Edited By Kamini,Updated: 02 Jul, 2025 07:26 PM
44 केंद्रीय और 100 से अधिक राज्य श्रम कानूनों को मिलाकर इन 4 सरल संहिताओं में समाहित किया गया है, जिससे नियम सरल बन गए हैं और श्रमिकों की भलाई, सम्मान और न्याय को प्राथमिकता दी गई है।
पंजाब डेस्क : भारत के श्रम क्षेत्र में 4 श्रम संहिताओं वेतन संहिता 2019; औद्योगिक संबंध संहिता 2020; सामाजिक सुरक्षा संहिता 2020; और व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य एवं कार्य परिस्थितियां संहिता 2020 के लागू होने से एक ऐतिहासिक बदलाव आया है। 44 केंद्रीय और 100 से अधिक राज्य श्रम कानूनों को मिलाकर इन 4 सरल संहिताओं में समाहित किया गया है, जिससे नियम सरल बन गए हैं और श्रमिकों की भलाई, सम्मान और न्याय को प्राथमिकता दी गई है।
इन संहिताओं को 9 त्रिपक्षीय और 10 अंतर-मंत्रालयी सलाह-मशवरों के आधार पर तैयार किया गया और संसदीय स्थायी समिति की 233 सिफारिशों में से 74% को शामिल करके, इन कानूनों को श्रमिकों और नियोक्ताओं दोनों के लिए संतुलित और आधुनिक रूप प्रदान किया गया है।
हर श्रमिक को न्यूनतम वेतन: कोई पीछे न रहे
वेतन संहिता, 2019 के अंतर्गत प्रत्येक श्रमिक-चाहे वह सफाईकर्मी हो, ड्राइवर या आईटी पेशेवर-को न्यूनतम वेतन की गारंटी दी गई है, जो पहले के 1948 के न्यूनतम वेतन अधिनियम की सीमित कवरेज से अलग है। राष्ट्रीय न्यूनतम वेतन (National Floor Wage) के प्रावधान से एक ऐसी आधार रेखा तय की गई है, जिससे नीचे कोई भी राज्य नहीं जा सकता, जिससे असमानताओं में कमी आई है और सबसे गरीब श्रमिकों को भी न्यायपूर्ण वेतन मिल रहा है। समय पर वेतन भुगतान अब अनिवार्य है, जिससे श्रमिकों को अपने जरूरी खर्चों, जैसे किराया और स्कूल फीस को पूरा करने में सहूलियत मिलती है। यह सुधार "बराबरी के सम्मान के लिए बराबर वेतन" के सिद्धांत को सशक्त करता है।
महिलाओं का सशक्तिकरण: कार्यस्थल पर समानता और सुविधा
श्रम संहिताएं महिलाओं को समान वेतन की गारंटी देती हैं, रोजगार सीमाओं को हटाती हैं और रात्रि पाली में सुरक्षित कामकाज को संभव बनाती हैं। कार्यस्थलों पर या उनके निकट क्रेच सुविधाएं अनिवार्य कर दी गई हैं, जिससे कामकाजी माताओं को करियर और बच्चों की देखभाल में संतुलन बनाने में मदद मिलती है। यह प्रावधान महिलाओं को कार्यबल में भागीदारी के लिए प्रोत्साहित करते हैं, हर क्षेत्र में उन्हें दृश्यता, सुरक्षा और अवसर प्रदान करते हैं।
सभी के लिए सामाजिक सुरक्षा: गिग वर्कर से लेकर प्लांटेशन मजदूर तक
पहली बार, श्रम संहिताओं ने गिग, प्लेटफॉर्म और असंगठित श्रमिकों, जैसे कि जोमैटो, स्विगी और उबर के डिलीवरी एजेंटों को सामाजिक सुरक्षा कवरेज में शामिल किया है। अब एग्रीगेटर कंपनियों को अपने वार्षिक कारोबार का 1-2% सामाजिक सुरक्षा कोष में योगदान देना होगा, जिससे स्वास्थ्य, मातृत्व, दिव्यांगता और अंतिम संस्कार जैसे लाभ सुनिश्चित किए जा सकें। ईएसआईसी (कर्मचारी राज्य बीमा निगम) अब छोटे प्रतिष्ठानों (10 से कम कर्मचारियों) और प्लांटेशन मजदूरों को भी कवर करता है, जिससे व्यापक स्वास्थ्य लाभ सुनिश्चित होते हैं।
