Exclusive- मोहब्बत की ‘समझौता’ बनी आतंकियों की ‘एक्सप्रैस’

Edited By Anjna,Updated: 04 Jul, 2018 11:16 AM

amritsar news

भारत-पाक के बीच दोस्ती की पटरियों पर दौडऩे वाली ‘समझौता एक्सप्रैस’ का 3 जुलाई से गहरा नाता है। भारत-पाक के बीच 3 जुलाई 1972 को ‘शिमला समझौता’ के तहत यह ट्रेन दोनों देशों के बीच ‘प्यार’ व ‘व्यापार’ बढ़ाने एवं रिश्तों को मजबूत करने के लिए चलाने पस...

अमृतसर (स.ह., नवदीप) : भारत-पाक के बीच दोस्ती की पटरियों पर दौडऩे वाली ‘समझौता एक्सप्रैस’ का 3 जुलाई से गहरा नाता है। भारत-पाक के बीच 3 जुलाई 1972 को ‘शिमला समझौता’ के तहत यह ट्रेन दोनों देशों के बीच ‘प्यार’ व ‘व्यापार’ बढ़ाने एवं रिश्तों को मजबूत करने के लिए चलाने पस सहमति बनी थी। समझौता एक्सप्रैस जहां देश की सबसे वी.आई.पी. ट्रेन का गौरव प्राप्त है। इस ट्रेन की सिक्योरिटी का जिम्मा देश की 24 खुफिया व सुरक्षा एजैंसियों के जिम्मे है।

दोनों मुल्कों के बीच यह ट्रेन अब तक क्विंटलों के हिसाब से हैरोइन, सैकड़ों की तादात में हथियार भारत लाने के लिए जहां ‘बदनाम’ हो चुकी है, वहीं समझौता एक्सप्रैस की तर्ज पर दोनों मुल्कों के बीच दौडऩे वाली ‘दोस्ती बस’ व ‘सद्भावना बस’ पर भी आतंक का साया पड़ चुका है। इन बसों से भी पाक के तरफ से हैरोइन व हथियारों की तस्करी होने लगी है। हालात यह हैं कि आतंकियों के नाकाम मंसूबों के साथ मोहब्बत की पटरियों पर दौडऩे वाली समझौता अब आतंकियों की एक्सप्रैस बन गई है। भारत-पाक के बीच बनते बिगड़ते रिश्तों की अहम तारीख है 3 जुलाई। 3 जुलाई 1972 को भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी व पाक की पूर्व प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो ने ‘शिमला समझौता’ के दौरान नि:शस्त्र समझौता करते हुए ‘प्यार’ व ‘व्यापार’ का वादा किया। ‘शिमला समझौता’ की बदौलत भारत-पाक के बीच ‘समझौता एक्सप्रैस’ चलाई गई थी, लेकिन 46 वर्षों के बाद भी पाक की करनी व कथनी में कितना फर्क है यह ‘कारगिल युद्ध’ से लेकर अब तक होने वाली आतंकी घटनाओं से साफ है। पड़ोसी कितना ‘शरीफ’ रहा है यह इतिहास के पन्नों में दर्ज है। 

पाक से जीता ‘पैटन-एम-48 टैंक’, भारतीय सैनिकों की गौरव गाथा कर रहा बयान
सितम्बर 1965 की रात में पाक ने भारत पर हमला कर दिया। वीर अब्दुल हमीद तरनतारन जिले के खेमकरण सैक्टर के ‘असल उताड़’ में सेना की अगुवाई कर रहे थे। पाक के पाक ‘अमरीकन पैटन टैंकों’ के साथ हमला किया था। भारतीय सैनिकों के पास टैंक नहीं थे लेकिन उत्साह टैंक से अधिक था। ‘थ्री नॉट थ्री राइफल’ व एल.एम.जी. के साथ वीर अब्दुल हमीद ने ‘गन माऊंटेड जीप’ से 7  टैंकों को तबाह कर दिया। पाक सेना टैंक छोड़ भाग खड़ी हुई। 1965 में जीते 3 टैकों में अमृतसर के किला गोबिंदगढ़ में यह टैंक देश-दुनिया के पर्यटकों के लिए भारतीय सैनिकों की गौरव गाथा किला गोबिंदगढ़ चौंक में बयान कर रहा है। 

‘शिमला समझौता’ भारत की भूल, वर्ना आज लाहौर में लहराता ‘तिरंगा’
इतिहासकार सुरेन्द्र कोछड़ के अनुसार ‘शिमला समझौता’ भारत की भयंकर भूल थी, जिसका खामियाजा देश को आज भी उठाना पड़ रहा है। भारतीय सैनिक लाहौर के बिल्कुल निकट ‘बचोकी’ व ‘भडाना’ तक पहुंच चुके थे। एक घंटे में ‘लाहौर’ जीत लेते। 5600 वर्ग मील पर ‘तिरंगा’ लहराया, वहीं 93 हजार से अधिक लोगों को युद्धबंदी बना लिया था। 17 दिसम्बर 1971 को पाक सैनिकों ने घुटने टेक दिए। भारत ने सैनिकों को आगे बढऩे से रोक दिया। शिमला समझौता के लिए पाक के तत्कालीन प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो बेटी बेनजीर भुट्टो के साथ 28 जून 1972 को शिमला आए। 28 जून से बैठकों का दौर चला। 2 जुलाई को दोनों देशों के बीच समझौता पर सहमति बनी। 3 जुलाई 1972 को भारत ने (तीसरे देश के दबाव में) पाक के सभी 93 हजार युद्धबंदियों को छोड़ दिया, बल्कि 5600 वर्ग मील जमीन भी लौटा दी। पाक ने 93 हजार युद्धबंदियों को छुड़ाने में कामयाब हो गया लेकिन भारतीय 54 युद्धबंदियों को आज तक नहीं रिहा किया। 

पाक नहीं मानता समझौता, पहले देश फिर व्यापार : अनिल मेहरा
भारत-पाक के बीच घट रहे व्यापार व दोनों मुल्कों के बीच तनातनी माहौल में भारत-पाक के बीच व्यापार करने वाले अनिल मेहरा प्रधान ड्राइफ्रूट एंड किरयाना मर्चेंट एसोसिएशन, मजीठ मंडी, अमृतसर कहते हैं कि पहले देश फिर व्यापार। पाक ने शिमला समझौता भी नहीं माना। हर समझौता पाक की नापाक इरादों का सबब बनता रहा है। भारत को सभी रिश्ते तोड़ पाक को उसकी जुबान में सबक सिखाना ही एकमात्र विकल्प बचा है, और इस बार भारत की आवाम चाहती है कि पाक स्थित कश्मीर के साथ-साथ लाहौर पर तिरंगा फहराया जाए। 

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