जालंधर चुनावी अखाड़ाः क्या बेटे बचा पाएंगे पिता की साख

Edited By Updated: 25 Jan, 2017 02:32 PM

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शहर में पिता की परंपरागत सीट को संभालने के लिए इस बार चार बेटे मैदान में है। अब देखना ये है कि वे अपने पिता की साख बचा पाते हैं या नहीं। तीन सीटों पर कांग्रेस के दिग्गजों के बेटे मैदान में हैं जबकि एक सीट पर भाजपा नेता का बेटा है।

जालंधरः शहर में पिता की परंपरागत सीट को संभालने के लिए इस बार चार बेटे मैदान में है। अब देखना ये है कि वे अपने पिता की साख बचा पाते हैं या नहीं। तीन सीटों पर कांग्रेस के दिग्गजों के बेटे मैदान में हैं जबकि एक सीट पर भाजपा नेता का बेटा है।

फिल्लौर सीटः फिल्लौर सीट पर 1992 से लेकर लगातार 2012 तक चौ संतोख सिंह चुनाव लड़ते अाए हैं। इस बार वह सांसद हैं तो उनका बेटा विक्रम चौधरी मैदान नें अा गया है। कांग्रेस ने विक्रम चौधरी को टिकट दिया है। विक्रम पहली बार चुनाव लड़ रहे हैं। इस सीट पर उनके पिता 2 बार विधायकी का चुनाव जीत चुके हैं। संतोख सिंह अब बेटे को विधायक बनाने के लिए खुद मैदान में हैं।

जालंधर नॉर्थः इस सीट पर बावा हैनरी के लिए अपने पिता की विरासत अौर विधानसभा सीट जीतना चुनौती है। 1985 में अवतार हैनरी ने पहली बार चुनाव लड़े थे अौर वह हार गए थे। 1992 में हैनरी ने चुनाव जीत लिया था अौर 1997 व 2002 में लगातार विधायक व मंत्री बने। 2007 अौर 2012 में वे फिर चुनाव हार गए। इस बार यानि कि 2017 में विदेशी नागरिकता का मुद्दा होने के कारण उनकी वोट कट गई।

करतारपुरःयह सीट चौधरी परिवार की पुश्तैनी सीट है। मौजूदा उम्मीदवार चौ सुरिंदर सिंह के दादा मास्टर गुरबंता सिंह ने 1957 में पहली बार चुनाव लड़ा था अौत जीत दर्ज की थी। इसके बाद 1962,1967 अौर 1972 में भी उन्होंने जीत हासिल की थी। 1977 में सरिंदर सिंह के पिता चौ.जगजीत सिंह ने करतारपुर सीट से चुनाव जीता था। इसके हाद 1985,1992,1997 तथा 2002 में लगातार जगजीत सिंह ने चुनाव जीता। 2007 तथा 2012 में उन्हें हार मिली। उनके निधन के बाद उनकी विरासत उनके बेटे सुरिंदर के पास अा गई है। सुरिंदर पहली बार चुनाव मैदान में उतरे हैं।

जालंधर साऊथः मोहिंदर भगत वन मंत्री भगत चुन्नी लाल के बेटे हैं। भगत चुन्नी लाल 85 के करीब हो चुके हैं। उम्रदराज होने के कारण इस बार टिकट उनके बेटे को दी गई। चुन्नी लाल 1997 में पहली बार चुनावी मैदान में उतरे थे अौर भाजपा की टिकट पर चुनाव जीता भी था। 2002 में उन्हें हार मिली। इसके बाद 2007 व 2012 में उन्होंने चुनाव में जीत दर्ज की।


 

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