जब गांधी जी ने महिलाओं को इज्ज़त बचाने के लिए अहिंसा छोड़ लड़ने को कहा ...

Edited By Vatika,Updated: 02 Oct, 2020 11:52 AM

when gandhiji left non violence to save women

देश भर में गैंगरेप और उसके बाद मर्डर की घटनाओं ने देश को शर्मसार कर दिया है।

जालंधर( सूरज ठाकुर):  देश भर में गैंगरेप और उसके बाद मर्डर की घटनाओं ने देश को शर्मसार कर दिया है। उत्तर प्रदेश में एक ही सप्ताह में हुई दो गैंगरेप की घटनाओं में एक लड़की का मर्डर कर दिया गया तो दूसरी के हाथ पांव तोड़ दिए गए। महिलाओं पर अत्याचार की घटनाओं का यह सिलसिला विश्व भर में सदियों से चलता आ रहा है। दूसरे विश्व युद्ध में सैनिकों द्वारा शत्रु देश की महिलाओं का रेप करना युद्ध नीति का हिस्सा बन चुका था। गांधी जयंती पर आपको बता रहे हैं कि इसी दौरान एक महिला ने रेप के बारे में पत्र लिख कर महात्मा गांधी से कुछ सवाल पूछे थे। गांधी जी महिला के जवाब का उत्तर अपने अखबार ‘हरिजनबंधु’में लिखा था कि यदि किसी महिला के साथ कोई रेप का प्रयास करता है तो उसे हिंसा और अहिंसा के बारे में नहीं सोचना चाहिए। ऐसी विकट स्थिति में अपनी रक्षा के लिए कोई उसे जो भी साधन मिले उसे हथियार के रूप में इस्तेमाल करना चाहिए।

हमले पर नारी को करनी चाहिए शरीर की रक्षा
गांधी जी महिला के सवालों का जवाब देते हुए एक लेख लिखा था, जिसका शीर्षक ‘बलात्कार के समय क्या करें?’था। उन्होंने इस लेख में लिखा था यदि नारी की असमत लूटने के लिए उस पर कोई हमला करता है तो उस समय आत्मरक्षा करना ही उसका धर्म है। ऐसी विपदा में नारी को हिंसा-अहिंसा की चिंता छोड़कर अपने सम्मान और शरीर की रक्षा करनी चाहिए। रक्षा के लिए उसे जो कुछ भी दिखे उसे हथियार के रूप में इस्तेमाल करना चाहिए।  ईश्वर ने नारी को जो नाखून, दांत और जो बल दिया है वह उनका उपयोग अपनी रक्षा के लिए कर सकती है। ऐसे करते हुए वह लड़ते हुए अपने प्राण तक दे सकती है। गांधी जी ने लेख में लिखा कि "जिस स्त्री या पुरुष ने मरने का सारा डर छोड़ दिया है, वह न केवल अपनी ही रक्षा कर सकेंगे, बल्कि अपनी जान देकर दूसरों की रक्षा भी कर सकेंगे"।  

लड़ते-लड़ते जान देने की प्रेरणा
गांधी जी यह भी मानते थे कि महिलाओं को स्वयं में निर्भयता, आत्मबल और नैतिक बल भी पैदा करनी होगी. जैसा कि वे 14 सितंबर, 1940 को ‘हरिजन’ में लिखते हैं कि ‘यदि स्त्री केवल अपने शारीरिक बल पर या हथियार पर भरोसा करे, तो अपनी शक्ति चूक जाने पर वह निश्चय ही हार जाएगी।’इसलिए जान देने की प्रेरणा या इसका साहस होना कोई बुरी बात नहीं है, लेकिन वह पहले ही हार मान ले तो यह आत्महत्या होगी। सम्मान जनक जीवन की चाह में लड़ते-लड़ते जान देने की प्रेरणा से दूसरी महिलाएं भी ऐसी घटनाओं के खिलाफ खुलकर सामने आएंगी। गांधी जी ने महिला के पत्र का जवाब देते हुए यह भी लिखा था जिस का बलात्कार हुआ हो, वह स्त्री किसी भी प्रकार से तिरस्कार या बहिष्कार की पात्र नहीं है। वह तो दया की पात्र है। ऐसी स्त्री तो घायल हुई है। इसलिए हम जिस तरह घायलों की सेवा करते हैं, उसी तरह हमें उसकी सेवा करनी चाहिए।         

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