बच्चों और किशोरों में तेजी से फैल रही ये बीमारी, सही इलाज न हुआ तो...

Edited By Kalash,Updated: 28 Sep, 2025 05:51 PM

disease spreading rapidly among children

बच्चों में सबसे सामान्य बीमारियों में से एक बन चुकी है। सही इलाज न होने पर

अमृतसर (दलजीत): नाक की एलर्जी आजकल बच्चों में सबसे सामान्य बीमारियों में से एक बन चुकी है। सही इलाज न होने पर यह बीमारी जीवनभर बनी रह सकती है और बच्चों की पढ़ाई व विकास पर भी असर डालती है। लगभग 10 प्रतिशत भारतीय इस बीमारी से पीड़ित हैं, जिनमें 6-7 वर्ष के 7.7 प्रतिशत बच्चे और 13-14 वर्ष के 23.5 प्रतिशत किशोर नाक की एलर्जी से प्रभावित पाए गए।

जानकारी के अनुसार नाक की एलर्जी के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं, बच्चों मै यह बीमारी ज्यादा देखने को मिल रही है। यदि नाक की एलर्जी का समय पर सही उपचार न हो तो भविष्य में लगभग 30-40 प्रतिशत बच्चों में दमा (अस्थमा) विकसित होने का खतरा बढ़ जाता है। समय पर इलाज न होने पर बच्चों में नींद से जुड़ी गम्भीर समस्याएं, नींद रुकना, खर्राटे और दिन में थकान जैसी परेशानियां भी पैदा हो सकती हैं, जो उनकी शारीरिक वृद्धि और मानसिक स्वास्थ्य दोनों को प्रभावित करती हैं। कुछ बच्चों में एडिनॉइड ग्रंथि बढ़ने से बच्चे रात को नाक से सांस न ले पाने के कारण ठीक से सो नहीं पाते तथा खर्राटे मारते रहते हैं।कई बच्चों में तो नाक से बार-बार खून आने की समस्या भी देखी जाती है।

प्रसिद्ध बाल रोग विशेषज्ञ एवं एलर्जी विशेषज्ञों कहना है कि अक्सर माता-पिता इसे साधारण जुकाम समझकर अनदेखा कर देते हैं, जबकि यह बीमारी लंबे समय तक बच्चे की सेहत और पढ़ाई दोनों पर असर डाल सकती है। समय पर सही पहचान और उपचार से बच्चों की गुणवत्ता-ए-जीवन में बड़ा सुधार किया जा सकता है। जिन बच्चों में बार-बार छींक, नाक बंद होना, नींद की कमी या पढ़ाई में ध्यान की समस्या हो, उन्हें विशेषज्ञ से अवश्य जांच करवाएं, क्योंकि बच्चों के एलर्जी विशेषज्ञ जांच कर कारणों का पता लगा सकते हैं तथा ज़रूरत पड़ने पर रोग प्रतिरोधक चिकित्सा की बूंदों ( इम्यूनोथेरेपी ड्रॉप्स) के माध्यम से नाक की एलर्जी को जड़ से समाप्त भी कर सकते हैं।

बच्चों में आ जाता है चिड़चिड़ापन, यह है मुख्य लक्षण

उन्होंने बताया कि नाक की एलर्जी के प्रमुख लक्षणों में बार-बार छींक आना, नाक बंद होना और खुजली शामिल हैं। इसके अलावा आंखों में खुजली, गले में खराश, खांसी, थकान, नींद में परेशानी, गले में कफ उतरना और मुंह से सांस लेना जैसी समस्याएं भी हो सकती हैं। गंभीर मामलों में बच्चों में चिड़चिड़ापन, पढ़ाई में ध्यान न लगना और स्कूल में प्रदर्शन में गिरावट जैसी दिक्कतें भी देखी जाती हैं। कुछ बच्चों में एडिनॉइड ग्रंथि बढ़ने से बच्चे रात को नाक से सांस न ले पाने के कारण ठीक से सो नहीं पाते तथा खर्राटे मारते रहते हैं। कई बच्चों में तो नाक से बार-बार ख़ून आने की समस्या भी देखी जाती है।

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