ई-श्रम पोर्टल, एक क्रांतिकारी डिजिटल आईडी प्रणाली, असंगठित श्रमिकों को सरकारी कल्याण योजनाओं से जोड़ता है और उनके अधिकारों को औपचारिक रूप देता है। अब पीएफ, पेंशन और बीमा लाभ असंगठित और स्वरोज़गार से जुड़े श्रमिकों तक भी पहुंचाए जा रहे हैं, जिससे उनका वित्तीय भविष्य सुरक्षित होता है।
प्रवासी श्रमिक: अधिकार जो हर जगह उनके साथ जाते हैं
प्रवासी श्रमिकों को अब श्रम संहिताओं के तहत एक व्यापक परिभाषा में शामिल किया गया है, जिससे उन्हें गंतव्य राज्यों में राशन और सामाजिक सुरक्षा लाभ मिलते हैं। जिन संस्थानों में 10 या उससे अधिक प्रवासी श्रमिक कार्यरत हैं, उन्हें आधार-आधारित डेटाबेस के जरिए इन नियमों का पालन करना होगा। इसके अतिरिक्त, वार्षिक यात्रा खर्च की एकमुश्त अदायगी उनके आर्थिक और भावनात्मक कल्याण को समर्थन देती है, जिससे उनके अधिकार उनके साथ हर जगह जाते हैं।
औपचारिकता और पारदर्शिता: श्रमिकों को सशक्त बनाना
अब प्रत्येक श्रमिक के लिए नियुक्ति पत्र अनिवार्य कर दिया गया है, जो उन्हें कानूनी प्रमाण और लाभों तक पहुंच प्रदान करता है। समा-धान पोर्टल श्रमिकों को वेतन में देरी या गलत बर्खास्तगी जैसी शिकायतें ऑनलाइन दर्ज करने की सुविधा देता है। शिकायत निवारण समितियां, जो अब अनिवार्य हैं, श्रमिकों को अपनी समस्याएं उठाने का मंच देती हैं। वहीं औद्योगिक न्यायाधिकरण निश्चित समय-सीमा में न्याय दिलाने के लिए कार्यरत हैं।
कैरियर बदलाव और विकास को समर्थन
पुनः कौशल फंड (Re-skilling Fund) उन श्रमिकों के लिए है जो रिट्रेंचमेंट का सामना कर रहे हैं। इसके अंतर्गत नियोक्ता को प्रति श्रमिक 15 दिनों के वेतन का योगदान देना होता है। यह उन्हें नई नौकरी के लिए तैयार करने और वित्तीय स्थिरता प्रदान करने में मदद करता है। नेशनल करियर सर्विस (NCS) पोर्टल रोजगार खोजने वालों के लिए एक एकीकृत मंच है, जो नौकरियां, इंटर्नशिप, अप्रेंटिसशिप और कैरियर सलाह प्रदान करता है। विशेष रूप से युवाओं और पहली पीढ़ी के श्रमिकों को सशक्त करता है।
स्वास्थ्य और कल्याण: एक कानूनी अधिकार
सूचित क्षेत्रों में श्रमिकों के लिए निःशुल्क वार्षिक स्वास्थ्य जांच अब एक कानूनी अधिकार बन गया है, जिससे प्रारंभिक निदान और स्वस्थ जीवन को प्रोत्साहन मिलता है। व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य और कार्य परिस्थितियाँ संहिता श्रमिकों की भलाई को प्राथमिकता देती है, और कार्यस्थलों पर सुरक्षा और हर चरण में देखभाल सुनिश्चित करती है।
श्रमिकों की आवाज को सशक्त करना: यूनियन और हड़ताल का अधिकार
