Edited By Punjab Kesari,Updated: 16 Mar, 2018 10:24 AM
कांग्रेस की सर्वोच्च नीति निर्धारित संस्था कांग्रेस कार्यसमिति के पदों पर कांग्रेसी नेताओं को लेने के लिए चुनाव करवाए जाएं या फिर कांग्रेसी नेताओं का मनोनयन कर दिया जाए। इस बारे में अंतिम फैसला लेने के अधिकार कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को सौंप दिए...
जालंधर (धवन): कांग्रेस की सर्वोच्च नीति निर्धारित संस्था कांग्रेस कार्यसमिति के पदों पर कांग्रेसी नेताओं को लेने के लिए चुनाव करवाए जाएं या फिर कांग्रेसी नेताओं का मनोनयन कर दिया जाए। इस बारे में अंतिम फैसला लेने के अधिकार कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को सौंप दिए गए हैं। कांग्रेसी नेताओं ने बताया कि अब यह राहुल गांधी पर निर्भर करता है कि वह अतीत की तरह पार्टी में लोकतांत्रिक प्रथा को कायम रखते हुए आंतरिक चुनाव करवाने को पहल देते हैं या फिर पहले से चली आ रही मनोनयन की प्रथा को अपनाते हैं। अगर राहुल आंतरिक चुनाव करवाने पर जोर देते हैं तो उनके फैसले का पार्टी में कोई विरोध नहीं करेगा।
कांग्रेसी नेताओं ने बताया कि कांग्रेस के संविधान के अनुसार पार्टी अध्यक्ष कांग्रेस कार्यसमिति के लिए आधे सदस्यों का चयन करने हेतु चुनावी प्रणाली अपना सकते हैं तथा शेष सदस्यों की नियुक्तियां मनोनयन द्वारा कर सकते हैं। दूसरे फार्मूले के तहत कांग्रेस अध्यक्ष कांग्रेस कार्यसमिति के सभी सदस्यों का मनोनयन कर सकते हैं। अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी का अधिवेशन भी 16 से 18 मार्च तक दिल्ली में होने जा रहा है।
कांग्रेसियों का मानना है कि पार्टी के इतिहास पर नजर डालने से पता चलता है कि जब भी आंतरिक चुनाव के जरिए कांग्रेस कार्यसमिति का गठन किया गया तो इससे पार्टी नेताओं के मध्य आपसी खींचतान बढ़ी। ये नेता यूथ कांग्रेस के आंतरिक चुनावों का हवाला भी देते हैं। पार्टी नेताओं का कहना है कि अब चूंकि 2019 में लोकसभा के आम चुनाव होने हैं, इसलिए राहुल गांधी को कार्यसमिति के लिए पार्टी नेताओं का मनोनयन कर देना चाहिए। इससे एक तो पार्टी के अंदर आपसी लड़ाई झगड़ा नहीं बढ़ेगा तथा दूसरा पार्टी मजबूती के साथ केन्द्र की राजग सरकार से दो-दो हाथ कर सकेगी।
कांग्रेसी नेता कार्यसमिति के लिए चुनाव करवाने का एक उदाहरण पूर्व पार्टी अध्यक्ष पी.वी. नरसिम्हा राव के कार्यकाल का भी देते हैं। उस समय भी आंतरिक चुनाव करवा कर कार्यसमिति के सदस्य चुने गए थे, जिससे पार्टी के अंदर विभिन्न विरोधी धड़े बन गए थे। उस समय न तो कोई भी महिला नेता निर्वाचित हो सकी थी और न ही पिछड़े वर्ग के नेता आगे आ सके थे। उसके बाद नरसिम्हा राव ने दो नेताओं के त्यागपत्र लेकर मनोनयन का कार्य किया था। इसी तरह से 1998 में कांग्रेस के कोलकाता सत्र में कांग्रेस कार्यसमिति के चुनाव करवाए गए थे तथा उस समय भी पार्टी की आंतरिक धड़ेबंदी उभरी थी जिसके बाद कांग्रेस के कमजोर होने के बाद सोनिया गांधी ने आगे आकर पार्टी की कमान संभाली थी।