पहले अकालियों की, अब कांग्रेस की सरपरस्ती में पल रहा माइन माफिया

Edited By swetha,Updated: 30 Jan, 2020 12:04 PM

first the akalis now the mine mafia is under congress s patronage

गरीब होते किसान और चांदी कूटता माइन माफिया

जालंधर (विशेष): हाल ही में जम्मू के कठुआ में अवैध खनन पर हुए हाई वोल्टेज ड्रामे ने एक बार फिर से पंजाब में हो रही अवैध माइनिंग और सरकार की कारगुजारी पर सवालिया निशान लगा दिए हैं। भले ही इस मामले में रावी के किनारे निरीक्षण करने आए माइनिंग अधिकारी जम्मू के थे लेकिन नदी के तट पर अवैध खनन करने के आरोप कैप्टन सरकार में कांग्रेस के विधायक पर लगे हैं। अब कैप्टन सरकार माइन माफिया को संरक्षण देने से अपना पल्ला कितना भी झाड़ ले लेकिन इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि सरकार की ही सरपरस्ती में माइन माफिया के हौसले बुलंद हैं। यहां इस बात का जिक्र करना भी लाजिमी है कि 2017 से पहले माइन माफिया का राज्य से सफाया करने का नारा लेकर ही कांग्रेस सत्ता पर काबिज हुई थी। आरोप था कि माइन माफिया अकालियों की सरपरस्ती में पल रहा है। 

चुनाव से पहले कैप्टन ने खाई थी पंजाब को माइन माफिया से निजात दिलाने की कसम

2016 की बात करें तो पंजाब विधानसभा चुनाव चरम पर था। इस दौरान कैप्टन अमरेन्द्र सिंह ने गांव-गांव जाकर जहां पंजाब से 4 सप्ताह के भीतर नशे को खत्म करने की कसम खाई थी वहीं दूसरी ओर राज्य के लोगों को माइन माफिया से निजात दिलाने का वायदा किया था। मार्च, 2017 में सत्ता परिवर्तन हुआ और कैप्टन ने राज्य की बागडोर अपने हाथों में ले ली। अभी सरकार को बने करीब 3 महीने ही हुए थे कि माइन माफिया का सफाया करने का नारा देने वाली कैप्टन सरकार के अपने ही मंत्री राणा गुरजीत सिंह माइनिंग घोटाले में फंस गए। मामला बहुत ही दिलचस्प था।  तत्कालीन मंत्री राणा गुरजीत सिंह के पूर्व रसोइए अमित बहादुर जिसके बैंक खाते में 5 हजार रुपए से भी कम थे, उसने 26 करोड़ की बोली लगाकर रेत खनन का अधिकार हासिल किया था। कैप्टन सरकार में 19 अप्रैल, 2017 को खनन बोली लगाई गई थी। खनन का अधिकार हासिल करने वाले अमित बहादुर को 21 और 22 मई तक सारी रकम जमा करवानी थी जबकि जांच में पाया गया था कि अमित बहादुर के भारतीय स्टेट बैंक के खाते में अप्रैल (2017) तक महज में 4840 रुपए थे।

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अप्रैल में हुआ घोटाला उजागर,जून में राणा गुरजीत को मिल गई क्लीनचिट

इस घटना ने पूरे प्रदेश की जनता को आश्चर्यचकित कर दिया था। सरकार बने अभी 3 महीने हुए थे और 5 साल का सफर बाकी था। इस दौरान जनता को यह तो समझ आ गया था कि उसने कांग्रेस पर भरोसा करके उसे सत्ता तो दिला दी मगर हालात अकाली सरकार जैसे ही सामने आए। बेबस जनता को समझाने के लिए मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेन्द्र सिंह दुविधा में आ गए थे। एक तरफ उन्हें सबसे चहेते मंत्री राणा गुरजीत सिंह को बचाना था और दूसरी तरफ सरकार की साख दाव पर लग चुकी थी। औपचारिकता के लिए मामले की जांच शुरू करवाई गई। राणा से इस्तीफा ले लिया गया। सेवानिवृत्त जज जे.एस. नारंग की अध्यक्षता में एक सदस्यीय आयोग का गठन हुआ। अप्रैल में यह घोटाला उजागर हुआ था और जून में इस कमीशन ने राणा गुरजीत सिंह को क्लीन चिट दे दी।

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गरीब होते किसान और चांदी कूटता माइन माफिया

अब आपको याद दिलाते हैं 2015 की जब राज्य में अकाली-भाजपा गठबंधन की सरकार काबिज थी। इस दौरान लंबे अर्से से सत्ता के लिए ललचा रही कांग्रेस ने पूरे राज्य में माइन माफिया के खिलाफ मोर्चा खोल रखा था। कांग्रेस का आरोप था कि अकाली राज में रेत-बजरी सोने के भाव बिक रही थी। माइन माफिया किसानों से जमीन जबरन लीज पर लेकर 100-100 फुट तक खुदाई करता था और रेत-बजरी को ऊंचे दामों पर बेच देता था। सतलुज, ब्यास और रावी के किनारों पर लगे क्रशरों ने उपजाऊ जमीन की सेहत बिगाड़ रखी थी। जमीन के मालिक किसान गरीब होते जा रहे थे और माइन माफिया उनकी जमीनों से सोना-चांदी कूट रहा था। कांग्रेस के सत्ता में आने की ड्रग माफिया के बाद यह दूसरी वजह थी। 

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लोग भूल जाते हैं मुद्दे

बड़े स्तर पर हुए इस माइन घोटाले को लोग ज्यादा देर तक याद नहीं रख पाए। नतीजतन प्रदेश में जितनी भी माइनिंग की नीलामियां हुईं, कहा जाता है कि वे सभी कांग्रेस नेताओं के चहेतों के अधिकार में की गईं। 2018 तक आम आदमी पार्टी इस मसले पर सक्रिय रही। रोपड़ में एक माइन का निरीक्षण करने गए ‘आप’ विधायक की तो साइट पर जमकर पिटाई भी हुई। आए दिन मुद्दे बदलते रहे। कभी बेअदबी के मामले हावी हुए तो कभी आतंकवाद से संबंधित छिटपुट घटनाओं ने जनता का ध्यान कहीं और ही बंटा दिया। विपक्ष में बैठा अकाली दल अब आरोप लगा रहा है कि माइन माफिया सरकार की सरपरस्ती में पल रहा है जबकि पहले विपक्ष में बैठी कांग्रेस का यही आरोप था। 

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माइन माफिया के हौसले बुलंद 

मामला 10 दिन पहले का है। थाना जीरा सदर के अंतर्गत गांव चब्बा के खेतों में चल रहे अवैध रेत खनन रोकने के लिए पहुंची पुलिस पार्टी पर माफिया ने हमला बोल दिया। यही नहीं, पुलिस मुलाजिमों को जमकर पीटा और रेत से भरी ट्रैक्टर-ट्राली लेकर फरार हो गए। पुलिस के मुताबिक ए.एस.आई. सुरेंद्रपाल सिंह पुलिस पार्टी के साथ गश्त कर रहे थे कि सूचना के आधार पर गांव चब्बा में पुलिस पार्टी ने बताई जगह पर छापेमारी की। पुलिस पार्टी को आता देखकर रेत माफिया ने फोन कर अपने साथियों को बुला लिया। हथियारों से लैस मोटरसाइकिलों पर आए आरोपियों ने पुलिस पर हमला बोल दिया। पुलिस मुलाजिमों को पीटा और उनकी वर्दी फाड़ दी। आरोपी अवैध तरीके से खेतों में से रेत की निकासी कर रहे थे।

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