पुलिस थानों में बंद पड़े वाहनों पर हाईकोर्ट सख्त,  90 दिन में...

Edited By Kalash,Updated: 17 May, 2025 10:47 AM

high court strict on vehicles locked in police stations

पुलिस थानों में बढ़ती हुई वाहनों की संख्या को लेकर हाईकोर्ट सख्त हुआ है।

अमृतसर (इन्द्रजीत): पुलिस थानों में बढ़ती हुई वाहनों की संख्या को लेकर हाईकोर्ट सख्त हुआ है। इस संबंध में दायर की गई जनहित याचिका के निर्णय में हाईकोर्ट द्वारा पंजाब सरकार और डी.जी.पी. पंजाब को 90 दिन के अंदर रिपोर्ट देने को कहा गया है। अच्छी खबर यह है कि अब थानों में वर्षों से स्कैप हो रहे वाहनों को शीघ्र ही बाहर निकालना होगा।

हाईकोर्ट के एडवोकेट कंवर पाहुल सिंह ने दायर याचिका में कहा है कि इस समय पंजाब पुलिस के पास हजारों की संख्या में वाहन हैं, जो पुलिस स्टेशनों में बंद है। वाहनों की तादाद इतनी बढ़ चुकी है कि जगह न होने की सूरत में सड़कों अथवा फुटपाथों पर छोड़ने पड़ रहे हैं, जो ट्रैफिक व्यवस्था पर मुश्किलें खड़ी कर रहे हैं। कंवर पाहुल सिंह ने बताया कि वर्ष 2002 में सुप्रीम कोर्ट ने एक निर्णय पर निर्देश में कहा था कि जो भी वाहन पुलिस द्वारा जब्त किए जाते हैं और केस प्रॉपर्टी बन जाते हैं तो उसका 30 दिन के अंदर-अंदर निपटारा किया जाए।

सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा था कि यदि कोई वाहन का मालिक ट्रेस न हो रहा हो तो उस वाहन को 6 महीने के अंदर-अंदर नीलाम किया जाएं। एस.सी के तत्कालीन निर्णय के अनुसार इन मामलों को स्थानीय मजिस्ट्रेट अपने तौर पर भी आदेश दे सकता है और हाईकोर्ट उसे सुपरवाइज करेगा। एडवोकेट कंवर पाहुल सिंह ने दायर याचिका में कहा है कि आज इस निर्णय को 23 साल हो चुके हैं और वाहनों की संख्या कई गुना बढ़ चुकी है व इन्हें कंट्रोल करना अब नामुमकिन हो चुका है, लेकिन पुलिस ने कोई भी मामला फॉरवर्ड नहीं किया। अब यदि पुलिस किसी मामले को आगे नहीं भेजेगा तो मैजिस्ट्रेट क्या कर सकता है? एडवोकेट ने बताया कि वर्ष 2010 में सुप्रीम कोर्ट ने इस पहली डायरेक्शन पर भी जजमेंट दी गई थी।

बताया जाता है कि दायर की गई याचिका पर हाईकोर्ट ने सख्त एक्शन लेते हुए पंजाब सरकार और डी.जी.पी. पंजाब को निर्देश दिए हैं कि 90 दिनों के अंदर-अंदर डी.जी.पी. रिपोर्ट करेंगे कि सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर पंजाब पुलिस द्वारा क्या एक्शन लिया गया है? हाईकोर्ट द्वारा फैसले में यह भी कहा गया है कि रिपोर्ट को रजिस्टार जनरल निरीक्षण करेंगे कि इसमें कोर्ट के निर्देशों की पालना हुई है या नहीं। इसके साथ ही पटीशनर को भी अधिकार दिए हैं कि वह इसका अध्ययन करके अदालत को अपनी राय प्रस्तुत करें।

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