Edited By Urmila,Updated: 19 Nov, 2024 10:24 AM
गत दिन थाना 4 के एस.एच.ओ. ने मैडिकल सुपरिंटैंडैंट गीता कटारिया को नोटिस भेजकर इस संबंधी सारी रिपोर्ट मांगी है।
जालंधर विशेष): समाजसेवी एवं रोगी कल्याण समिति के पूर्व सदस्य संजय सहगल और समाजसेवी नरेश लल्ला द्वारा सिविल अस्पताल में लाश की दुर्गति के संबंध में राज्यपाल और मुख्यमंत्री भगवंत सिंह मान को भेजी गई शिकायत का संज्ञान लेते हुए डी.जी.पी गौरव यादव एवं हैल्थ सैक्रेटरी कुमार राहुल द्वारा इस केस की इंवैस्टिगेशन संबंधी जारी किया गया पत्र पुलिस कमिश्नर जालंधर को भेजा गया है।
उक्त पत्र का हवाला देते हुए थाना 4 के एस.एच.ओ. हरदेव सिंह को जांच सौंपी गई है। उक्त मामले में गत दिन थाना 4 के एस.एच.ओ. ने मैडिकल सुपरिंटैंडैंट गीता कटारिया को नोटिस भेजकर इस संबंधी सारी रिपोर्ट मांगी है। इस नोटिस में एम.एस. दफ्तर को आदेश जारी किया गया है कि इस मामले संबंधी बुधवार तक रिपोर्ट सौंपी जाए ताकि पता चल सके कि उक्त सारे मामले में आखिर सिविल अस्पताल के सरकारी अधिकारियों द्वारा एक लावारिस लाश की इस दुर्गति करने के मामले में आखिर किस स्तर पर लापरवाही हुई है।
सूत्रों की मानें तो इस मामले में सिविल अस्पताल के मैडिकल स्टाफ द्वारा बेहद गहरी लापरवाही की गई है क्योंकि एक अज्ञात लाश के सिविल अस्पताल में रखवाने के मामले में कानून 72 घंटों के अंदर पुलिस को सूचित करना होता है, लेकिन इस मामले में मैडिकल स्टाफ द्वारा कोई रिकॉर्ड नहीं रखा गया और अज्ञात लाश की फाइल बनाई गई थी। जिसपर समाजसेवी संजय सहगल द्वारा इस मामले में शिकायत भेजी गई।
मोटी कमाई करने वाले सरकारी अधिकारी एवं मुलाजिम 50 दिनों तक रहे आंखें मूंदे रहे
सिविल अस्पताल में मानवीय अंगों की तस्करी की शंका जताते हुए संजय सहगल ने कहा कि उक्त लाश के 50 दिनों तक गल-सड़ने के बाद पुलिस के ध्यान में उक्त मामला लाया गया, जिसमें अस्पताल के अधिकारियों सहित मुलाजिमों ने इस कदर लापरवाही की कि मोटी कमाइयां करने वाले सिविल अस्पताल के अधिकारी और मुलाजिम इस गली-सड़ी लाश संबंधी कोई सुध लेने की बजाय इस मामले को दबाने में लग गए।
हालांकि सिविल अस्पताल के स्टाफ के रूप में काली कमाइयां कर रहीं काली भेंड़ों का अब पुलिस जांच में पता चल पाएगा या नहीं, यह जांच का विषय है लेकिन बड़ा सवाल यह है कि इस सारे मामले में क्या पुलिस अपनी कार्रवाई कर पाएगी या नहीं।
खुद की साख बचाने के लिए सिविल अस्पताल के अधिकारियों से काम लेने के लिए पुलिस और डॉक्टरों की चलती है फेवर गेम
वहीं बता दें कि सिविल अस्पताल के अधिकारियों खासकर डॉक्टरों और ऊपरी स्तर पर बैठे अधिकारियों की पुलिस अधिकारियों एवं मुलाजिमों के साथ फेवर (एहसान) गेम चलती है। सैटिंग होने के चलते अगर कई बार किसी आरोपी को ज्यादा मारा पीटा जाए और मैडिकल कराने के दौरान रिपोर्ट अपने हक में बनवाने के लिए पुलिस और डॉक्टरों की मिलीभगत चलती है इसलिए डॉक्टर और पुलिस की सैटिंग के चलते कई मामलों में व्यक्ति को सही इंसाफ नहीं मिल पाता है।
किस सैटिंग के बल पर पुलिस नहीं कर पाई कार्रवाई
वहीं संजय सहगल ने शक जाहिर करते हुए कहा कि एक व्यक्ति जो 16 मई को अस्पताल में दाखिल हुआ और 17 मई की सुबह उसकी मौत हो गई और लाश सिविल अस्पताल की मोर्चरी में आ गई, सात महीने बीत जाने के बाद दोबारा उसकी जांच शुरू हुई है, यह काफी हैरानी करने वाला है। इससे भी बड़ी हैरानी वाली बात यह है कि अगर 17 मई को लाश मोर्चरी में रखी गई तो लंबे समय तक मामले को दबाकर रखने के बाद 1 जुलाई को इसकी शिकायत पुलिस को दी गई तो लगभग 50 दिन तक आखिर किस सैटिंग के बल पर पुलिस द्वारा कोई कार्रवाई नहीं की गई और किस तरह उक्त मामले को दबाया गया। खासकर थाना 4 जोकि महज कुछ ही कदमों की दूरी पर है। पुलिस द्वारा क्यों नहीं इंसानियत के नाते दोषियों पर कार्रवाई की गई।
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