मनजिन्दर सिरसा के भाजपा में शामिल होने पर पंजाब की राजनीति में लग सकती है बड़ी ‘सेंध ’

Edited By Subhash Kapoor,Updated: 03 Dec, 2021 03:39 PM

manjinder sirsa joining bjp may make a big  dent  in punjab politics

पंजाब विधानसभा चुनाव से ठीक पहले शिरोमणि अकाली दल (बादल) के बड़े नेता और राष्ट्रीय जनरल सचिव मनजिन्दर सिंह सिरसा के भारतीय जनता पार्टी में जाने से कयास लगाए जा रहे हैं कि पंजाब के कई बड़े सिख नेता भाजपा में शामिल हो सकते हैं।

जालंधर (सुनील पांडे): पंजाब विधानसभा चुनाव से ठीक पहले शिरोमणि अकाली दल (बादल) के बड़े नेता और राष्ट्रीय जनरल सचिव मनजिन्दर सिंह सिरसा के भारतीय जनता पार्टी में जाने से कयास लगाए जा रहे हैं कि पंजाब के कई बड़े सिख नेता भाजपा में शामिल हो सकते हैं। शिरोमणि अकाली दल के कई बड़े नेता, आधी दर्जन से अधिक विधायक भी भगवा पार्टी में जाने के इच्छुक बताए जा रहे हैं। राजनीतिक हलकों में चल रही चर्चाओं पर यकीन करें तो अकाली दल के पूर्व सांसद प्रेम सिंह चन्दूमाजरा का नाम भी चल रहा है। इसके साथ ही आम आदमी पार्टी के साथ नाराज चल रहे सांसद भगवंत मान को भी अपनी तरफ खींचने की कोशिश भाजपा कर रही है।

भारतीय जनता पार्टी ने मनजिन्दर सिरसा को अपनी पार्टी में शामिल कर एक तरह मिशन पंजाब का श्रीगणेश कर दिया है। भाजपा के सामने सबसे बड़ी चुनौती शिरोमणि अकाली दल और आम आदमी पार्टी को कमजोर दिखाने की है। इस बात का अंदाजा सुखबीर सिंह बादल को भी हो गया है। यही कारण है कि सिरसा के जाने पर प्रतिक्रिया देते हुए उन्होंने दावा किया कि सिरसा जेल जाने का दबाव नहीं बर्दाश्त कर सके और भाजपा में शामिल हो गए। सुखबीर एक तरह पार्टी कैडर को यह संदेश देना चाहते हैं कि सिरसा अपने खिलाफ चल रहे मामलों के कारण परेशान होकर पार्टी छोड़ गए हैं परन्तु अकाली दल जुझारू नेताओं की पार्टी है और वह भाजपा के इस दबाव को बर्दाश्त नहीं करेंगे।

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श्री अकाल तख्त साहिब के जत्थेदार ज्ञानी हरप्रीत सिंह ने भी दावा किया है कि सिरसा ने उनको फोन किया था और लग रहा था कि वह अपने विरुद्ध चल रहे मामलों को लेकर परेशान थे और इसलिए जेल और भाजपा में से उन्होंने भाजपा को चुन लिया। मनजिन्दर सिंह सिरसा के भाजपा में शामिल होने साथ ही अब शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक समिति (एस.जी.पी.सी.) कोटे की एक सीट से अकाली दल की तरफ से किसी अन्य नेता को मौका दिए जाने की आशा है। मौजूदा समय में चल रहे नामों में तख़्त श्री पटना साहिब समिति के प्रधान अवतार सिंह हित और पंजाबी यूनिवर्सिटी के पूर्व उप कुलपति डा. जसपाल सिंह का नाम सामने आ रहा है। हालांकि डा. जसपाल सिंह इस जिम्मेदारी को संभालने से पहले ही न कर चुके हैं। इस सूरत में किसी अन्य चेहरो पर भी दाव लग सकता है। इसके लिए एक नाम जसविन्दर सिंह जोली का भी चर्चा में है, जो अल्पसंख्यक मामलों के चेयरमैन हैं और पार्टी और समिति को कई बार मुसीबतों से बचाने में कामयाब रहे हैं। अब देखना यह होगा कि सुखबीर बादल किसको मौका देते हैं।

मनजिन्दर सिंह सिरसा ने बेशक दिल्ली सिक्ख गुरुद्वारा समिति को अलविदा कह दिया है, परन्तु माना जा रहा है कि नई समिति के गठन में उनकी भूमिका को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। शिरोमणि अकाली दल के पास मौजूदा समय में 29 मैंबर हैं, माना जाता है कि इनमें से आधे से अधिक सिरसा के साथ हैं। ऐसे में अकाली दल की तरफ से नई समिति का नया प्रधान चुनना चुनौती भरा होगा। मनजिन्दर सिंह सिरसा बेशक ही भाजपा में चले गए हों परन्तु रिमोट कंट्रोल के साथ वह दिल्ली समिति को अपने हाथ में रखना चाहेंगे। साथ ही कोशिश करेंगे कि किसी तरह उनका कोई समर्थक समिति में दबदबा बना कर रखे।

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इस बात का एहसास अकाली दल के दिल्ली प्रदेश प्रधान हरमीत सिंह कालका को भी है। यही कारण है कि उन्होंने सिरसा के जाने पर कोई तीखी प्रतिक्रिया नहीं दी। बहुत ही सूझबूझ के साथ सिरसा का बचाव किया और विरोध में एक शब्द भी नहीं बोला। न ही भाजपा नेताओं पर ही कोई टिप्पणी की। इसलिए माना जा रहा है कि सिरसा की सरप्रस्ती आने वाली नई समिति पर रहेगी, बशर्ते मैंबर टूट कर विरोधी पार्टियों का हिस्सा न बन जाएं।

दिल्ली में नगर निगम चुनावों से ठीक पहले भारतीय जनता पार्टी को सिख चेहरे के रूप में मनजिन्दर सिंह सिरसा का मिलना बड़ी सफलता मानी जा रही है। उधर दूसरी तरफ यह भी माना जा रहा है कि भाजपा सिरसा को पंजाब भेज कर विधानसभा चुनावों में नया दाव खेल सकती है। सिरसा पहले से ही पंजाब के चुनाव में हिस्सा लेते रहे हैं और अकाली धढ़ों में उनकी अच्छी पकड़ भी रही है। सिरसा पंथक राजनीति में अच्छी पकड़ रखते हैं और देश -दुनिया में पंथक मुद्दों को लेकर लड़ते रहे हैं, वह जाट सिख भी हैं, जिनकी भाजपा को जरूरत भी महसूस हो रही थी।

दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक समिति में अध्यक्ष के तौर पर सिरसा हर समय हैरान करने वाले फ़ैसले लेने के लिए माने जाते रहे हैं। चाहे गुरुद्वारा श्री रकाबगंज साहिब काम्पलैक्स में कोविड केयर सैंटर बनाना हो या कश्मीर की सिख लड़की को दिल्ली ला कर नौकरी देनी, उनके इन फ़ैसलों से विरोधी भी हैरान थे। विरोधियों ने सिरसा को हटाने के लिए केंद्र सरकार के पास कई बार चुगली भी की परन्तु कोई फ़ायदा नहीं हुआ। अब सिरसा खुद केंद्र की सत्ताधारी पार्टी का हिस्सा बन चुके हैं। अचानक हुए राजनीतिक बदलाव से विरोधी नेता हैरान-परेशान हैं।

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