श्रम संहिताएं ट्रेड यूनियनों की मान्यता को औपचारिक बनाती हैं और सामूहिक सौदेबाजी के अधिकारों को मजबूत करती हैं। औद्योगिक संबंध संहिता हड़ताल के अधिकार को सुरक्षित रखती है और नोटिस अवधि के ज़रिए पारदर्शी समाधान की प्रक्रिया को बढ़ावा देती है। “हायर एंड फायर” को आसान बनाने के दावों के उलट, ये संहिताएं निष्पक्ष सामूहिक सौदेबाजी को बढ़ावा देती हैं। उदाहरण के तौर पर, राजस्थान में रिट्रेंचमेंट की सीमा को 100 से बढ़ाकर 300 करने से रोज़गार में वृद्धि और रिट्रेंचमेंट में कमी आई, जैसा कि संसदीय स्थायी समिति ने प्रमाणित किया है।
संतुलित ढांचा: श्रमिकों के अधिकार और आर्थिक विकास
श्रम संहिताएं न तो श्रमिक विरोधी हैं और न ही कॉर्पोरेट समर्थक, जैसा कि कुछ भ्रांतियां बताती हैं। ये पुराने औपनिवेशिक युग के कानूनों को आधुनिक रूप देती हैं, और उन्हें स्पष्ट परिभाषाओं और समावेशी नीतियों से प्रतिस्थापित करती हैं। CSR फंड को अब श्रमिक कल्याण योजनाओं, जैसे कौशल विकास, बीमा और रोजगार सहायता के लिए उपयोग करने की अनुमति दी गई है। फिक्स्ड टर्म वर्कर को अब स्थायी कर्मचारियों के बराबर वेतन और लाभ (जैसे ग्रेच्युटी) मिलते हैं, जिससे सभी प्रकार की नौकरियों में न्याय सुनिश्चित होता है।
समावेशी शासन: सामाजिक सुरक्षा बोर्ड और जाति जनगणना
राष्ट्रीय और राज्य सामाजिक सुरक्षा बोर्ड असंगठित श्रमिकों के कल्याण की निगरानी करते हैं और समावेशी नीतियों के निर्माण और उनके मजबूत क्रियान्वयन को सुनिश्चित करते हैं। एक व्यापक जाति जनगणना, जाति, लिंग, भौगोलिक स्थिति और आर्थिक असमानताओं को संबोधित कर सामाजिक न्याय को और मजबूत करती है, जिससे लक्षित नीति निर्माण की दिशा तय होती है।
मिथकों का खंडन: श्रम संहिताएं श्रमिकों के हित में
कुछ दावों के विपरीत, श्रम संहिताएं श्रमिकों के सशक्तिकरण की दिशा में एक बड़ा कदम हैं। ये सामाजिक सुरक्षा का विस्तार, नौकरियों का औपचारीकरण, और लिंग समानता को बढ़ावा देती हैं, साथ ही आधुनिक कार्यबल की आवश्यकताओं के अनुसार व्यावसायिक ज़रूरतों का संतुलन भी बनाए रखती हैं। ये संहिताएं 2002 की दूसरी राष्ट्रीय श्रम आयोग की सिफारिशों पर आधारित हैं, जो कानूनों को पाँच समूहों में सरल और तार्किक बनाती हैं, जिससे स्पष्टता और अनुपालन में सुधार होता है। सुरक्षा, सरलता और सशक्तिकरण को बढ़ावा देकर, श्रम संहिताएं एक ऐसा ढांचा प्रदान करती हैं जिसमें श्रमिक आगे बढ़ते हैं, व्यवसाय फलते-फूलते हैं, और भारत एक अधिक समावेशी अर्थव्यवस्था की ओर बढ़ता है।
निष्कर्ष: भारत के श्रमिकों के लिए एक नया युग
भारत की श्रम संहिताएं एक ऐतिहासिक मील का पत्थर हैं, जो संगठित, असंगठित, गिग और प्रवासी श्रमिकों सहित करोड़ों कामगारों के लिए सम्मान, सुरक्षा और न्याय सुनिश्चित करती हैं। सार्वभौमिक न्यूनतम वेतन से लेकर सामाजिक सुरक्षा, डिजिटल शिकायत पोर्टलों से लेकर स्वास्थ्य जांचों तक, ये सुधार श्रमिकों के अधिकारों को प्राथमिकता देते हैं और आर्थिक प्रगति को बढ़ावा देते हैं। जैसे-जैसे भारत इन आधुनिक श्रम कानूनों को अपनाता है, यह एक ऐसी श्रम शक्ति के निर्माण का मार्ग प्रशस्त करता है जो सशक्त, सुरक्षित और देश को आगे ले जाने के लिए तैयार है।
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