Edited By Vatika,Updated: 08 Jul, 2025 12:13 PM

इंडस्ट्री इन दिनों अस्तित्व के सबसे बड़े संकट से गुजर रही है।
लुधियाना(राम): पंजाब की औद्योगिक राजधानी लुधियाना की टैक्सटाइल और डाइंग इंडस्ट्री इन दिनों अस्तित्व के सबसे बड़े संकट से गुजर रही है। जहां एक ओर पर्यावरण से जुड़े नियमों की अनुपालना जरूरी है, वहीं दूसरी ओर सरकार की बेरुखी और अफसरशाही की उदासीनता से उद्यमियों का मनोबल टूटता जा रहा है। इसी कारण अब पंजाब डायर्स एसोसिएशन (पी.डी.ए.) ने मध्य प्रदेश की ओर रुख किया है। पी.डी.ए. के डायरैक्टर कमल चौहान और बॉबी जिंदल ने एम.पी. इंडस्ट्रियल डिवैल्पमैंट कॉर्पोरेशन लिमिटेड के प्रबंध निदेशक एवं वरिष्ठ आई.ए.एस. अधिकारी चंद्रमौली शुक्ला को मैमोरैंडम सौंपा, जिसमें पंजाब की वर्तमान औद्योगिक स्थिति को विस्तार से रखा गया।इस मुलाकात के दौरान एमपी सरकार की ओर से उद्यमियों को न सिर्फ सुनवाई मिली, बल्कि कई बड़े आश्वासन भी दिए गए कि 5000 रुपए प्रति माह प्रति कर्मचारी वेतन सरकार की ओर से दिया जाएगा। सस्ती दरों पर औद्योगिक बिजली उपलब्ध करवाई जाएगी। स्थापना में सबसिडी और टैक्स छूट की सुविधाएं देने का वादा किया। अफसरशाही द्वारा किसी भी तरह की बाधा न डाले जाने का भरोसा दिया। साथ ही, उद्यमियों को इंदौर आकर संभावनाएं देखने का सीधा आमंत्रण दिया। एम.पी. सरकार की इस तत्परता और स्पष्ट नीति ने पंजाब के उद्योगपतियों को गहरे विचार के लिए मजबूर कर दिया है।
एन.जी.टी. ने दिए प्लांट बंद करने के आदेश, पूरे टैक्सटाइल व हौजरी उद्योग पर असर
जैसा कि पहले बताया गया है लुधियाना की 225 डाइंग यूनिट्स ने 250 करोड़ रुपए खर्च कर 4 सी.ई.टी.पी. लगाए थे, ताकि प्रदूषण मानकों का पालन किया जा सके लेकिन पंजाब सरकार ने अपने वादे के अनुसार इन प्लांट्स को चालू रखने के लिए जरूरी नहरें नहीं बनवाईं। परिणामस्वरूप नैशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एन.जी.टी.) ने तीनों प्लांट बंद करने का आदेश दे दिया। इसका असर सिर्फ डाइंग यूनिट्स पर नहीं, बल्कि पूरे टैक्सटाइल और हौजरी उद्योग पर पड़ेगा। लाखों मजदूरों की आजीविका पर संकट आ चुका है। व्यवसायियों का कहना है कि पंजाब सरकार न तो संवाद करती है और न ही समाधान देती है।
साढ़े 3 साल में नहीं हुई कारोबारियों की सुनवाई
पी.डी.ए. से जुड़े उद्योगपतियों ने पंजाब सरकार पर निशाना साधा है। उनका कहना है कि साढ़े 3 साल के कार्यकाल में मुख्यमंत्री ने न तो व्यापारियों की सुध ली, न ही कोई नीति बनाकर समस्या का समाधान किया। बार-बार अनुरोध और पत्राचार के बावजूद मुख्यमंत्री ने एक बार भी प्रतिनिधियों से मिलने का समय नहीं दिया। उद्योगपतियों ने आरोप लगाया है कि सरकार की बेरुखी और वादाखिलाफी के कारण लुधियाना जैसे औद्योगिक शहर में उद्योग धीरे-धीरे बंद हो रहे हैं। अफसरशाही की मनमानी और अनदेखी ने व्यवसाय को बाधित किया है। वहीं, किसानों की तरफ से शंभू बॉर्डर पर पिछले दिनों में दिए गए धरना प्रदर्शन, बिजली संकट और पर्यावरण आदेशों के चलते पंजाब की इंडस्ट्री लगातार गिरावट की ओर जा रही है। एक कारोबारी ने तीखे शब्दों में कहा, “पंजाब सरकार की ‘अच्छी’ नीतियों के चलते अब हम पलायन की दहलीज पर खड़े हैं।" वहीं मध्य प्रदेश सरकार की स्पष्ट नीतियों और समयबद्ध कार्रवाई ने पंजाब के असंतुष्ट उद्यमियों को नया विकल्प देने की शुरुआत कर दी है।
क्या पंजाब सरकार संभालेगी स्थिति?
अब बड़ा सवाल यह है कि क्या पंजाब सरकार समय रहते चेतेगी? क्या वह उद्योगपतियों से संवाद करेगी? क्या वह पंजाब में उद्योगों को बनाए रखने के लिए मजबूत, भरोसेमंद और क्रियान्वित योग्य नीतियां लेकर आएगी? विशेषज्ञों का मानना है कि यदि अब भी राज्य सरकार ने निर्णायक कदम नहीं उठाए तो उद्योगों का पलायन रुकना नामुमकिन हो जाएगा। यह पूरा घटनाक्रम केवल एक व्यापारिक संकट नहीं, बल्कि सरकार की प्राथमिकताओं और नीतिगत दृष्टिकोण पर एक बड़ा प्रश्नचिन्ह है। जहां मध्य प्रदेश स्पष्टता, समर्थन और समाधान के साथ खड़ा है, वहीं पंजाब की चुप्पी और उदासीनता राज्य के औद्योगिक भविष्य को अंधकार की ओर धकेल रही है।