हरियाणा चुनाव अकेले लड़ने का ऐलान अकाली  दल की भाजपा पर दबाव बनाने की रणनीति

Edited By swetha,Updated: 28 Sep, 2019 10:59 AM

akali dal s strategy to pressure the bjp to contest haryana elections alone

अकाली दल द्वारा हरियाणा विधानसभा चुनावों में अकेले लडऩे का ऐलान एक तरह से भारतीय जनता पार्टी पर दबाव बनाने की राजनीति और रणनीति है।

पटियाला(राजेश): अकाली दल द्वारा हरियाणा विधानसभा चुनावों में अकेले लडऩे का ऐलान एक तरह से भारतीय जनता पार्टी पर दबाव बनाने की राजनीति और रणनीति है। 2017 की विधानसभा चुनावों और 2019 की लोकसभा चुनावों में पंजाब में अकाली दल की करारी हार के कारण वह काफी मानसिक दबाव में है। दूसरी ओर 2019 की लोकसभा चुनावों में पंजाब में भाजपा को मिली सफलता कारण पार्टी ने सोचना शुरू कर दिया है कि अगर पंजाब में पार्टी अपने बलबूते पर चुनाव लड़े तो उसको हरियाणा और महाराष्ट्र जैसे नतीजे मिल सकते हैं। 

सूत्रों के अनुसार लोकसभा चुनाव के बाद भारतीय जनता पार्टी ने सर्वे करवाया है कि पंजाब की 117 विधानसभा सीटों में से 52 शहरी व अर्धशहरी सीटें ऐसी हैं, जिन पर पार्टी जीतने की समर्था में है। इस संबंधी पार्टी जोड़-तोड़ लगा रही है कि अगर 2022 की विधानसभा चुनावों में कांग्रेस, अकाली दल, भाजपा और आम आदमी पार्टी अलग-अलग चुनाव लड़ते हैं तो ऐसे राजनीतिक हालातों में भाजपा को लाभ होने की संभावना है। पंजाब का हिन्दू वोटर लंबे समय से अपने आप को अनाथ समझ रहा है। अकाली-भाजपा गठजोड़ और कांग्रेस की सरकारों ने हमेशा ही हिन्दुओं को दरकिनार किया है, जिस कारण पंजाब के हिन्दुओं का झुकाव अब भाजपा की ओर हो रहा है। 

2019 की लोकसभा चुनावों में भाजपा ने 13 में से 3 लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ा था और 2 पर शानदार जीत दर्ज की थी, जबकि अकाली दल ने 10 लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ा था और केवल 2 सीटें ही जीतीं। ये सीटें भी बादल परिवार भाजपा के सहारे जीत सका था। बङ्क्षठडा में शहरी हिन्दू वोट बैंक ने मोदी के नाम पर वोट दी, जिस कारण हरसिमरत कौर बादल जीत सकी। ऐसे सारे हालातों को देखते हुए ही भाजपा का एक वर्ग चाहता है कि पार्टी पंजाब में भी हरियाणा की तरह अनुभव करके अकेले चुनाव मैदान में उतरे तो उसका अपना वोट बैंक बन सके। 

आम तौर पर हर चुनाव में अकाली दल भाजपा पर हावी रहता है, जिस करके भाजपा को 117 सीटों में कभी 23 व कभी 21 सीटें ही मिलती हैं, पर 2019 की लोकसभा चुनावों के बाद भाजपा अकाली दल के बराबर खड़ी हो गई है। पंजाब में अब दो लोकसभा सांसद भाजपा के हैं और 2 ही अकाली दल के हैं। ऐसे में भाजपा हाईकमान पंजाब बारे काफी मंथल कर रहा है। शिरोमणि अकाली दल के प्रधान सुखबीर सिंह बादल के पास इस मंथन की जानकारी मिल गई है, जिस कारण पिछले कुछ समय से अकाली दल भाजपा पर दबाव बनाने की कोशिश कर रहा है। महाराष्ट्र के अनुभव को देखते हुए ही अकाली दल अपने गढ़ को बचाने के लिए हर दाव चल रहा है। केंद्र सरकार में बने रहना उसकी मजबूरी है क्योंकि पंजाब की कांग्रेस सरकार से केंद्र सरकार की प्रोटैक्शन अकाली दल को जरूरी लगती है।

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