Edited By Updated: 31 Mar, 2017 12:22 PM
एन.डी.ए. की प्रधानमंत्री फसली बीमा योजना रिजेक्ट करने के बाद अब पंजाब अपनी फसली बीमा कंपनी बनाएगी।
चंडीगढ़ः एन.डी.ए. की प्रधानमंत्री फसली बीमा योजना रिजेक्ट करने के बाद अब पंजाब अपनी फसली बीमा कंपनी बनाएगी। कैबिनेट ने इसे 21 मार्च को ही मंजूरी दे दी है। अब कृषि डिपार्टमैंट से बीमा कंपनी बनाने का मसौदा अगली कैबिनेट मीटिंग में पेश करने को कहा है।
बता दें, मोदी सरकार ने किसानों की आमदनी दोगुणी करने के लिए जो योजनाएं शुरू की हैं उसमें फसली बीमा योजना भी है लेकिन इसमें कई खामियां होने के कारण बादल सरकार ने इसे रिजैक्ट कर दिया था लेकिन इसका विकल्प नहीं दिया। अब कैप्टन सरकार ने अपनी बीमा कंपनी बनाने का फैसला किया है। हरियाणा सरकार ने केंद्र की योजना अडॉप्ट कर ली है और इसकी खामियों के नुकसान किसान झेल रहे हैं।
किसानों का कर्ज माफ किया जाएगा, यह नारा कांग्रेस ने चुनाव में दिया था। यह कैसे होगा? विभाग इस पर काम कर रहा है। विचार चल रहा है कि कर्ज केवल उनका माफ किया जाए जो टूट चुके हैं और अपनी जमीन बेचकर भी कर्ज उतार नहीं पा रहे। एक विचार यह भी चल रहा है कि केवल ब्याज माफ किया जाए और मूल को ब्याज मुक्त करके इसे री स्ट्रक्चर किया जाए।
बादल ने क्यों रिजैक्ट कर दी थी बीमा योजना
1. केंद्र की योजना में गांव को इकाई बनाया गया है जिसमें पूरे गांव की फसल का आकलन किया जाना था। इसके बाद ही तय होता कि खराब हुई या नहीं। तेज बरसात या ओले आदि कई बार कुछ क्षेत्र में ही पड़ते हैं। कई बार तो दो खेतों के बीच ही नुकसान अलग-अलग होता है। इसलिए पूरे गांव को एक इकाई मानने से तो योजना का लाभ ही नहीं है।
2. कुल फसल का यदि दस फीसदी नुकसान होगा तो ही बीमा कंपनी मुआवजा देगी। इससे कम पर मुआवजा ही नहीं दिया जाएगा। अब पंजाब में औसतन खराबा ही सात फीसदी होता है। ऐसे में तो पहले ही तय है कि कंपनी क्लेम देगी ही नहीं। फिर इस योजना का किसानों को फायदा ही क्या?
3.प्रधानमंत्री फसल बीमा में प्रीमियम सीधे बैंक से काटा जाता है। ताकि कंपनी को पैसा समय पर मिले। इससे नुकसान यह है कि एक किसान एक से ज्यादा बैंकों से कर्ज लेता है। अब यदि उसका दो बैंकों में एकाऊंट है तो दोनों बैंकों से पैसा कट जाता है। हरियाणा में ऐसा हो चुका है।
4. प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना में किसानों के हितों पर ध्यान ही नहीं दिया गया। किसान कैसे क्लेम करे, कहां अपील करे। इस बात का ध्यान ही नहीं रखा गया ।
बीमा कंपनी की जवाबदेही तय ही नहीं है। ऐसे में कंपनी किसानों का शोषण कर सकती है। हरियाणा में अभी तक किसानों को धान का क्लेम ही नहीं मिला है।
5. योजना में यह प्रावधान है कि कोई भी स्टेट बीमा कंपनी से टैंडर मंगा कंपनी फाइनल कर सकता है। हरियाणा में हुआ यह है कि निजी बीमा कंपनियों को शामिल किया गया। हरियाणा में धान का अभी तक क्लेम नहीं दिया गया, वहीं गेहूं के क्लेम की तो प्रक्रिया भी शुरू नहीं हुई। निजी कंपनी का एजेंडा किसान हित नहीं अपना मुनाफा है।