कैप्टन के खिलाफ लड़ाई में पंजाब की राजनीतिक पिच पर राहुल-प्रियंका खुलकर कर रहे Batting

Edited By Vatika,Updated: 27 Jul, 2021 11:11 AM

on the political pitch of punjab in the fight against capt

पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेन्द्र सिंह और प्रदेश कांग्रेस प्रधान नवजोत सिंह सिद्धू के बीच चल रहे राजनीतिक युद्ध के पीछे प्रतीत होता

जालंधर(चोपड़ा): पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेन्द्र सिंह और प्रदेश कांग्रेस प्रधान नवजोत सिंह सिद्धू के बीच चल रहे राजनीतिक युद्ध के पीछे प्रतीत होता है कि नेहरू-गांधी परिवार के वंशज राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा ही गेम प्लानर की भूमिका निभा रहे हैं। चूंकि कांग्रेस की राष्ट्रीय कार्यवाहक अध्यक्षा सोनिया गांधी अस्वस्थ चल रही हैं जिस कारण उनके बच्चे वायनाड से सांसद राहुल गांधी और कांग्रेस की महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा राजनीतिक पिच पर खुलकर बैटिंग कर रहे हैं।

पंजाब में कैप्टन-सिद्धू लड़ाई को लेकर राजनीतिक माहिरों का मानना है कि इस लड़ाई में सिद्धू तो मात्र एक मोहरा हैं, असल में स्वाभिमान की इस लड़ाई में एक तरफ कै. अमरेन्द्र और दूसरी तरफ राहुल-प्रियंका खड़े हैं। राहुल-प्रियंका का एकमात्र उद्देश्य मुख्यमंत्री पंजाब के पंख कतरना है। राजनीतिक गलियारों की मानें तो ‘नेहरू-गांधी के वंशज किसी भी ऐसे पार्टी नेता को बर्दाश्त नहीं कर सकते, जो उनसे अधिक शक्तिशाली हो और उसका राजनीतिक कद ऊंचा हो।’यही एक बड़ा कारण है जिसके चलते मध्य प्रदेश से केंद्रीय नागरिक उड्डयन मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया और उत्तर प्रदेश से जितिन प्रसाद ने कांग्रेस छोड़ दी, जबकि राजस्थान के सचिन पायलट ने विगत वर्ष 10 जनपथ द्वारा उनके दावों की लगातार अनदेखी के बाद विद्रोह कर दिया था। कै. अमरेन्द्र भी ऐसा ही एक मामला है।

राजनीतिक माहिरों का कहना है कि चूंकि कै. अमरेन्द्र जीवन और राजनीतिक करियर के इस पड़ाव पर निर्णायक लड़ाई लडऩे की स्थिति में नहीं हैं, ऐसे में राहुल भी कठोर फैसले लेकर पार्टी में अपनी स्थिति को मजबूत करने के प्रयास कर रहे हैं। यही कारण है कि गांधी भाई-बहन मुख्यमंत्री कै. अमरेन्द्र के समानांतर पंजाब प्रदेश कांग्रेस कमेटी की कीमत पर सिद्धू की पीठ थपथपा रहे हैं। अन्यथा, भाजपा में 13 साल बिताने के बाद 2017 में कांग्रेस में शामिल होने वाले सिद्धू अपेक्षाकृत नए हैं।

कैप्टन की तुलना में सिद्धू को राहुल-प्रियंका से मिल रहा अधिक महत्व 
पिछले महीने से पंजाब व दिल्ली में हो रहे राजनीतिक परिदृश्यों को देखें तो कै. अमरेन्द्र की तुलना में सिद्धू को गांधी भाई-बहनों से अधिक महत्व मिल रहा है। सिद्धू से कैप्टन सरकार की कार्यशैली की शिकायतें मिलने के बाद कै. अमरेंद्र को समीक्षा बैठकों के लिए दिल्ली बुलाया गया। इस दौरान कैप्टन को 2017 के चुनाव घोषणापत्र को लागू करने और 18 सूत्रीय एजैंडे पर ध्यान केंद्रित करने को कहा गया था। इसके विपरीत सिद्धू न केवल गांधी परिवार से मिले, बल्कि कै. अमरेन्द्र के विरोध के बावजूद उन्हें प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बनाया गया। उन्होंने सोनिया गांधी को पत्र लिखकर शिकायत की थी कि आलाकमान पंजाब सरकार के कामकाज और राज्य की राजनीति में ‘जबरन हस्तक्षेप’ कर रहा है। कांग्रेस सूत्रों ने दावा किया कि 18 जुलाई को पी.पी.सी.सी. प्रधान की घोषणा होने पर 77 कांग्रेस विधायकों में से 39 विधायक 21 जुलाई को सिद्धू के आवास पर पहुंचे, जबकि कै. अमरेन्द्र की कैबिनेट के 16 मंत्रियों में से केवल चंद मंत्री ही सिद्धू से उनके आवास पर मिले, इनमें आम आदमी पार्टी (आप) से कांग्रेस में शामिल हुए तीन विधायक भी थे जोकि सिद्धू के नेतृत्व में शक्ति प्रदर्शन के लिए स्वर्ण मंदिर माथा टेकने के दौरान उनके साथ गए।

2017 में अमरेन्द्र ने कांग्रेस को पंजाब में भारी बहुमत दिलाया
कै. अमरेन्द्र और राहुल के बीच पनपी दरार करीब 6-7 वर्ष पुरानी है, जब अप्रैल 2015 में राहुल ने 56 दिनों के एकांतवास से लौट कांग्रेस में पीढ़ीगत बदलाव की बात कही थी तब कै. अमरेन्द्र ने राहुल और सोनिया गांधी को दूसरे वरिष्ठ नेताओं से बात करने को कहा था। वहीं सितंबर 2015 में जब कै. अमरेन्द्र को उनके दोस्त और पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के बेटे राहुल द्वारा 10 जनपथ पर कथित तौर पर ठुकरा दिया गया था, तो उन्होंने सार्वजनिक तौर पर कहा था, ‘राहुल को वास्तविकता की जांच की जरूरत है।’ उस समय तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष प्रताप बाजवा को प्रोमोट करने के कारण ही कै. अमरेन्द्र ने गांधी परिवार से नाता तोड़ लिया था। उस दौरान गांधी परिवार जिस तरह से पंजाब कांग्रेस के मामलों को संभाल रहा था, उससे नाराज कै. अमरेन्द्र ने भी बगावती सुर तेज करते हुए कांग्रेस छोडऩे और एक नई पार्टी बनाने की चर्चाएं तेज कर दी थीं। इन्हीं हालातों के चलते गांधी परिवार ने कैप्टन और प्रताप बाजवा के बीच चल रही कुर्सी की लड़ाई को लेकर अंतत: एक युद्ध विराम करके इसे शांत किया।कै. अमरेन्द्र को 2017 के विधानसभा चुनाव के लिए कांग्रेस के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में घोषित किया गया।  कै. अमरेन्द्र पंजाब में कांग्रेस को भारी बहुमत दिलाने में सफल हुए और उन्होंने करीब साढ़े 4 वर्ष का शासन पूरा किया है।

 

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