पंजाब में कपास उगाने वाले किसानों को गुलाबी वार्म कीट ने किया तबाह, पढ़ें पूरी खबर

Edited By Vatika,Updated: 13 Aug, 2024 11:29 AM

यूं फसल को मिट्टी में मिलाने से किसानों को भारी आर्थिक नुकसान हो रहा है. लेकिन, उनके पास इसके सिवाय कोई और विकल्‍प भी नहीं है.

पंजाब डेस्कः  सफेद मक्खी और पिंक बॉलवर्म (पीबीडब्ल्यू) यानी गुलाबी सुंडी के कारण पिछले दो दशकों में उत्तरी क्षेत्र में कपास को भारी नुकसान का सामना करना पड़ा है।  ऐसे में किसानों ने तो अब अपनी फसल पर हल चलाना भी शुरू कर दिया है, जिनके पास पानी के ठीक-ठाक साधन हैं, वो धान की पछेती किस्‍मों की रोपाई कर रहे हैं, जिससे उन्हें निश्चित आय प्राप्त हो सके। पिछले सप्ताह बठिंडा, मानसा और फाजिल्का में किसानों द्वारा कपास की फसल को खेतों में ही बीजने और फिर उस पर धान की PR 126 किस्म की रोपाई करने के मामले सामने आए हैं।  हाड़-तोड़ मेहनत और खूब खर्चा लगाने के बाद यूं फसल को मिट्टी में मिलाने से किसानों को भारी आर्थिक नुकसान हो रहा है. लेकिन, उनके पास इसके सिवाय कोई और विकल्‍प भी नहीं है.

फाजिल्का में  कृषि विभाग द्वारा 10 संक्रमण वाले क्षेत्रों की पहचान की गई है।  है. हालांकि, कृषि विभाग का कहना है कि अभी सफेद मक्‍खी और गुलाबी सुंडी का हमला बहुत ज्‍यादा नहीं है, फिर भी बहुत से किसानों ने कपास पर हल चला दिया है. फाजिल्का के पट्टी सदीक गांव के गुरप्रीत सिंह और उनके पिता अजैब सिंह का कहना है कि उन्‍होंने कीटों के हमले को देखते हुए अपने पांच एकड़ कपास की फसल में से डेढ एकड़ को उखाड़ दिया है और चावल की 126 वैरायटी लगाने की तैयारी कर रहे हैं। फाजिल्का के खुई खेड़ा और झुरार खेड़ा गांवों तथा बठिंडा के गियाना और तुंगवाली गांवों में किसानों द्वारा अपनी फसलों को जोतने की खबरें मिली हैं. वहीं, कृषि विभाग के अधिकारियों का कहना है कि 128 टीमों ने कपास क्षेत्र में 240 स्थानों का दौरा किया। कुछ स्थानों पर कीटों का हमला देखा गया, लेकिन यह अभी निर्धारित सीमा के भीतर ही है। पंजाब के कृषि विभाग के निदेशक जसवंत सिंह ने भी यह माना है कि किसानों द्वारा फसल को वापस जोतने की खबरें आई हैं। उनका कहना है कि वे ही किसान नरमा की फसल को उखाड़ रहे हैं, जहां उनके पास बुवाई के लिए पीआर 126 किस्म की धान की पौधे उपलब्ध है। साथ ही किसान बोई गई आधी कपास ही उखाड़ रहे हैं, आधी अभी भी रख रहे हैं।

 उन्होंने बताया कि किसानों को कपास के पौधों को कीटों से बचाने के लिए सर्वोत्तम खेती के तरीकों के बारे में बताया जा रहा है। पिछले साल किसानों ने कपास की 25 प्रतिशत से ज़्यादा उपज 6,620 रुपए प्रति क्विंटल के एम.एस.पी. से कम पर बेची थी। 2022-23 में फसल औसतन 10,000 रुपये प्रति क्विंटल के भाव पर बिकी। किसानों को इस साल फिर से सफेद मक्खी और पिंक बॉलवर्म के हमले के कारण नुकसान होने का डर है। कृषि निदेशक जसवंत सिंह ने कहा कि विभाग के अधिकारी खड़ी कपास की फसल पर नज़र रखने के लिए हफ़्ते में दो बार (सोमवार और गुरुवार) खेतों का दौरा कर रहे हैं। उन्होंने कहा, "किसानों द्वारा फसल को फिर से जोतने की खबरें आई हैं, लेकिन यह केवल उन मामलों में है जहाँ उनके पास बुवाई के लिए धान की पीआर 126 किस्म के पौधे उपलब्ध हैं। यही कारण है कि वे केवल आधे खेतों की ही जुताई कर रहे हैं, जबकि बाकी आधे खेतों में कपास की फसल को बरकरार रखा गया है।"


 

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