निर्भया पर बात खत्म नहीं हुई, 46 साल में भारत में बढ़े हैं रेप के 1,353 फीसदी मामले

Edited By swetha,Updated: 07 Jan, 2020 05:50 PM

rape case

आजादी के बाद से ही महिलाओं को सुरक्षा प्रदान नहीं कर पाया शासन व प्रशासन

जालंधर (सूरज ठाकुर): आखिर देशवासियों को जिस दिन का इंतजार था वो दिन आ ही गया। निर्भया के चारो आरोपियों को फोसी की सजा सुना दी गई। बात यहीं खत्म नहीं हुई है, अभी भी हालात ऐसे हैं कि देश की आम जनता महिलाओं पर हो रहे अत्याचार और रेप की घटनाओं से तंग आ चुकी है। नैशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो (एन.सी.आर.बी.) के आंकड़ों पर नजर डाली जाए तो पता चलता है कि 1971 से लेकर 2017 तक 46 साल में रेप के मामलों में 1,353 फीसदी बढ़ौतरी हुई है। इसके मुकाबले जनसंख्या वृद्धि की भी बात करें तो इसमें 1971 (करीब 56 करोड़) से 2017 (करीब सवा सौ करोड़) तक 220 फीसदी वृद्धि हुई। 

आजादी के बाद से ही महिलाओं को सुरक्षा प्रदान नहीं कर पाया शासन व प्रशासन
एनकाऊंटर सही था या गलत यह तो हैदराबाद पुलिस ही जानती है। इसके बाद उत्पन्न होने वाली परिस्थितियों का पुलिस को शायद अच्छी तरह पता था। मामले की जांच होगी यह सभी जानते थे, फिर भी गैंगरेप के आरोपी भागने की कोशिश के दौरान ढेर कर दिए गए। हकीकत यह है कि शासन और प्रशासन आजादी के बाद से ही महिलाओं को सुरक्षा प्रदान नहीं कर पाया और रेप के मामलों में भारी इजाफा होता चला गया। यही नहीं इसी के उलट कई महिलाओं के उत्पीडन के आरोपी संसद और विधानसभाओं में पहुंच गए। 

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पहले नहीं होता था महिला  के प्रति अपराधों का रिकॉर्ड
1971 में देशभर में रेप के 2,487 मामले दर्ज किए गए थे जोकि 2017 में 33 हजार 6 सौ 58 तक पहुंच गए हैं। यहां यह समझना जरूरी है कि ये मामले वे हैं जो कागजों में हैं। इसके अलावा कितने मामलों को दबा दिया गया इसका आकलन करना मुश्किल है। एन.सी.आर.बी. के आपराधिक मामलों का लेखा-जोखा 1953 से रख रहा है। 1971 में महिलाओं के प्रति अपराध के मामलों का रिकॉर्ड रखा जाने लगा। इससे पहले महिलाओं के साथ रेप के आंकड़े एन.सी.आर.बी. की रिपोर्ट में शामिल नहीं किए जाते थे। इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि देश में आजादी के बाद से ही महिलाओं से कैसा बर्ताव किया जाता रहा होगा। 1953 से 1971 में जिन आपराधिक मामलों का रिकार्ड रखा जाता था उनमें मर्डर, अपहरण, डकैती, घरों के ताले तोड़कर चोरी करना, सांप्रदायिकता फैलाना, ठगी और मारपीट आदि शामिल था। एन.सी.आर.बी. ने महिलाओं से हुए रेप के आंकड़ों की 1971 से 2013 तक तुलना भी की लेकिन 2014 के बाद तुलनात्मक विश्लेषण सार्वजनिक नहीं किया जा रहा।

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रेप बढ़ते रहे, शासन-प्रशासन सोया रहा
आजादी से पहले महिलाएं अपने प्रति हो रहे अत्याचारों के प्रति जागरूक ही नहीं थीं और उनकी आवाज पुरुष प्रधान समाज में दबा दी जाती थी। 1990 के दशक में जब वे अपने अधिकारों के प्रति जागरूक भी होने लगीं तो भी महिलाओं के प्रति अपराधों का मामला थमा नहीं। हालांकि एन.सी.आर.बी. के आंकड़े चौंकाने वाले आते रहे, उस पर भी सरकारों ने गौर नहीं किया। 2006 में एन.सी.आर.बी. की रिपोर्ट में बताया गया था कि 1971 के मुकाबले 2006 में रेप के मामलों में 777 फीसदी बढ़ौतरी हुई है। 1971 में यह संख्या जहां 2,784 थी वह 2006 में बढ़कर 19 हजार 3 सौ 48 हो चुकी थी। इसी तरह एन.सी.आर.बी. के रेप के आंकड़ों में 2007 में 833, 2008 में 863, 2009 में 868, 2010 में 891, 2011 में 973 और 2013 में सारे रिकॉर्ड तोड़ते हुए 1,355 फीसदी बढ़ौतरी हो चुकी थी।

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मोदी सरकार के कार्यकाल के आंकड़े
2014 में मोदी सरकार सत्ता में आई तो रेप केसों में 1,355 फीसदी बढ़ौतरी उसे विरासत में मिली। 1971 की 2014 से तुलना करें तो रेप केसों में 1,486 फीसदी बढ़ौतरी हुई। एन.सी.आर.बी. की रिपोर्ट कहती है कि 2014 में 36 हजार 9 सौ 68 रेप की घटनाएं हुईं। 2015 में इस दर में कमी आई और यह थोड़ी-सी सिमट कर 1,375 फीसदी पर आ गई। इस दौरान रेप के 34 हजार 210 मामले रिपोर्ट हुए। एन.सी.आर.बी. ने जब 2016 तक की रिपोर्ट जारी की तो आंकड़े फिर चौंकाने वाले थे। 1971 के मुकाबले इस साल रेप दर में 1,566 फीसदी बढ़ौतरी हुई। 

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रेप के 28,156 विचाराधीन आरोपी भी बंद हैं जेलों में
एन.सी.आर.बी. के 2017 के आंकड़ों के मुताबिक देश की 1,361 जेलों में बंद 4,50,696 कैदियों में से 50,669 कैदी महिलाओं पर अत्याचार के मामलों में विचाराधीन हैं। इनमें रेप के आरोपियों की संख्या 55.6 फीसदी यानी 28,156 है। दहेज उत्पीडन में महिलाओं की हत्या करने के आरोप में 13,741 यानी 27.1 फीसदी कैदियों के मामले भी अदालतों में चल रहे हैं। पति और रिश्तेदारों द्वारा महिलाओं के उत्पीडन के 9.1 फीसदी यानी 4,608 विचाराधीन कैदी भी जेलों में बंद हैं। महिलाओं पर हमला करने के आरोप में 3,426 यानी 6.8 फीसदी आरोपी भी जेलों की पनाह में हैं। इसके अलावा महिलाओं का अपमान करने वाले 735 यानी 1.5 फीसदी आरोपी भी जेलों की शरण में हैं। जबकि 10,892 बलात्कारी सजा होने के बाद जेलों में जीवन व्यतीत कर रहे हैं। 

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