Edited By Urmila,Updated: 04 Mar, 2025 02:25 PM

पंजाब के तरनतारन जिले में 1993 में हुए फर्जी पुलिस मुठभेड़ मामले में सी.बी.आई.1 की विशेष अदालत ने अपना फैसला सुना दिया है।
मोहाली : पंजाब के तरनतारन जिले में 1993 में हुए फर्जी पुलिस मुठभेड़ मामले में सी.बी.आई.1 की विशेष अदालत ने अपना फैसला सुना दिया है। इसके बाद अदालत ने फैसला सुनाया कि एस.एच.ओ. सीता राम (80 वर्षीय) को धारा 302, 201 और 218 के तहत दोषी पाया गया है, जबकि थानेदार राजपाल (57 वर्षीय) को धारा 201 और 120 बी के तहत दोषी पाया गया है। अदालत ने दोनों आरोपियों को सजा सुनाने के लिए 6 मार्च की तारीख तय की है।
कैसे हुआ फर्जी मुकाबला
सी.बी.आई. की जांच में पता चला कि 30 जनवरी 1993 को पुलिस ने गुरदेव सिंह उर्फ देबा और 5 फरवरी 1993 को सुखवंत सिंह को उनके घरों से जबरन अगवा कर लिया था। इसके बाद 6 फरवरी 1993 को पुलिस ने भागूपुर थाना क्षेत्र में मुठभेड़ में दोनों को मार गिराने का दावा किया और इसे 'आधिकारिक पुलिस मुठभेड़' बताया। पुलिस ने दोनों युवकों पर 300 से अधिक गंभीर मामलों में संलिप्त होने का झूठा आरोप लगाया था। शवों को लावारिस घोषित कर दिया गया और उनका अंतिम संस्कार कर दिया गया तथा परिवारों को इसकी सूचना भी नहीं दी गई।
सी.बी.आई. जांच और 30 सालों का लंबा संघर्ष
1995 में, सर्वोच्च न्यायालय के आदेश पर सी.बी.आई. ने इस मामले की जांच शुरू कर दी है। जांच से पता चला कि यह एक फर्जी मुकाबला था। सी.बी.आई. ने 2000 में अपनी जांच पूरी की और 11 पुलिस अधिकारियों के खिलाफ चार्जशीट दायर की। इनमें तत्कालीन चौकी प्रभारी ए.एस.आई. नौरंग सिंह, ए.एस.आई. दीदार सिंह, डी.एस.पी. कश्मीर सिंह, एसएच.ओ. सीता राम, एस.एच.ओ. गोबिंदर सिंह समेत कई अन्य पुलिसकर्मी शामिल थे। हालांकि, पंजाब डिस्टर्बर्ड क्षेत्र अधिनियम, 1983 के तहत कानूनी बाधाओं के कारण मामला 2021 तक लंबित रहा। अदालत में प्रस्तुत किए गए कई साक्ष्य फाइलों से गायब हो गए थे, जिसके कारण उच्च न्यायालय के आदेश पर रिकॉर्ड को दोबारा तैयार करना पड़ा।
न्याय में देरी कारण बन रही गवाहों की मौत
सी.बी.आई. ने मामले में 48 गवाह पेश किए थे, लेकिन सुनवाई के दौरान केवल 22 गवाह ही पेश हो सके, क्योंकि मामले में देरी के कारण 23 गवाहों की मृत्यु हो गई। चार आरोपियों सरदूल सिंह, अमरजीत सिंह, दीदार सिंह और समीर सिंह की भी मुकदमे के दौरान मृत्यु हो गई।
न्यायालय का निर्णय
सी.बी.आई. पटियाला की एक विशेष अदालत ने इस ऐतिहासिक मामले में दो पुलिस अधिकारियों को दोषी करार देते हुए उन्हें पटियाला जेल भेज दिया है। इसके साथ ही पांच पुलिस कर्मियों को साक्ष्य के अभाव में संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया गया। 30 साल बाद आए इस फैसले को पीड़ित परिवारों के लिए एक महत्वपूर्ण जीत माना जा रहा है, लेकिन इतनी लंबी कानूनी लड़ाई के दौरान कई गवाहों और आरोपियों की मौत ने न्याय प्रक्रिया की धीमी गति पर सवाल खड़े कर दिए हैं।
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