ग्लोबल सिख कौंसिल की ऐतिहासिक तख्तों के प्रबंधन में सरकारी हस्तक्षेप खत्म करने की मांग

Edited By Subhash Kapoor,Updated: 25 Oct, 2024 09:08 PM

global sikh council made this demand in the management of historical takhts

दुनिया भर के 31 राष्ट्रीय स्तर के सिख संगठनों की प्रतिनिधि संस्था, ग्लोबल सिख कौंसिल (जी.एस.सी.) ने सर्वसम्मति से सिखों के दो ऐतिहासिक तख्त साहिब -तख्त श्री पटना साहिब, बिहार और तख्त श्री हजूर साहिब, महाराष्ट्र को स्थानीय सिख संगत और गुरुद्वारा...

सिखों की भावनाओं के अनुरूप हो पूर्वी भारत के समय के कानूनों में संशोधन: कंवलजीत कौर

चंडीगढ़ : दुनिया भर के 31 राष्ट्रीय स्तर के सिख संगठनों की प्रतिनिधि संस्था, ग्लोबल सिख कौंसिल (जी.एस.सी.) ने सर्वसम्मति से सिखों के दो ऐतिहासिक तख्त साहिब -तख्त श्री पटना साहिब, बिहार और तख्त श्री हजूर साहिब, महाराष्ट्र को स्थानीय सिख संगत और गुरुद्वारा समितियों के सक्रिय समर्थन से सरकारी नियंत्रण से मुक्त करने का निर्णय लिया गया है। 

यह प्रस्ताव लेडी सिंह कंवलजीत कौर, ओ.बी.ई. की अध्यक्षता में जी.एस.सी. की लंदन में हुई वार्षिक आम बैठक के दौरान पारित किया गया। 'सिख मर्यादा’ की कमियों को उजागर करते हुए जी.एस.सी. अध्यक्ष ने बताया कि दोनों तख्तों पर चल रही वर्तमान धार्मिक प्रथाएं बुनियादी सिख सिद्धांतों का उल्लंघन करती हैं। इसके अलावा, दोनों तख्त साहिबान के प्रबंधन के लिए गठित समितियों और बोर्डों में नामित सदस्यों के पास इन गुरुद्वारा साहिबान के प्रबंधन और धार्मिक प्रथाओं पर नामांतर अधिकार है।

जी.एस.सी. के कानूनी मामलों की समिति के अध्यक्ष जागीर सिंह मलेशिया ने इस संबंधी अपना शोध पत्र प्रस्तुत करते हुए कहा कि उपरोक्त दोनों तख्त वर्तमान में 70 साल पुराने कानूनों द्वारा शासित हैं जिसमें पटना साहिब संविधान और उपनियम -1957 और नांदेड़ सिख गुरुद्वारा सचखंड श्री हजूर अपचलनगर साहिब एक्ट-1956 के जरिए नियंत्रित किया जा रहा है। ये दोनों कानून इन तख्तों के धार्मिक और प्रशासनिक मामलों में अत्यधिक सरकारी हस्तक्षेप की अनुमति देते हैं। 

उन्होंने सिख संगत की भावनाओं के अनुरूप इन पुराने कानूनों में तत्काल संशोधन पर जोर देते हुए कहा कि 1716 में बाबा बंदा सिंह बहादुर की शहादत के बाद ये दोनों तख्त कभी भी सिखों के कब्जे में नहीं रहे और ये पुराने कानून और अप्रिय धाराएँ सिख संगत द्वारा पवित्र गुरुद्वारों का प्रशासन चलाने की स्वतंत्रता को भी कमज़ोर करती हैं। उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि इन धार्मिक संस्थानों के प्रशासन में सरकारी हस्तक्षेप ने न केवल लोकतांत्रिक प्रक्रिया को बाधित किया है, बल्कि गुरुद्वारा साहिबान की स्वायत्तता पर भी सवाल है।

कौंसिल ने किसी भी प्रस्तावित अखिल भारतीय सिख गुरुद्वारा कानून को खारिज करते हुए कहा कि इस तरह का केंद्रीय कानून बनाने के बजाय, मौजूदा गुरुद्वारा कानूनों में सुधार करने की आवश्यकता है ताकि प्राचीन सिख सिद्धांतों का सम्मान किया जा सके और स्थानीय सिख संगत बिना किसी सरकारी हस्तक्षेप के अपने धार्मिक संस्थानों का प्रबंधन कर सकें।
जी.एस.सी. ने दुनिया भर के सिखों से अपील की है कि वे गुरुद्वारा व्यवस्थाओं में सरकारी हस्तक्षेप का विरोध करें और ईस्ट इंडिया समय के कानूनों में संशोधन के लिए एक जोरदार अभियान चलाएं ताकि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 26 में निहित आदर्श वाक्य के अनुसार सिख मामलों का पूर्ण नियंत्रण सिख समुदाय में निहित हो।

इस बैठक में अन्य लोगों में हाऊस ऑफ लॉर्ड्स के सदस्य लॉर्ड इंद्रजीत सिंह विंबलडन, इंडोनेशिया से डॉ. करमिंदर सिंह ढिल्लों, अमेरिका से परमजीत सिंह बेदी, आयरलैंड से डॉ. जसबीर सिंह पुरी, भारत से राम सिंह राठौड़, हरशरण सिंह और हरजीत सिंह ग्रेवाल, यूके से सतनाम सिंह पूनिया और नेपाल से किरणदीप कौर संधू भी उपस्थित थे।
 

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