नतीजों के बाद दांव पर लगा सुशील रिंकू, शीतल अंगुराल और विक्रमजीत चौधरी का राजनीतिक करियर !

Edited By Kalash,Updated: 05 Jun, 2024 11:15 AM

careers of rinku sheetal angural and vikramjit chaudhary at stake

जालंधर लोकसभा चुनाव दौरान हुई ऊठापटक को लेकर कई राजनीतिक नेताओं का करियर दांव पर लग गया है।

जालंधर : जालंधर लोकसभा चुनाव दौरान हुई ऊठापटक को लेकर कई राजनीतिक नेताओं का करियर दांव पर लग गया है। इनमें मुख्य तौर पर पूर्व सांसद सुशील रिंकू, पूर्व विधायक शीतल अंगुराल और कांग्रेस के फिल्लौर विधानसभा हलका से विधायक विक्रमजीत सिंह चौधरी का नाम मुख्य तौर पर शामिल है। हलांकि इन नेताओं के अलावा अनेक सैकेंड लाइन नेता भी शामिल हैं, जो चुनाव दौरान अपनी पार्टियों को अलविदा कर दूसरी पार्टियों में शामिल हो गए थे, इनमें से दल-बदलने वाले नेताओं के समर्थकों की संख्या ज्यादा है।

सुशील रिंकू की बात करें तो कांग्रेस की टिकट से वेस्ट हलका से 2022 के चुनाव लड़ने के दौरान वह आप उम्मीदवार शीतल अंगुराल के हाथों पराजित हो गए थे। परंतु राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा के दौरान सांसद संतोख चौधरी के अकस्मात निधन के बाद रिक्त हुई सीट पर 2023 में हुए लोकसभा उपचुनाव के दौरान सुशील रिंकू कांग्रेस को छोड़ कर आप में शामिल हो गए। उनका मुख्य मुकाबला दिवंगत सांसद चौधरी की पत्नी करमजीत चौधरी से हुआ और रिंकू जीत हासिल कर सांसद बन गए। परंतु 2024 के चुनाव में वह सत्तारूढ़ आम आदमी पार्टी से दूसरी बार मिली टिकट को छोड़ भाजपा में शामिल हो गए। भाजपा की टिकट पर आज उन्हें बड़ी हार का मुंह देखना पड़ा है। 

अब रिंकू केवल हलका इंचार्ज बन कर रह गए हैं, परंतु बड़ी बात है कि कांग्रेस से पहले आप और फिर भाजपा में आए रिंकू को क्या अगले 5 सालों तक जिला का भाजपा कैडर झेल पाएगा। सूत्रों की मानें तो कईं भाजपा नेताओं ने अंदर ही अंदर कांग्रेस व आप नेता को एकाएक उनके सिर पर बिठाने के फैसले को उचित न मानते हुए चुनाव दौरान भीतरघात करके अपना विरोध दर्ज कराया है। अब देखना होगा कि आने वाले समय में रिंकू भाजपा में अपनी पैठ और कद को कायम रखने में किस हद तक सफल होते हैं। अगर भाजपा कैडर ने उन्हें आने वाले समय में पार्टी के निर्णयों में कोई खास तवज्जों न दी तो रिंकू के पास राजनीतिक करियर बचाना बेहद मुश्किलों भरा साबित होगा। वैस्ट विधानसभा हलका की बात करें तो विधायक शीतल अंगुराल विधायक पद से अपना इस्तीफा देते हुए सुशील रिंकू के साथ भाजपा में शामिल हो गए थे। विधायक अंगुराल चुनाव प्रचार दौरान भाजपा की स्टेजों से लेकर हरेक प्रचार माध्यम में खूब बढ़-चढ़ कर शामिल हुए।

अंगुराल खुलेआम आम आदमी पार्टी का भी विरोध करते रहे परंतु 1 जून को मतदान के बाद विधायक अंगुराल ने यू-टर्न लेते हुए विधानसभा स्पीकर को पत्र लिखकर अपना इस्तीफा वापस ले लिया था परंतु स्पीकर की तरफ से जारी पत्र में उन्हें क्लीयर किया गया कि उनका इस्तीफा तो पहले ही स्वीकार किया जा चुका है। आप सरकार की गुगली से विधायक अंगुराल भी अपनी विधायकी गंवा कर चारों खाने चित्त हो गए हैं और अब वैस्ट हलका की सीट विधायकविहीन हो चुकी है। इसी दौरान शीतल ने तो अपने सोशल मीडिया अकाऊंट्स से मोदी की फोटो और पोस्ट भी डिलीट कर दी थी। अब वैस्ट हलका में उपचुनाव होने यकीनी माने जा रहे हैं। यूं तो शीतल अंगुराल इस फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट जाने की बात कर रहे हैं, परंतु कानूनी माहिरों का मानना है कि उन्होंने विधायक पद से इस्तीफा अपनी मर्जी से दिया था, इस कारण हाईकोर्ट से उन्हें राहत मिलना बेहद मुश्किल भरा होगा।

इतना ही नहीं अब जालंधर से सांसद चुनाव कांग्रेस जीत चुकी है और चन्नी के नेतृत्व में हलका में कांग्रेस मजबूत होकर उभर आई है। अब बड़ा सवाल पैदा होता है कि क्या मोदी की तस्वीर और पोस्ट डिलीट कर इस्तीफा वापस लेने वाले शीतल को भाजपा उपचुनाव में टिकट देगी? अगर अंगुराल को टिकट मिलती है तो सत्तारूढ़ आम आदमी पार्टी शीतल की हार को यकीनी बनाने को एड़ी चोटी का जोर लगा देगी, इतना ही नही पंजाब में भाजपा को जीरो और आप को 3 सीटें मिलने के बाद 7 सीटें हासिल करने वाली कांग्रेस के पक्ष में लहर भी बन चुकी है। ऐसे में शीतल के लिए अपने हलके में जीत को हासिल कर पाना कांटों से भरी राह से कम नहीं होगा।

