Edited By Vatika,Updated: 30 Oct, 2024 03:03 PM
पी.जी.आई. में पहली बार विदेशी डोनर के ऑर्गन डोनेट हुए।
चंडीगढ़: पी.जी.आई. में पहली बार विदेशी डोनर के ऑर्गन डोनेट हुए। दो साल के प्रोस्पर के ब्रेन डैड होने के बाद ऑर्गन डोनेट किए गए। प्रोस्पर न सिर्फ पी.जी. आई., बल्कि इंडिया का पहला सबसे कम उम्र का डोनर है। इतनी कम उम्र में पैंक्रियाज डोनेट हुए। बच्चे की किडनी, पैंक्रियाज और कोर्निया डोनेट हुआ, जिसकी मदद से चार जरूरतमंद मरीजों को नया जीवन मिल पाया है। एक मरीज को किडनी व पैंक्रियाज, दूसरे को सिर्फ किडनी और अन्य दो मरीजों को कॉर्निया ट्रांसप्लांट किया गया।
पी.जी. आई. के निदेशक डॉ विवेक लाल ने परिवार का आभार व्यक्त करते हुए कहा यह पहल ऑर्गन डोनेशन की अहमियत को बताते हुए, लोगों को जागरूक करेगी। एक छोटे बच्चे का इस तरह जाना दुखद है, लेकिन प्रोस्पर के परिवार ने साहस का फैसला लिया है, जो कई जरूरतमंद लोगों के लिए अनमोल तोहफा है। प्रोस्पर परिवार के साथ खरड़ में रहता है। वह मूल रूप से कीनिया का रहने वाला है। 17 तारीख को घर में गिरने पर गंभीर चोट आई थी। उसे तुरंत पी.जी. आई. लाया गया। इलाज के बावजूद हालात में सुधार नहीं हो रहा था। 10 दिन जिंदगी और मौत से लड़ाई लड़ने के बाद 26 अक्तूबर को डॉक्टरों ने ब्रेन डैड घोषित कर दिया।
यह सांत्वना मिलती है कि उसके ऑर्गन दूसरों को जीवन देंगे, जो दुखी हैं: मां
मांजैकलिन डायरीने कहाकि बच्चे को खोने का दुःख जिंदगी भर रहेगा, लेकिन यह जानकर सांत्वना मिलती है कि उस के ऑर्गन दूसरों को जीवन देंगे, जो दुखी है। यहदया का काम हमारे लिए उसके जीवन को जीवित रखने का एक तरीका है। परिवार के साथ आए पादरी ने परिवार के दया का एक प्रमाण बताते हुए कहा कि इतना दुःख होने के बावजूद, प्रेम के मार्ग का चयन किया। प्रॉस्पर का दान हमारे विश्वास का प्रमाण है कि मृत्यु के बाद भी, हमारा बच्चा दूसरों को खुशी दे सकता है, उन्हें जीवन का एक मौका प्रदान कर सकता है।
छोटी उम्र के डोनर से ऑर्गन लेने के बाद ट्रांसप्लांट करना काफी मुश्किल
पी.जी.आई. मैडीकल सुपरिटेंडेंट व रोटो के नोडल ऑफिसर प्रोविपिन कौश लने कहा कि परिवार की सहमति और नियमों के मुताबिक कीनिया उच्च आयोग से क्लीयरेंस ली गई। रीनल ट्रांसप्लांट सर्जरी के हैड प्रो आशीप शर्मा ने कहा कि छोटी उम्र के डोनर से ऑर्गन लेने के बाद ट्रांसप्लांट काफी मुश्किल है। इतनी छोटी उम्र में दो किडनी को अलग करना अपने आप में बहुत चुनौतीपूर्ण होता है क्योकि ऑर्गन का आकार बहुत छोटा होता है। ऐसे में सर्जरी मुश्किल हो जाती है। टीम ने अच्छा काम किया ट्रांसप्लांट करने में सफलता हासिल की है।