Edited By Urmila,Updated: 13 May, 2025 01:09 PM

पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने अर्धसैनिक बलों के जवानों के हक में फैसला सुनाते हुए कहा कि अगर कोई जवान गंभीर बीमारी से ग्रस्त है और मजबूरी में स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेता है।
चंडीगढ़ (गंभीर): पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने अर्धसैनिक बलों के जवानों के हक में फैसला सुनाते हुए कहा कि अगर कोई जवान गंभीर बीमारी से ग्रस्त है और मजबूरी में स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेता है तो उसे विकलांगता पेंशन से वंचित नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यदि कोई सैनिक गंभीर बीमारी के कारण ड्यूटी करने में असमर्थ होने पर स्वेच्छा से सेवानिवृत्त होता है और विभाग समय पर निर्णय नहीं लेता है तो इसे स्वैच्छिक नहीं माना जा सकता। यह निर्णय केन्द्रीय रिजर्व पुलिस बल के लांस नायक अशोक कुमार की याचिका पर सुनाया गया।
एक गंभीर नेत्र रोग रेट्रोबुलबार न्यूरिटिस नामक के कारण रंगों को पहचानने की क्षमता खो देने के कारण उन्हें विकलांगता पेंशन से वंचित कर दिया गया था। अशोक कुमार 1985 में सी.आर.पी.एफ. 13वीं बटालियन में सेवा की और 2000 में मणिपुर में तैनाती के दौरान उनकी दाहिनी आंख में इस बीमारी का पता चला। मार्च 2005 में वार्षिक चिकित्सा परीक्षण में उन्हें सेवा के लिए चिकित्सकीय रूप से अयोग्य घोषित कर दिया गया, लेकिन उन्हें हल्की ड्यूटी पर रखने की सिफारिश के साथ मामले को समीक्षा के लिए एक वर्ष के लिए स्थगित कर दिया गया।
सी.आर.पी.एफ. ने अशोक कुमार को सेवा से मुक्त नहीं किया। वर्ष 2009 में पुनर्वास बोर्ड की बैठक में याचिकाकर्ता को अशक्तता (इनवेलिडेशन) के आधार पर सेवा से मुक्त करने की सिफारिश की गई थी, लेकिन सी.आर.पी.एफ. ने कोई आदेश नहीं दिया। इस विलंब से तंग आकर अशोक कुमार ने 22 अप्रैल 2009 को स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति के लिए आवेदन किया, जिसे स्वीकार कर लिया गया। बाद में जब उन्होंने विकलांगता पेंशन का दावा किया तो 19 मई 2017 को सी.आर.पी.एफ. डी.जी.पी. की याचिका यह कहते हुए खारिज कर दी गई कि उन्होंने स्वयं अपनी नौकरी छोड़ दी है।
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