल्ली के साथ जोड़ देना चाहिए। हरियाणा क्षेत्र के अनेक नेताओं जैसे देशबंधु गुप्ता, पंडित नेकीराम शर्मा और पंडित श्रीराम शर्मा ने अलग हरियाणा राज्य के गठन के लिए प्रयास किए।

तीसरा तथ्य
सन् 1950 में भाषाई समूहों द्वारा राज्यत्व की मांग के परिणामस्वरूप दिसम्बर 1958 में राज्य पुनर्गठन आयोग बना। उस समय वर्तमान पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश के कुछ क्षेत्र तथा चंडीगढ़ पंजाब प्रदेश के हिस्से थे । सिखों का विशाल बहुमत इसी हिन्दु बहुल पंजाब में रहता था। उस समय शिरोमणि अकाली दल पंजाब में सक्रिय था। और अकाली द्वारा पंजाबी सूबे (प्रांत) बनाने की मांग की गई। सिख नेता फतेह सिंह ने भाषा को आधार बनाकर एक अलग राज्य की मांग की, ताकि सिखों की पहचान को संरक्षित किया जा सके। 

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अकाली दल के आन्दोलन
अकाली दल के नेताओं ने पंजाब और् पैप्सू के विलय के बाद भी एक "पंजाबी सूबे" के निर्माण के लिए अपने आंदोलन को जारी रखा। अकाल तख्त ने चुनाव प्रचार करने के लिए सिखों के आयोजन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। पंजाबी सूबा आंदोलन के दौरान, 1955 में 12000 और 1960-61 में 26000 सिखों ने अपनी गिरफ्तारियां दीं।
सितम्बर 1966 में इंदिरा गांधी की सरकार ने सिखों की मांग को स्वीकार करते हुए पंजाब को पंजाब पुनर्गठन अधिनियम के अनुसार तीन भागों में बांट दिया।

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  • पंजाब का दक्षिण भाग जहां हरियाणवी बोली जाती थी उसे अलग हरियाणा प्रदेश बना दिया गया। 
  • जहां पहाड़ी बोली जाती थी, उस भाग को हिमाचल प्रदेश में मिला दिया गया। शेष क्षेत्रों, चंडीगढ़ को छोड़कर, एक नए पंजाबी बहुल राज्य का गठन किया गया। 1966 तक, पंजाब 68.7 प्रतिशत हिन्दुओं के साथ एक हिंदू बहुमत राज्य था लेकिन भाषाई विभाजन के दौरान, हिंदू बहुल जिलों राज्य से हटा दिया गया। चंडीगढ़, जिसे विभाजन के बाद राजधानी के रूप में प्रतिस्थापित किया गया, पर पंजाब और हरियाणा, दोनों ने अधिकार जताया। परिणामनुसार चंडीगढ़ को केंद्र शासित प्रदेश घोषित कर दिया गया जोकि दोनों राज्यों के लिये राजधानी की तरह होगा। आज भी कई सिख संगठनों का यह मानना है कि पंजाब का त्रि-विभाजन सही रूप से नहीं किया गया। क्योंकि विभाजन के बाद कई पंजाबी भाषी जिले हरियाणा में चले गये।
     
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