Edited By Punjab Kesari,Updated: 21 Sep, 2017 11:14 AM
पति-पत्नी के बीच कई बार छोटी-छोटी बातों को लेकर इस कदर खटास पैदा हो जाती है कि उनकी शादी टूटने की कगार तक पहुंच जाती है लेकिन कई बार न्यायिक अदालतें इस तरह की शादियों को टूटने से बचाने के लिए सराहनीय भूमिकाएं अदा कर देती हैं।
अमृतसर (महेन्द्र): पति-पत्नी के बीच कई बार छोटी-छोटी बातों को लेकर इस कदर खटास पैदा हो जाती है कि उनकी शादी टूटने की कगार तक पहुंच जाती है लेकिन कई बार न्यायिक अदालतें इस तरह की शादियों को टूटने से बचाने के लिए सराहनीय भूमिकाएं अदा कर देती हैं।
ऐसा ही एक मामला उस समय सामने आया जब स्थानीय न्यायिक जज सम्मुखी ने अपनी अदालत में पति-पत्नी के बीच चल रहे वैवाहिक विवाद को अपने ही स्टाइल से सुलझाते हुए 11 वर्ष पुरानी शादी को टूटने से बचा लिया। उनके प्रयासों से न सिर्फ पटीशनर पत्नी ने अपने पति के खिलाफ दायर किया गया सिविल मुकद्दमा ही वापस लिया, बल्कि पति-पत्नी अदालत से एक साथ रवाना हुए व जज साहिबा के सामने एक साथ इकट्ठे ही रहने का वायदा भी किया।
जानकारी के अनुसार चौड़ा बाजार, जालंधर निवासी एक महिला की शादी 19-3-2006 को करतार नगर, छहर्टा निवासी एक ऐसे युवक के साथ हुई थी, जो किसी नामी टी.वी. कंपनी में टी.वी. मैकेनिक था। इस शादी से उनका एक लड़का भी है। महिला ने अपने पति के खिलाफ 28-3-2016 को स्थानीय लोअर कोर्ट में हिन्दू मैरिज एक्ट की धारा 125 (3)के तहत सिविल मुकद्दमा दायर कर उसे तथा उसके नाबालिग बच्चे के लिए गुजारा भत्ता लगाने की मांग की थी। इस मामले की आजकल सिविल जज सम्मुखी की अदालत द्वारा सुनवाई की जा रही थी, जिसमें मौजूदा सिविल जज सम्मुखी की अदालत ने पटीशनर महिला के लिए 2,500 रुपए प्रति माह तथा उसके नाबालिग बेटे के लिए 2,000 रुपए प्रति महीना खर्चा लगाया हुआ था।
पति-पत्नी दोनों का अलग-अलग पक्ष सुनते हुए यह अनुमान लगाया गया कि अगर दोनों की सही तरीके से काऊंसलिंग करवाई जाए तो इनका वैवाहिक विवाद समाप्त हो सकता है। न्यायिक जज सम्मुखी ने अपने स्तर पर पति-पत्नी को सबसे पहले 31-3-2017 को एक महीने की अवधि के लिए एक साथ रहने का सुझाव दिया था। तत्पश्चात हर महीने कोशिश करने पर महीने में पति-पत्नी दोनों के बीच चल रहे पुराने गिले-शिकवे पूरी तरह से समाप्त हो चुके थे।