Edited By swetha,Updated: 20 Jun, 2018 09:33 AM

जम्मू-कश्मीर में भाजपा द्वारा जिस तरह से महबूबा मुफ्ती सरकार से समर्थन वापस लेकर सियासी धमाका किया गया है। उसके बाद राजनीतिक गलियारे में यह चर्चाएं शुरू हो गई हैं कि क्या अब उसका अगला लक्ष्य पंजाब तथा बिहार बनने जा रहा है। भाजपा ने पंजाब में अकाली...
जालंधर(विशेष): जम्मू-कश्मीर में भाजपा द्वारा जिस तरह से महबूबा मुफ्ती सरकार से समर्थन वापस लेकर सियासी धमाका किया गया है। उसके बाद राजनीतिक गलियारे में यह चर्चाएं शुरू हो गई हैं कि क्या अब उसका अगला लक्ष्य पंजाब तथा बिहार बनने जा रहा है। भाजपा ने पंजाब में अकाली दल तथा बिहार में नीतीश कुमार के साथ गठजोड़ किया हुआ है। शेष सहयोगी दलों से या तो उसका नाता टूट चुका है या फिर सहयोगी दलों ने भाजपा को छोड़ दिया है।
अब क्या भाजपा द्वारा अगले चरण में पंजाब में अकाली दल तथा बिहार में नीतीश कुमार को भी अलविदा कहा जा सकता है। इसके पीछे यह तर्क भी दिए जा रहे हैं कि दोनों ही राज्यों पंजाब व बिहार में भाजपा के सहयोगी दल लगातार उपचुनाव हारते आ रहे हैं। पंजाब में कांग्रेस सरकार का गठन 2017 में हुआ था। उसके बाद अकाली दल ने 4 चुनावों में कांग्रेस के हाथों मात खाई। पंजाब में गुरदासपुर लोकसभा सीट के उपचुनाव में भाजपा व अकाली गठजोड़ कांग्रेस के हाथों बुरी तरह से पराजित हुआ। उसके बाद 3 कार्पोरेशन शहरों अमृतसर, जालंधर व पटियाला में अकाली-भाजपा गठबंधन को पराजय का सामना करना पड़ा। उसके बाद लुधियाना कार्पोरेशन के चुनाव में भी अकाली दल व भाजपा को कांग्रेस के हाथों मात झेलनी पड़ी। फिर शाहकोट विधानसभा सीट का उपचुनाव हुआ तो वहां भी वह अपनी परम्परागत सीट हार गया।

अब गत दिनों अकाली दल से जुड़े ऑल इंडिया सिख स्टूडैंट्स फैडरेशन ने जोधपुर नजरबंदों का केस उठा लिया है। फैडरेशन ने केंद्र सरकार के खिलाफ मोर्चा खोला है। फैडरेशन का मानना है कि 5 साल नजरबंद रहे 365 सिखों को मुआवजे के खिलाफ केंद्र सरकार द्वारा हाईकोर्ट में रिट पटीशन दायर करने से सिख जगत में रोष पाया जा रहा है। सिख हलकों में यह चर्चा चल रही है कि शायद अकाली दल के कहने पर फैडरेशन ने केंद्र के खिलाफ मोर्चा खोला हो। अभी धीरे-धीरे स्थिति स्पष्ट होगी। अकाली दल के अंदर भी केंद्र की मोदी सरकार को लेकर अच्छा प्रभाव नहीं पाया जा रहा है। पिछले दिनों भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने चाहे अकाली लीडरशिप से मिलकर स्थिति को संभालने की कोशिश की थी परंतु इससे यह संकेत भी मिला है कि अकाली दल के रोष को शांत करने के लिए ऐसा कदम उठाया गया था।

दूसरी ओर भाजपा के अंदर यह चर्चा चल रही है कि भाजपा आर.एस.एस. के दबाव में पूरे देश में अकेले चुनाव लडऩे की तैयारियों में लगी हुई है। ऐसा करके भाजपा देश में अपने वोट बैंक का पता करना चाहेगी। आर.एस.एस. लम्बे समय से इसी उद्देश्य की पूर्ति में जुटी हुई है। बिहार में भाजपा ने नीतीश कुमार सरकार के साथ हाथ मिलाया हुआ है। नीतीश पर भरोसा नहीं किया जा सकता। पहले वह लालू यादव व कांग्रेस के साथ थे। नीतीश कुमार परिस्थितियां देख कर चलते हैं इस बात का आभास भाजपा को भी है।