किसान आंदोलन को लेकर केंद्र सरकार चिंतित, अमित शाह ने संभाला मोर्चा

Edited By Tania pathak,Updated: 27 Nov, 2020 04:52 PM

central government worried about farmer movement

केन्द्र सरकार द्वारा पारित किए गए तीन कृर्षि बिल अब धीरे-धीरे किसानों के विरोध के चलते केन्द्र सरकार के लिए भी गले की फांस बनते जा रहे हैं...

पठानकोट (शारदा): केन्द्र सरकार द्वारा पारित किए गए तीन कृर्षि बिल अब धीरे-धीरे किसानों के विरोध के चलते केन्द्र सरकार के लिए भी गले की फांस बनते जा रहे हैं। किसानों की आय दोगुनी करने का दावा करते हुए केन्द्र ने तीन कानून पारित किए थे जिसके अंतर्गत कार्पोरेट लोग किसानी में इन्फ्रास्ट्रक्चर क्रेट करके इस व्यवसाय में कूद सकते हैं और बड़ी इन्वैस्टमैंट करके किसानी को एक प्राफ्टेबल काम के रूप में विकसित कर सकते हैं परंतु पंजाब में कांग्रेस पार्टी द्वारा इस मुद्दे पर सबसे पहले अवाज बुलंद की गई कि यह तीन कानून जो उस समय आर्डीनैंस के रूप में थे किसानों के साथ-साथ पंजाब सरकार के लिए भी आने वाले समय में नुकसान दायक साबित होंगे। 

सोच समझकर दिया गया दिल्ली चलो का नारा
कानून के अनुसार अगर कोई व्यवसायी सीधे किसानों से सामान खरीदता है यां एग्रीमैंट करता है तो उस पर सरकार को मंडी फीस देने की आवश्यकता नहीं। अभी तक पंजाब सरकार लगभग 4 हजार करोड़ रुपये मंडी फीस के रूप में वसूलती है जो गेहूं ओर चावल की सरकारी एजंसियों द्वारा की जा रही खरीद के उपर लगाई गई है। धीरे-धीरे गत छह माह के दौरान राजनीतिक दलों ने इस मुद्दे को खूब हवा दी और अंत: किसानों को यह लगने लगा कि निश्चित रूप में यह कानून मंडी सिस्टम को खत्म कर देगा और धीरे-धीरे छोटे किसानों की उपज को रोलने के लिए मजबूर कर देगा। इसी वस्तुस्थिति में पंजाब में किसान आंदोलन शुरू किया गया जिसमें 31 जत्थेबंदियों ने अपने-अपने स्तर पर सड़कों, टोल प्लाजा एवं रेलवे पटरियों पर धरने प्रारम्भ किए। मालवे की बहुत सारी किसान जत्थेबंदियां कई दशकों से कार्यरत हैं यह जत्थेबंदियां कैडर बेस हैं और लैफ्ट मूवमैंट से प्रभावित हैं। लैफ्ट हमेशा ही किसानों एवं मजदूरों को एकजुट करने और उसे अपने आधार के रूप में इस्तेमाल करता रहा है। 

इतने लंबे समय के बाद इन किसान जत्थेबंदियों की अपने-अपने आधार क्षेत्र में पकड़ बन चुकी है, इसी का परिणाम है कि इतने सुनियोजित ढंग से आंदोलन चल रहे हैं। दिल्ली चलो का नारा भी बहुत सोच समझकर दिया गया इसके लिए गांव स्तर पर खूब तैयारियां हुई, घर-घर जाकर लोगों से राशन एकत्रित किया गया, फंड की व्यवस्था की गई, सारा कार्य इतना बढ़िया ढंग से किया गया कि यह आंदोलन जितना मर्जी लम्बा चले संगठनों को किसी चीज की कमी आती नहीं दिख रही। 

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कांग्रेस सरकार तो शुरू से ही इस आंदोलन के साथ थी अब धीरे-धीरे आम आदमी पार्टी और अकाली दल भी पूरी तरह से तन-मन और धन से इस आंदोलन से जुड़ चुका है और किसान जत्थेबंदियों के सामने नत्मस्तक है। जिस प्रकार से हरियाने के सारे बार्डर तोड़ते हुए किसान दिल्ली की ओर कूच कर गए हैं और केन्द्र सरकार उन्हें किसी मैदान में प्रदर्शन देने के लिए स्थान देने हेतु राजी हो गई है वह इस बात का द्योतक है कि वह इन किसान आंदोलन को लेकर पूरी तरह से चिंतित है और अब इस आंदोलन का मुकाबला एवं समाधान करने के लिए कमान गृहमंत्री अमित शाह ने संभाल ली है। अमित शाह पंजाब से सारी वस्तुस्थिति एकत्रित कर रहे हैं और उसी के अंतर्गत केन्द्र अपनी अगली राजनीति बनाएंगे। केन्द्र को एक बात समझ आनी शुरू हो गई कि इस आंदोलन में क्योंकि जितनी भी किसान जत्थेबंदियां है वह तुजुर्बेकार हैं उनको किसी प्रकार से भ्रमित नहीं किया जा सकता वह अपने लक्ष्य को लेकर पूरी तरह से स्पष्ट हैं कि उन्हें किस प्रकार से केन्द्र को झुकाना है। ऊपर से सभी राजनीतिक दलों की स्पोर्ट का होना 'सोने पर सुहागा है। यह किसान आंदोलन जो आज की स्थिति में केन्द्र के लिए गले की फांस बनजरें न रहा है उसपर आगे आने वाले समय में किस प्रकार से इसका हल होता है उसपर सभी की नजरें टिक गई हैं। 

अमित शाह पर टिकी सभी की नजरें 
तीनों कानूनों को जो बहुत ही जोर-शोर से पारित किए गए हैं को एकाएक रद्द करना केन्द्र की मोदी सरकार के लिए कोई आम बात नहीं परंतु जिस प्रकार से पंजाब के किसानों ने जबरदस्त आंदोलन किया है उसका प्रभाव धीरे-धीरे हरियाणा और यू.पी. तक जाना शुरू हो गया है, वहां पर भी किसानों की सोच इस आंदोलन को लेकर सकारात्मक है। ऐसी परिस्थितियों से बचने के लिए पहले कृर्षि मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर एवं रक्षा मंत्री जिनका पिछौकड़ किसानी है राजनाथ सिंह इस काम में जुट चुके हैं परंतु पहले भी जितने आंदोलन दिल्ली में हुए हैं और केन्द्र सरकार के लिए चिंता का विषय रहे हैं यह आंदोलन उसी ओर जा रहा है। किसान लंबे समय तक दिल्ली में टिके रह सकते हैं और इस मांग पर अड़े रह सकते हैं कि कानून रद्द किए जाएं अब केन्द्र ऐसी स्थिति में किस प्रकार से इस आंदोलन का समाधान कर पाता है इसपर सभी की नजरें टिकी हुई हैं क्योंकि गृह मंत्री अमित शाह अभी तक भाजपा के लिए संकट मोचन तुल्य हैं और उनसे सरकार को बड़ी उम्मीदें हैं कि वह इसका भी समाधान कर पाएं।

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