Edited By Vatika,Updated: 02 Dec, 2020 01:17 PM

हमारे देश में पर्यावरण को बचाने की कवायद 126 साल पहले शुरू हुई।
जालंधर(सूरज ठाकुर): हमारे देश में पर्यावरण को बचाने की कवायद 126 साल पहले शुरू हुई। ब्रिटिश रूल में पहली बार एक 1894 में एक एक्ट तैयार किया, जिसमें प्रदूषण फैलाने संबधी कानूनों को भी जोड़ दिया गया। विडंबना यह है कि 126 वर्षों में पर्यावरण को बचाने की लड़ाई में हम खुद प्रदूषण के शिकार हो चुके हैं। साल 2015 में दुनिया में प्रदूषण की वजह से 90 लाख लोगों की जानें गईं, जिनमें से 25 लाख भारतीय थे। वर्तमान में देश के भीतर 200 से अधिक पर्यावरण संबधी कानून हैं, इसके बावजूद हर साल देश में करीब 10 लाख लोगों की असमय मौत हो जाती हैं, वहीं 350,000 बच्चे अस्थमा से ग्रस्त हो जाते हैं। 24 लाख लोगों को हर साल इसके कारण होने वाली सांस की बीमारियों के कारण अस्पतालों का रुख करना पड़ता है। इसके अलावा देश में हर साल 49 करोड़ रुपए का काम के दिनों का नुकसान हो जाता है। हकीकत तो यह है कि प्रदूषण मुक्ति के कानूनों को ताक पर रख कर हम खुद ही प्रदूषण फैलाकर स्वयं को मौत के मुंह में धकेल रहे हैं।
प्रदूषण से 1 सैंकेंड में 3.39 लाख का नुकसान
बढ़ते हुए प्रदूषण के लिए हम सभी जिम्मेदार हैं, जो प्रदूषण फैलाते हैं वे कानून अपराधी तो हैं ही लेकिन जो प्रदूषण फैलाने वालों को रोकते नहीं हैं वे भी इस प्रकृति के गुनेहगार हैं। यहां यह समझने की जरूरत है कि पर्यावरण स्वच्छ रखना एक कानूनी मुद्दा ही नहीं अपितु पूरे विश्व के लिए संजीवनी है जो प्रदूषण के कारण कई तरह की बीमारियों से घिरता जा रहा है। प्रदूषण से स्वास्थ्य पर ही नहीं बल्कि देश की इकोनॉमी पर असर पड़ रहा है। एक रिपोर्ट के मुताबिक इससे प्रति सेकंड देश को 3.39 लाख रुपए का नुकसान होता है। अंतरराष्ट्रीय संस्था ग्रीनपीस साउथ ईस्ट एशिया ने सेंटर फॉर रिसर्च ऑन एनर्जी एंड क्लीन एयर की एक रिपोर्ट के मुताबिक साल की शुरुआत में भारत की कुल जीडीपी में प्रदूषण से 10.7 लाख करोड़ रुपये का नुकसान होने का अनुमान है, जो कि कुल जीडीपी का 5.4 फीसदी होगा।
आजादी के 27 साल बाद ली सुध
आजादी के 27 साल बीत जाने के बाद पर्यावरण से छेड़छाड़ और प्रदूषण को रोकने के लिए भारत सरकार ने नए सिरे से कवायद शुरू की और जल (प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण) अधिनियम, 1974 के अधीन केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की स्थापना की। प्रदूषण नियंत्रण को अमलीजामा पहनाने के लिए यह देश की सर्वोच्च संस्था है। इसके तहत ही हर राज्य में प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों का गठन किया गया है। वायु प्रदूषण नियंत्रण के लिये वर्ष 1981 में वायु (प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण), अधिनियम 1981 बनाया। जबकि खतरनाक रसायनों तथा अपशिष्टों को ध्यान में रखते हुये सरकार ने पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 लागू किया। वर्तमान पर्यावरण संरक्षण कानूनों को सख्ती से लागू करने को लेकर किसी भी राज्य की सरकारें गंभीर नहीं हैं।बीते करीब पांच साल से सुप्रीम कोर्ट राज्यों और केंद्र सरकार को लगातार फटकार लगा रहा है, जबकि सरकारें अदालत में एफिडेविट दायर करने के अलावा कुछ भी नहीं कर पा रही हैं।
प्रदूषण के मुख्य प्रकार और कानून
- द वाटर ( प्रीवेंशन एंड कंट्रोल ऑफ पॉल्यूशन ) एक्ट 1974
- द एयर (प्रीवेंशन एंड कंट्रोल ऑफ पॉल्यूशन) एक्ट 1981
- ध्वनि प्रदूषण (विनियमन और नियंत्रण) नियम, 2000
- भूमि प्रदूषण निवारण अधिनियम 1990 (पी.पी.ए.)
