जिस दीवार नीचे गुरु नानक देव जी ने कुछ क्षण विश्राम किया वह आज भी श्री कंध साहिब में है सुरक्षित

Edited By swetha,Updated: 25 Aug, 2019 04:05 PM

guru nanak dev ji marriage

गुरु जी का बारात सहित बटाला आना

बटाला(साहिल): सिख धर्म के बानी श्री गुरु नानक देव जी का जन्म पिता महिता कालू (श्री कल्याण दास) जी के घर माता तृप्ता जी के गर्भ से राए भोई की तलवंडी ननकाना साहिब (पाकिस्तान) में उस समय हुआ, जब भारत के राजनीतिक, सामाजिक और धार्मिक हालत निराशाजनक थे। थोड़े समय बाद आप जी को बड़ी बहन बेबे नानकी जी के पास सुल्तानपुर लोधी में रहने के लिए भेज दिया गया, जहां गुरु जी के जीजा जय राम जी ने गुरु जी को नवाब दौलत खां के मोदीखाने में मोदी की नौकरी दिलवा दी। बाबा जी की मंगनी 18 वर्ष की आयु में बटाला के रहने वाले खत्री मूल चंद पटवारी और माता चंदो रानी की सुपुत्री सुलक्खनी से हो गई। 

गुरु जी का बारात सहित बटाला आना
भादों सुदी 7वीं सम्वत् 1544 को आप बारातियों सहित जिनमें भाई बाला जी, भाई मरदाना जी, भाई हाकम राए जी और नवाब दौलत खां और सज्जनों, रिश्तेदारों और परिवार के सदस्यों सहित पूरी सज-धज से सुल्तानपुर लोधी से बरास्ता कपूरथला, सुभानपुर, बाबा बकाला से होते हुए ऐतिहासिक शहर बटाला बारात के रूप में पहुंचे। गुरु जी की बारात के बटाला पहुंचने पर शहर के वरिष्ठ व्यक्तियों और रिश्तेदारों द्वारा जिनमें प्रमुख तौर पर अजिता रंधावा जी भी शामिल थे, जोरदार स्वागत किया गया। 

बारात को जिस जगह पर ठहराया गया, वह गुरुद्वारा श्री कंध साहिब जी के अस्थान के नाम से प्रसिद्ध है और जिस जगह पर गुरु जी ने फेरों की रस्म अदा की, वह अस्थान गुरुद्वारा डेहरा साहिब जी के नाम से प्रसिद्ध है। जिस अस्थान पर बारात को ठहराया गया, वह अस्थान हवेली भाई जमीत राए बंसी की थी। गुरु जी की जब बारात आई तो उस समय भारी बारिश हो रही बताई जाती है। यहीं एक कच्ची दीवार थी, जिसके नीचे गुरु जी ने कुछ समय विश्राम किया था। इसी दौरान एक बुजुर्ग महिला ने गुरु जी को कहा कि यह दीवार कच्ची है, जो कि टूटने वाली है, यहां से उठ कर एक तरफ हो जाओ तो श्री गुरु नानक देव जी ने कहा कि माता भोलिए, यह कंध जुगां-जुगातरां तक कायम रहेगी और हमारे विवाह की यादगार होगी। यह कच्ची दीवार गुरुद्वारा श्री कंध साहिब में शीशे के फ्रेम में सुरक्षित आज भी मौजूद है। 

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