पंजाब में स्कूलों के अंदर सरेआम किया जा रहा यह काम, शिक्षा विभाग बेखबर

Edited By Urmila,Updated: 28 Mar, 2025 04:09 PM

books sales in schools

निजी स्कूलों की मनमानी रोकने की बजाय शिक्षा विभाग गहरी नींद में सोया हुआ है और कई स्कूल नियमों का खुलेआम उल्लंघन कर अपने संस्थानों में किताबें बेचकर निष्क्रिय हो गए हैं।

लुधियाना (विक्की) : निजी स्कूलों की मनमानी रोकने की बजाय शिक्षा विभाग गहरी नींद में सोया हुआ है और कई स्कूल नियमों का खुलेआम उल्लंघन कर अपने संस्थानों में किताबें बेचकर निष्क्रिय हो गए हैं। जब स्कूलों में उपरोक्त व्यावसायिक गतिविधियां बंद कर दी गईं तो वहीं शिक्षा विभाग पत्र जारी कर स्कूलों को नियमों का पालन करने के निर्देश देकर खानापूर्ति कर रहा है।

दरअसल, निजी स्कूलों के लिए सरकार और सी.बी.एस.आई. ने अलग-अलग निर्देश जारी किए हैं कि स्कूलों में व्यावसायिक गतिविधियां बर्दाश्त नहीं की जाएंगी, लेकिन निर्देशों को ठेंगा दिखाते हुए ए कई निजी स्कूलों ने स्कूलों में अभिभावकों को खुलेआम किताबें बेचीं। उक्त मामले में एक शिकायतकर्ता द्वारा नियमित रूप से फोटो खींचकर वीडियो के साथ शिक्षा मंत्री को शिकायत भेजने की भी बात सामने आ रही है।

जानकारी के अनुसार शिक्षा विभाग की ढीली कार्रवाई के कारण जिले में निजी स्कूलों में मनमाने ढंग से किताबें बेचने और पाठ्यक्रम बदलने का सिलसिला जारी है, लेकिन शिक्षा विभाग की कार्रवाई सिर्फ कागजी आदेशों तक ही सीमित रह गई है।

5000 तक में बेचे जा रहा छोटी क्लास का सेट

कई स्कूलों ने 3 साल तक पाठ्यक्रम न बदलने के नियम की धज्जियां उड़ाते हुए इस बार भी पाठ्यपुस्तकें बदल दी हैं, जिससे अभिभावकों की जेब पर बोझ बढ़ गया है। हैरानी की बात यह है कि जूनियर कक्षाओं की किताबों का सेट करीब 5000 के करीब मिल रहा है लेकिन सत्र शुरू होने से ठीक पहले शिक्षा विभाग द्वारा स्कूलों को निर्देश जारी करने में की जा रही देरी ने विभागीय कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े कर दिए हैं।

कागजी आदेशों से आगे क्यों नहीं बढ़ता विभाग?

आज जारी निर्देशों में कहा गया है कि किसी भी स्कूल को किसी विशेष दुकान से किताबें और यूनिफॉर्म खरीदने पर प्रतिबंध नहीं लगाना चाहिए। फीस में 8 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि नहीं होनी चाहिए और नर्सरी फीस पहले की तरह ही रहनी चाहिए, लेकिन सवाल यह है कि जब शिक्षा विभाग को पता था कि स्कूल हर साल यही खेल खेलते हैं, तो ये आदेश पहले क्यों नहीं जारी किए गए?

इस मामले पर एक पूर्व प्रिंसिपल ने कहा कि यह स्पष्ट रूप से शिक्षा विभाग की लापरवाही है। हर साल अभिभावक शिकायत करते हैं, लेकिन विभाग सिर्फ खानापूर्ति करता है। यह खेल तब तक जारी रहेगा जब तक स्कूलों के खिलाफ ठोस कार्रवाई नहीं की जाती।

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