Edited By Tania pathak,Updated: 17 Jul, 2020 04:45 PM

वर्करों और लोगों के मन में यह बात ओर गहरी होती जाती है कि कांग्रेस का अब कोई भविष्य नहीं, इसलिए अपने सुनहरे भविष्य के लिए ...
पठानकोट (शारदा): कोरोना आफ़त कारण पंजाब सरकार के लिए साल 2020 जहाँ पूरी तरह के साथ आर्थिक और राजनितिक तौर पर व्यर्थ रहा, वही पंजाब में फिर अपनी सरकार लाने के अपने मकसद में भी कांग्रेस पार्टी कामयाब होती नज़र नहीं आ रही क्योंकि साल 2021 एक तरह से चुनाव का साल है। हाईकमान की फ़ैसले लेने में देरी का प्रभाव अब पंजाब सरकार और कांग्रेस पार्टी पर साफ़ तौर पर पड़ना शुरू हो गया है और रही -सही कसर राजस्थान में चल रहे राजनितिक घटनाक्रम ने निकाल कर रख दी है। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और डिप्टी मुख्यमंत्री सचिन पायलट जो कि राजस्थान कांग्रेस के प्रदेश प्रधान भी हैं, में चल रही जंग का साफ़ प्रभाव पंजाब के कांग्रेसियों और युवा वर्करों पर पड़ता देखा जा सकता है। वर्करों और लोगों के मन में यह बात ओर गहरी होती जाती है कि कांग्रेस का अब कोई भविष्य नहीं, इसलिए अपने सुनहरे भविष्य के लिए युवा वर्ग किसी ओर दल में जाने के बारे सोच सकता है।
कांग्रेस पार्टी के हाथों में से निकलता जा रहा समय
दूसरी तरफ़ अकाली दल (बादल), अकाली दल (डेमोक्रेटिव), भारतीय जनता पार्टी और आम आदमी पार्टी दिन प्रति दिन जितना संभव है अपने -अपने दलों को मज़बूत करने के लिए हाथ -पैर मार रही है। समय तेज़ी के साथ कांग्रेस पार्टी के हाथों में से निकलता जा रहा है क्योंकि कोरोना नवंबर -दिसंबर तक कहीं जाने वाला नहीं है और कांग्रेस को सरकार साथ-साथ अपनी पार्टी की गतिविधियों को दूसरे पार्टियाँ की तरह कोरोना के साथ ही चलानीं पड़ेंगी। यदि कांग्रेस अपने वर्करों को राजनितिक -सामाजिक गतिविधियों में नहीं लगा पाती तो वह भारी निराशा में चले जाएंगे और ऐसी स्थिति का लाभ लेने के लिए दूसरी पार्टियों वाले हमेशा तैयार रहते हैं।
जिस तरह के साथ प्रताप सिंह बाजवा ने केंद्र की सरकार से अपनी जेड सक्योरिटी बहाल करवाने में सफलता प्राप्त की है, राजनितिक माहिर उसका विश्लेषण कर रहे हैं। पूर्व प्रदेश प्रधान और राज सभा मैंबर बाजवा दावा कर चुके हैं कि साल 2022 में वह चुप बैठने वाले नहीं हैं, इसलिए राजनीति में वह किस तरह के साथ अपनी शतरंज बिछाते हैं, उस पर लोगों की नज़रों हैं।
नवजोत सिंह सिद्धू भी निश्चित तौर पर मध्यप्रदेश और राजस्थान में राहुल गांधी के करीबियों के हुए हश्र के बाद चिंतित होंगे क्योंकि कांग्रेस में उनकी सारी राजनीति राहुल, प्रियंका गांधी के आस -आसपास टिकी हुई है। यदि उनको कांग्रेसी हाईकमान की तरफ से कोई मज़बूत स्पोर्ट नहीं मिली तो प्रदेश कांग्रेस में अपना सर्वोच्च स्थान बनाना उनके लिए लगभग असंभव है।