आलाकमान को खटक सकता है नवजोत सिंह सिद्धू का रवैया, नहीं कर सकेगी हक में पैरवी

Edited By Vatika,Updated: 03 Apr, 2021 10:23 AM

navjot singh sidhu s attitude may knock the high command

पंजाब की राजनीति में अहम स्थान रखने वाले नवजोत सिंह सिद्धू के पासे सही नहीं पड़ रहे हैं।

चंडीगढ़: पंजाब की राजनीति में अहम स्थान रखने वाले नवजोत सिंह सिद्धू के पासे सही नहीं पड़ रहे हैं। कांग्रेस के कुछ धुरंधर उनकी गलतियां निकाल कर किनारे करना चाहते हैं तो दूसरी ओर वह मिले मौके को भुनाने में खुद भी गलती कर रहे हैं।बीते अर्से दौरान कई राज्यों में कांग्रेस के पक्ष में प्रचार से कन्नी काट कर उन्होंने अपने विरोधियों को बैठे-बिठाए ऐसा मौका दिया जिससे हाईकमान भी उनके हक में पैरवी नहीं कर सकेगा।

कांग्रेस आलाकमान ने इस बार भी सिद्धू को बड़ा सम्मान देते हुए पश्चिम बंगाल और असम के स्टार प्रचारकों की सूची में स्थान दिया। खास बात यह है कि मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेंद्र का नाम पश्चिम बंगाल की सूची में है मगर असम वाली में नहीं। हर पार्टी का नेता तरसता है कि पार्टी नेतृत्व उसे स्टार प्रचारकों की सूची में स्थान दे। स्टार प्रचारक होने का सीधा मतलब होता है कि वह आलाकमान के चहेतों में शुमार हैं।सिद्धू को भी हाईकमान का चहेता माना जाता है। खासकर राहुल और प्रियंका गांधी के साथ उनकी कैमिस्ट्री से हर कोई वाकिफ है। लेकिन स्टार प्रचारकों की लिस्ट में नाम होने के बाद भी सिद्धू का चुनाव प्रचार से किनारा करना अब आलाकमान को भी खटक सकता है। पश्चिम बंगाल में पंजाबियों और खासकर सिखों की तादाद काफी है जिनमें से ज्यादातर ट्रांसपोर्ट के बिजनैस से जुड़े हैं।

लंबे समय से पश्चिम बंगाल के बाशिंदे इन ट्रांसपोर्टरों के परिवार की भी वहीं वोट है। इसके अलावा यह ट्रांसपोर्टर अपने कारिंदों पर भी मजबूत पकड़ रखते हैं। सिद्धू प्रचार के लिए जाते तो पार्टी को थोड़ी ताकत और मिलती। कुछ समय में विभिन्न राज्यों के विधानसभा चुनाव की तरह ही सिद्धू पार्टी प्रत्याशियों के प्रचार से दूरी बनाए हुए हैं। चुनाव से निपटते ही सिद्धू विरोधी खेमा इस मुद्दे को लेकर हाईकमान के समक्ष सरगर्म होने के मूड में है। 79 बसंत देख चुके कैप्टन अमरेंद्र के पास तो स्वास्थ्य कारणों और कोरोना के कारण भीड़भाड़ से दूरी रखने का मजबूत तर्क है जिनका हवाला देकर प्रचार से दूर रहने की उनकी बात को कोई भी दरकिनार नहीं कर सकता मगर सिद्धू का मामला थोड़ा अलग है। कांग्रेस सूत्र भी कहते हैं कि प्रचार करके वह हाईकमान पर पंजाब सरकार में वापसी के लिए दबाव बना सकते थे। लेकिन संगठन के लिए काम न करके यह मौका भी गंवा दिया। यही सिद्धू जब भाजपा में थे तब देश भर में भगवा पार्टी का धुआंधार प्रचार करते थे।

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