अब फिल्लौर विधानसभा हलका और चौधरी परिवार की बात करें तो स्व. सांसद संतोख चौधरी परिवार को टिकट नहीं मिलने से खफा होकर उनकी पत्नी करमजीत चौधरी ने लोकसभा चुनाव दौरान ही भाजपा ज्वाइन कर ली थी। उनके इकलौते पुत्र और फिल्लौर विधानसभा हलका से विधायक विक्रमजीत सिंह चौधरी ने कांग्रेस आलाकमान द्वारा चरणजीत चन्नी को टिकट देने का खुलकर विरोध किया। इतना ही नहीं चन्नी को हराने की खातिर विक्रमजीत अपने अपने दांव-पेच खेल फिल्लौर हलका से भाजपा के पक्ष में वोट डलवाने को लेकर काम करते रहे। विक्रमजीत सिंह चौधरी परिवार को उम्मीद थी कि देश भर में मोदी की चल रही लहर से रिंकू चुनाव जीत जाएंगे परंतु चुनाव परिणामों में हुआ बिल्कुल उलट।

केंद्र में इंडिया गठबंधन 233 सीट हासिल कर बेहद मजबूत स्थिति में पहुंच चुका है। वहीं कांग्रेस से भीतरघात और पार्टी विरोधी सुरों के कारण अब वह कांग्रेस लीडरशिप के बीच बैठने लायक नहीं रहे। उनका विधायक कार्यकाल भी अभी अढ़ाई वर्ष से ज्यादा का बाकी है। जालंधर लोकसभा के सांसद कांग्रेसी और राज्य की सत्ता पर काबिज आम आदमी पार्टी के बीच विक्रमजीत के लिए अपना राजनीतिक करियर आगे बढ़ा पाना बेहद पेचीदा साबित होगा। अगर वह कांग्रेस को छोड़ अपनी मां के साथ भाजपा में चले जाते हैं तो दल-बदलू कानून के तहत उनका विधायक पद भी चला जाएगा। ऐसे समय में विक्रमजीत के लिए आगे खुआं पीछे खाई जैसे हालात पैदा होना यकीनी माने जा रहे हैं। जो भी हो अब रिंकू, शीतल और विक्रमजीत इन तीनों नेताओं के लिए राजनीतिक डगर पर चलना बेहद कठिन साबित होना लाजिमी माना जा रहा है।

नगर निगम चुनावों में टिकट के दावेदार रिंकू समर्थकों के चेहरों की उड़ी हवाइयां

सुशील रिंकू के साथ पहले कांग्रेस से आप और फिर आप से भाजपा में शामिल होने वाले सैकेंड लाइन नेताओं की रिंकू की हार के बाद हवाइयां उड़ गई हैं। उन्हें यकीन था कि रिंकू फिर से जीत हासिल करेंगे और सांसद के ओहदे पर रहते हुए अपने संसदीय क्षेत्र में लंबित नगर निगम चुनाव में वह उन्हें टिकट दिला देंगे। पहले कांग्रेस से आप में जाने वाले वार्ड स्तर के ऐसे नेता कई महीनों इसी जोड़-तोड़ में लगे रहे कि उन्हें आप से टिकट कैसे मिल सकेगी। क्योंकि कांग्रेस में रहने के दौरान उनके संबंधित वार्डों में पहले से ही आप के दावेदार चुनाव लड़ने की तैयारी कर चुके थे। ऐसे हालात में कंग्रेस को छोड़ने वाले और निगम चुनाव लड़ने के इच्छुक हरेक नेता के सींग संबंधित वार्ड में आप के पुराने कैडर से फंस रहे थे।

रिंकू सांसद तो बन गए परंतु हालात ऐसे बन गए कि आम आदमी पार्टी एंटी इंकबैंसी से खौफजदा होकर चाह कर भी नगर निगम चुनाव करा पाने की हिम्मत नहीं जुटा पाई। अभी कांग्रेस के नेता आप में पैर भी ढंग से नहीं जमा पाए थे कि रिंकू ने आप की टिकट को छोड़ भाजपा में जाने का फैसला कर लिया। अब सैकेंड लाईन के रिंकू समर्थक मरते क्या न करते। उन्हें भी मजबूरीवश रिंकू के पीछे-पीछे भाजपा का दरवाजा खटखटा अपने गले में भगवा सिरोपा पहनना पड़ा। अगर भाजपा की बात करें तो वह नगर निगम लेवल पर पहले से ही खासी मजबूत है और विगत वर्षों में लगातार 10 साल उनका मेयर बना रहा है। ऐसे में वार्ड स्तर पर पैठ बना चुकी भाजपा के पार्षद लेवल के नेताओं की काट रिंकू समर्थकों के पास शायद नहीं थी, परंतु उन्हें आसरा था कि रिंकू ने तो चुनाव जीत ही जाना है, ऐसे में वार्ड लेवल के चुनाव में सांसद का बड़ा हस्तक्षेप रहेगा और उनके हाथ गफ्फे लग जाएंगे। परंतु अब ऐसे नेताओं का आज रिंकू की हार के बाद चैन उड़ना तय माना जा रहा है।

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