बाजारों में मची हाहाकार, वजह जानकर आपके भी उड़ जाएंगे होश

Edited By Sunita sarangal,Updated: 01 Dec, 2025 04:19 PM

shortage of small currency in barnala markets

अगर सरकार इस मुद्दे पर तुरंत कार्रवाई नहीं करती तो बाजारों की रफ्तार पर गहरा असर पड़ेगा।

बरनाला(विवेक सिंधवानी, रवि): बरनाला शहर में पिछले कई दिनों से 10, 20, 50 और 100 रुपए के छोटे नोटों की अचानक आई कमी ने बाजार की रफ्तार को बुरी तरह थाम दिया है। रोज़मर्रा की खरीद–फरोख्त से लेकर बड़े लेन–देन तक हर जगह नकदी की उपलब्धता संकट में पड़ी हुई है। छोटे नोटों का न मिलना आम जनजीवन को इतना प्रभावित कर रहा है कि कई दुकानदारों ने तो शिकायत करते हुए कहा, “बाजार में रौनक है, पर लेन–देन की सांसें अटकी पड़ी हैं।”

छोटे नोटों की किल्लत ने दिहाड़ीदारों, फेरीवालों, छोटे दुकानदारों और ग्राहकों के बीच ऐसी खाई खड़ी कर दी है, जो हर घंटे गहराती जा रही है। लोग मजबूरी में डिजिटल पेमेंट और उधार का सहारा ले रहे हैं, लेकिन कई जगह नेटवर्क या मशीन की दिक्कत से यह विकल्प भी ठप हो जाता है। ग्राहक बड़े नोट देते हैं और दुकानदार चेंज न होने की वजह से सामान देने में असमर्थ—स्थिति कभी–कभी बहस, विवाद और तनाव तक पहुंच जाती है।

छोटे नोटों की कमी से बढ़ती बेचैनी, व्यापार अधर में

नगर पार्षद हेमराज गर्ग ने बताया कि शहर में छोटे नोटों की कमी ने व्यापारिक ढांचे को पूरी तरह हिला दिया है। उन्होंने कहा, “व्यापार आधा ठप पड़ गया है। दुकानदार बड़े नोट वापस नहीं कर पा रहे और ग्राहक मजबूरी में खरीदारी बीच में छोड़कर जा रहे हैं। यह समस्या सामान्य नहीं, बल्कि बाजार की रीढ़ पर सीधा प्रहार है।”

गर्ग के अनुसार बैंक भी छोटे नोट देने में असमर्थ हैं। लोगों को 10 और 20 के नोटों के लिए घंटों बैंक के चक्कर काटने पड़ रहे हैं, लेकिन वहां भी बेबसी के अलावा कुछ नहीं मिलता। उन्होंने कहा कि यह स्थिति यदि तुरंत नहीं सुधरी तो त्योहारों व रोज़ाना के बढ़ते खर्चों में शहर को और बड़ी परेशानियों का सामना करना पड़ेगा।

सिक्कों के इस्तेमाल में गिरावट भी संकट की बड़ी वजह

समाजसेवी सतपाल मौड़ ने छोटे नोटों की कमी के पीछे एक महत्वपूर्ण कारण बताया कि लोगों में सिक्कों का उपयोग कम होना। उन्होंने कहा, “कुछ साल पहले तक सिक्के कारोबार की धड़कन थे। आज दुकानदार सिक्के रखना नहीं चाहते, ग्राहक जेब में बोझ न बढ़े इसलिए सिक्कों से बचते हैं। यह आदत अब बाजार के लिए मुसीबत बन चुकी है।”

मौड़ ने कहा कि यदि सरकार और बैंक सिक्कों को फिर से प्रचलन में बढ़ावा दें और 10–20 रुपये के नोट बड़ी मात्रा में बाजार में उतारे जाएं तो स्थिति काफी हद तक सुधर सकती है। उन्होंने गणना करते हुए कहा कि बरनाला जैसे कस्बाई व्यापार वाले शहर में छोटे नोटों का नियमित फ्लो न होना व्यापार को कभी भी अराजक स्थिति में धकेल सकता है।

व्यापारियों के मुताबिक किल्लत ने तोड़ी दिहाड़ीदारों और छोटे दुकानदारों की कमर

व्यापारी नेता सुरिंदर आढ़ती भदौड़ ने कहा कि छोटे नोटों की किल्लत ने सबसे ज्यादा मार दिहाड़ीदार वर्ग, सब्जी विक्रेताओं, फेरीवालों और छोटे व्यापारियों पर डाली है। उन्होंने कहा,“जब ग्राहक 200, 500 या 2000 का नोट देता है, तो दुकानदार के पास वापस करने के लिए 10–20–50 के नोट नहीं होते। नतीजा—या तो ग्राहक नाराज़ होकर चला जाता है, या दुकानदार को उधार में सामान देना पड़ता है। यह हालात लंबे समय तक रहे तो छोटे व्यापारियों के अस्तित्व पर संकट खड़ा हो जाएगा।”

भदौड़ ने यह भी कहा कि अगर सरकार इस मुद्दे पर तुरंत कार्रवाई नहीं करती तो बाजारों की रफ्तार पर गहरा असर पड़ेगा। दिहाड़ीदारों की मजदूरी तक रोक लग रही है क्योंकि नियोक्ता छोटे नोट न मिलने पर भुगतान करने में असमर्थ हो रहे हैं।

समाजसेवियों, व्यापारी संगठनों और आम जनता ने सरकार से मांग की है कि

छोटे नोटों की सप्लाई तुरंत बढ़ाई जाए,

सिक्कों के प्रचलन को मजबूत किया जाए,

बैंकों में छोटे नोटों की नियमित उपलब्धता सुनिश्चित की जाए,

डाक–विभाग, सहकारी समितियों और एटीएमों में छोटे नोटों का वितरण शुरू किया जाए।

सरकार के लिए चुनौती, जनता की बढ़ती उम्मीदें

बरनाला के व्यापारिक परिदृश्य से स्पष्ट है कि छोटे नोटों की किल्लत ने बाजार की नब्ज को कमजोर कर दिया है। आम जनता की उम्मीदें अब सरकार की ओर टिकी हैं। यदि केंद्र और राज्य स्तर पर तुरंत पहल न हुई तो यह संकट न सिर्फ स्थानीय व्यापार, बल्कि पूरे क्षेत्र की आर्थिक सेहत को नुकसान पहुंचा सकता है।

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