प्रत्यक्ष एक्ट जिन पर पूरी तरह अमल नहीं हुआ
- एन्वायरन्मेंट प्रोटेक्शन एक्ट, 1986
- वॉटर प्रिवेन्शन एंड कंट्रोल ऑफ पॉल्यूशन एक्ट-1974, 1988 में संशोधित।
- एयर प्रिवेन्शन एंड कंट्रोल ऑफ पॉल्यूशन एक्ट 1981, 1988 में संशोधित।
- पब्लिक लायबिलिटी इन्श्योरेंस एक्ट 1991
- द नेशनल एन्वायरन्मेंट ट्राब्यूनल एक्ट 1995
- वाइल्ड लाइफ एक्ट 1972, 1991 में संशोधित
- फॉरेस्ट कंजर्वेशन एक्ट, 1980, 1988 में संशोधित
- मोटर वेहिकल एक्ट 1988
आजादी के तुरंत बाद के एक्ट
- फ़ैक्टरी एक्ट1948
- बायलर एक्ट 1923
- रिवर बोर्ड एक्ट 1956
- इंडियन फिशरीज एक्ट
- एटोमिक एनर्जी एक्ट 1962
प्रदूषण रोकने के लिए नया दावा
"द कमीशन फॉर एयर क्वालिटी मैनेजमेंट इन नेशनल कैपिटल रीजन एंड एडज्वाइनिंग एरियाज 2020" अध्यादेश अक्टूबर माह में राष्ट्रपति द्वारा मंज़ूर कर लिया है। अभी तक देश में प्रदूषण को रोकने के लिए जितने भी कानून बने हैं इस अध्यादेश के बाद स्थापित कमीशन सर्वोच्च होगा। इसके तहत प्रदूषण फैलाने वालों को पांच साल की सजा और एक करोड़ रुपए का जुर्माना करने का प्रावधान है। उद्योग, बिजली संयंत्र, कृषि, परिवहन, आवासीय और निर्माण सहित बहु-क्षेत्रीय योजनाओं पर नकेल कसने की शक्तियां इस आयोग के पास होंगी। फिलवक्त इस कानून का सबसे ज्यादा विरोध किसान कर रहे हैं। दिल्ली धरने पर कृषि कानूनों को वापिस लेने की मांग कर रहे किसान इस कानून को भी रद्द करने की जिद्द पर अड़े हुए हैं। चूंकी उत्तरी भारत में पराली जलाने के कारण दिल्ली में प्रदूषण फैलने से आजकल के दिनों में हाहाकार मचने लगती है। द कमीशन फॉर एयर क्वालिटी मैनेजमेंट ने अभी जुर्माना लगाने का अंतिम ड्राफ्ट तैयार नहीं किया है, क्योंकि अभी हाल ही में आयोग का चेयरमैन नियुक्त किया गया है और प्रशासनिक ढांचे को खड़ा किया जा रहा है। फिलहाल पर्यावरण के मुद्दे सवा सौ साल से फाइलों में ही काम कर रहे हैं। ऐसा भी नहीं कहा जा सकता है कि पर्यावरण संक्षरण पर काम नहीं हो रहा है, पर ये बात भी किसी से छिपी नहीं है कि अरबों रुपए खर्च करने के बाद भी देश के लोगों को स्वच्छ हवा नसीब नहीं हो रही है।