पंजाब में Attitude तथा Over Confidence से लबरेज़ BJP को भुगतना पड़ा हार का खामियाजा

Edited By Vatika,Updated: 08 Jun, 2024 11:19 AM

punjab bjp loksabha election

हाल ही में संपन्न हुए लोकसभा चुनावों के बाद देश भर में अपनी स्थिति को लेकर भाजपा एक बार फिर से सकते में है।

जालंधर(अनिल पाहवा) : हाल ही में संपन्न हुए लोकसभा चुनावों के बाद देश भर में अपनी स्थिति को लेकर भाजपा एक बार फिर से सकते में है। पार्टी उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र तथा अन्य राज्यों में हासिल अपने वोट बैंक से खासी निराश है, जिसके बाद तरह-तरह की चर्चाएं शुरू हो गई हैं। कहीं केंद्र के कुछ नेताओं पर सवाल उठ रहे हैं तो कहीं स्थानीय नेताओं की भूमिका को लेकर चर्चाएं चल रही हैं। इसी बीच यह बात भी सामने आने लगी है कि हाल ही में संपन्न हुए इन चुनावों में जमीनी स्तर पर चुपके से काम करने वाले नेताओं की भी इस बार कमी रही और इस कमी का खमियाजा भाजपा को भुगतना पड़ा। कई इलाकों में तो भाजपा वर्करों ने इसलिए काम नहीं किया कि भगवान राम और मोदी की लहर पार्टी को सफलता दिलवा देगी। इस ओवर कान्फीडैंस में रहे भाजपा के लोगों को यह नहीं पता था कि हालत ऐसी हो जाएगी।

पन्ना प्रमुखों ने भी नहीं दिखाई दिलचस्पी
सूत्रों से खबर मिली है कि संगठन को एक्टिव रखने के लिए पन्ना प्रमुख तैनात किए जाते हैं। भाजपा में यह पंरपरा काफी पुरानी है। ये पन्ना प्रमुख ही कई चुनावों में पार्टी का बेड़ा पार करने में अहम भूमिका निभा चुके हैं, लेकिन इस बार कई राज्यों में पन्ना प्रमुख भी एक्टिव नहीं दिखे। वर्करों तथा वोटरों को घर से निकालकर बूथ तक पहुंचाना, पार्टी के पक्ष में वोट करवाना तथा इस तरह के अन्य चुनावी प्रक्रियाओं को अंजाम देना यह पन्ना प्रमुखों का काम रहा है, लेकिन इस बार इस तरह की प्रक्रिया जमीनी स्तर पर कहीं नजर नहीं आई। कई ऐसे राज्य भी रहे, जहां पर भाजपा बहुल क्षेत्र होने के बावजूद पार्टी के बूथ नहीं लगे।

संघ की नाराजगी भी बनी कारण
जहां पन्ना प्रमुख अहम भूमिका निभाते हैं, वहीं राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के लोग भी भाजपा के प्रति सकारात्मक रवैया रखते हैं। खुलेआम न सही, लेकिन अंदरखाते पार्टी के लिए वोट करने के लिए उत्साहित करने में कोई कमी नहीं छोड़ते, लेकिन इस बार ऐसा देखने को नहीं मिला। संगठन के लोगों ने उस तरह की सक्रियता नहीं दिखाई, और तो और संघ की तरफ से 85000 के करीब कार्यकर्ताओं को चुनाव अभियान में लगाने का दावा किया गया था, लेकिन ये लोग कहीं नजर नहीं आए। वैसे भी कई मुद्दों को लेकर संगठन की तरफ से भाजपा से दूरी बना ली गई थी। खासकर बाहरी लोगों को पार्टी में लाकर अहम जिम्मेदारियां देना संगठन को रास नहीं आ रहा था।

पंजाब में पार्टी को ले डूबा नेताओं का 'एटीटयूड'
पंजाब में भाजपा 13 में से 4-5 सीटों का अनुमान लगा रही थी, जो उसके खाते में आने की संभावना थी, लेकिन पार्टी का यह अनुमान सही साबित नहीं हुआ। इसके पीछे कई बड़े कारण हैं, लेकिन एक जो सबसे प्रमुख कारण सामने आ रहा है, वो है प्रदेश की टीम, जो इन चुनावों में अपनी सक्रियता नहीं दिखा सकी। केंद्र में 10 साल से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा की सरकार चल रही थी। केंद्रीय नेताओं में तो इस बात को लेकर कुछ हद तक 'एटीटयूड' देखने को मिला, लेकिन हैरानी की बात थी कि पंजाब में न सत्ता, न पार्टी और यहां के नेताओं में भी 'एटीटयूड' भरा हुआ था। बड़े-बड़े नेता पार्टी के लिए वोट मांगने की बजाय फोटो खिंचाकर सोशल मीडिया में डालने तक ही सीमित रहे। कुल मिलाकर यह चुनाव जमीनी स्तर की बजाय सोशल मीडिया पर लड़ा गया।

 पुरानी गलतियों को फिर दोहराया भाजपा ने
पंजाब में जालंधर लोकसभा उपचुनाव के दौरान जो गलतियां भाजपा ने की थीं, वे सारी गलतियां इन प्रमुख लोकसभा चुनावों में भी शिद्दत से दोहराई गईं। मीडिया मैनेजमैंट में पार्टी फिर से फिसड्डी रही। स्थानीय खबरिया पोर्टलों पर अपने पक्ष में खबरें चलाने के लिए कोई व्यवस्था नहीं की गई थी। पंजाब में चंद भाजपा नेताओं के करीबी या यूं कहिए कि उनकी जय-जयकार करने वाले खबरिया पोर्टलों को खुश किया गया, जबकि बेहतर तथा अधिक दर्शकों तक पहुंच रखने वाले खबरिया पोर्टलों को पूरी तरह से इग्नोर कर दिया गया। यही गलतियां भाजपा ने पहले भी की और अब इस बार फिर सब कुछ वैसा ही हुआ। बेशक कुछ पार्टी के प्रबंधक बदल गए, लेकिन बाकी सब कुछ वैसा ही रहा।
 

Related Story

Trending Topics

Afghanistan

134/10

20.0

India

181/8

20.0

India win by 47 runs

RR 6.70
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!