आखिर कौन कर रहा है अकाली दल को पंजाब में कमजोर?

Edited By swetha,Updated: 18 Jan, 2020 12:21 PM

after all who is making the akali dal weak in punjab

जिला स्तर पर शिअद को सेंध लगाने की तैयारी में टकसाली

जालंधर(बुलंद): शिरोमणि अकाली दल की हालत पंजाब में दिन-ब-दिन कमजोर होती दिखाई दे रही है। सुखदेव सिंह ढींडसा और उनके बेटे परमिंद्र ढींडसा द्वारा पार्टी को अलविदा कहने के बाद से पंजाब में ऐसे अनेकों नाम सामने आ रहे हैं जो अकाली दल में रहकर घुटन महसूस कर रहे हैं और जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आएंगे वैसे-वैसे वे सारे अकाली दल के किसी मजबूत बदल की ओर शिफ्ट हो सकते हैं। पार्टी के जानकार सूत्रों की मानें तो इस समय पार्टी में प्रकाश सिंह बादल और सुखबीर बादल की अपेक्षा हरसिमरत बादल व बिक्रम सिंह मजीठिया की ज्यादा मर्जी चल रही है, जिससे न सिर्फ वे नेता दुखी हैं जो प्रकाश सिंह बादल के साथ दशकों से बिना किसी विरोध के चलते रहे हैं बल्कि वे नेता भी दुखी हैं जो सुखबीर के करीबियों में जाने जाते हैं। 


जिला स्तर पर शिअद को सेंध लगाने की तैयारी में टकसाली  

जानकारी के अनुसार बड़े नेताओं को तो दूसरी पार्टियों से तोड़कर अपने में मिलाने की कोशिशें सारे करते हैं पर टकसाली अकाली दल की ओर से जिला स्तर के छोटे नेताओं को शिअद से तोड़कर टकसाली अकाली दल से जोडऩे के लिए खास रणनीति तैयार की गई है। इसके लिए उन नेताओं की ड्यूटी लगाई गई है जोकि टकसाली अकाली दल के नेताओं से दशकों तक जुड़कर शिअद के लिए काम करते रहे हैं। ऐसे नेताओं ने जमीनी स्तर पर शिअद वर्करों और नेताओं से सम्पर्क करना शुरू कर दिया है तथा जैसे-जैसे चुनावी दिन नजदीक आएंगे वैसे-वैसे शिअद की इम्तिहान की घडिय़ां सख्त होनी तय है पर शिअद में यह सवाल गर्माता जा रहा है कि आखिर कौन है जो पंजाब में शिअद को कमजोर करने में लगा है।

टकसाली अकाली दल को केंद्र का सहयोग

इस बात से कौन वाकिफ नहीं है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सुखदेव सिंह ढींडसा के साथ संबंध कितने नजदीकी हैं। ऐसे में सुखदेव ढींडसा का अकाली दल से अलग होना और खुलकर अकाली दल का विरोध करना तथा बाद में अपने बेटे को जोकि अकाली दल की सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे हैं, उन्हें भी अकाली दल छोड़ने के लिए मना लेना अपने आप में चर्चा का विषय है।  इतना ही नहीं इस सारे तोड़-बिछोड़े के खेल में एक बार भी अकाली दल की गठबंधन पार्टी भाजपा के किसी बड़े नेता ने ढींडसा से इस बारे बात तक नहीं की कि वह अकाली दल से दूर क्यों जा रहे हैं और न ही किसी ने इनकी नाराजगी दूर करने की कोशिश की। ऐसे में ढींडसा पिता-पुत्र का टकसाली अकाली दल की ओर झुकाव व टकसाली अकाली दल की बैठकों में मजबूत हाजिरी से पता चलता है कि यह सब बिना किसी बड़ी सपोर्ट के संभव नहीं है।  मामले बारे राजनीति जानकार बताते हैं कि ढींडसा को किसी और की नहीं भाजपा के ही केंद्रीय स्तर के बड़े नेताओं की मदद अंदरखाते मिल रही है। वर्ना क्या मोदी चाहते तो ढींडसा को अकाली दल में बने रहने के लिए मना नहीं सकते थे? पर उनका ऐसा न करना और शिरोमणि अकाली दल के नाराज नेताओं को एकजुट कर शिअद के विरोध में खड़े करना क्या मोदी-शाह की जोड़ी की कूटनीति का हिस्सा है? यह भी चर्चा का विषय है।

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