जानिए पंजाब के गुरदासपुर स्थित दीनानगर के बारे में कुछ खास बातें, जानें ऐतिहासिक कहानी

Edited By Subhash Kapoor,Updated: 28 Nov, 2024 05:24 PM

know some special things about dinanagar

गुरदासपुर जिले का शहर दीनानगर इतिहास में एक खास महत्व रखता है। मुग़ल सूबेदार अदीनाबेग द्वारा 1730 में बसाए गए शहर दीनानगर को ब्रिटिश काल में पहले ज़िला मुख्यालय बनने का गौरव प्राप्त हुआ और इससे पहले खालसा सरकार की गर्मियों की राजधानी भी रहा।

दीनानगर (हरजिंद्र सिंह गोराया) : गुरदासपुर जिले का शहर दीनानगर इतिहास में एक खास महत्व रखता है। मुग़ल सूबेदार अदीनाबेग द्वारा 1730 में बसाए गए शहर दीनानगर को ब्रिटिश काल में पहले ज़िला मुख्यालय बनने का गौरव प्राप्त हुआ और इससे पहले खालसा सरकार की गर्मियों की राजधानी भी रहा। करीब तीन सदी पुराना यह शहर अपनी नींव से लेकर अब तक कई उतार-चढ़ाव देख चुका है और कई ऐतिहासिक घटनाओं का गवाह रहा है।

1730 में पंजाबी पुत्र मुग़ल सूबेदार अदीनाबेग खान द्वारा बसाए गए शहर दीनानगर का प्रारंभिक नाम अदीनानगर रखा गया, जो धीरे-धीरे दीनानगर बन गया। इस शहर को छह बड़े और खुले दरवाजों और मजबूत चारदीवारी से सुरक्षित किया गया था। इन दरवाजों के नाम थे तारागढ़ी दरवाजा, आव्यांवाला दरवाजा, अवांखी दरवाजा, पनियाड़ी दरवाजा, मगलाली दरवाजा और मडियां वाला दरवाजा। इनमें से तारागढ़ी दरवाजा छोड़कर बाकी पांच दरवाजे अब भी मौजूद हैं, लेकिन इनमें से केवल मगलाली दरवाजा अपनी असली स्थिति में बचा हुआ है।

शहर अदीनानगर में उस समय मुस्लिम आबादी सबसे अधिक थी। शहर के मुहल्लों में मस्जिदें और कुएं बनाए गए थे। 1947 में भारत-पाक विभाजन के बाद, यहां की सारी मुस्लिम आबादी पाकिस्तान चली गई और पाकिस्तान से आई हिंदू आबादी को यहां बसाया गया। इसके बाद से अदीनानगर पूरी तरह से हिंदू बहुल क्षेत्र बन गया।

मुग़ल शासन के बाद जब सिख मिस्लों का दौर आया, तो अदीनानगर शहर को कन्हैया मिस्ल के अधीन कर लिया गया। 1811 में महाराजा रणजीत सिंह ने कन्हैया मिस्ल के इलाके अदीनानगर शहर को अपने राज्य में मिला लिया। खालसा सरकार के शासन के दौरान, अदीनानगर की अहमियत बढ़ी। महाराजा रणजीत सिंह को अदीनानगर का वातावरण और यहाँ के अम्बा के बाग़ इतने पसंद आए कि उन्होंने इसे खालसा सरकार की गर्मियों की राजधानी बना लिया।

महाराजा रणजीत सिंह की मृत्यु के बाद 1839 में अदीनानगर का भाग्य भी बदल गया। खालसा राज के शासकों के लगातार मारे जाने से पूरे क्षेत्र में डर का माहौल फैल गया और 1849 में अंग्रेजों ने खालसा राज को अपने अधीन कर लिया। मार्च 1849 में अदीनानगर को ज़िला मुख्यालय बना दिया गया, लेकिन केवल तीन महीने बाद, अंग्रेज़ों ने इसे बटाला और फिर ग़ुरदासपुर ज़िले के मुख्यालय में बदल दिया।

आज अदीनानगर शहर का नाम दीनानगर हो चुका है और यह गुरदासपुर जिले की तहसील का हिस्सा है। हालांकि, आधुनिकता के इस दौर में दीनानगर की ऐतिहासिक इमारतों को नजरअंदाज किया गया है और महराजा रणजीत सिंह की शाही बारांदरी, रानियों का हमाम, और जनरल वैंटूरा की आवास जैसी इमारतें खंडहर में बदल चुकी हैं। सरकार की ओर से इन ऐतिहासिक धरोहरों के संरक्षण की जरूरत है ताकि आने वाली पीढ़ियाँ इसे देखकर अपना इतिहास जान सकें।

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