पंजाब में हाशिए पर है AAP का भविष्य, शिअद के बिना नहीं गल सकती भाजपा की दाल

Edited By Vatika,Updated: 26 Oct, 2019 10:03 AM

aam aadmi party punjab

अकाल तख्त और आरएसएस के बीच पैदा हो रही खटास भाजपा लिए घातक है। भाजपा शिअद के बिना आधी-अधूरी ही नहीं हाशिए पर भी जा सकती है।

जालंधर/चंडीगढ़(सूरज ठाकुर/रमनजीत): पंजाब में 4 विधानसभा क्षेत्रों में हुए उपचुनाव के नतीजों के बाद तस्वीर साफ है कि आम आदमी पार्टी का जनाधार धराशायी होता जा रहा है, वहीं दूसरी ओर अगला विधानसभा चुनाव अकेले लडऩे का सपना देखने वाली भाजपा को भी यह समझ लेना चाहिए कि शिरोमणि अकाली दल के बिना उसकी दाल गलने वाली नहीं है। चूंकि हरियाणा के विधानसभा चुनाव में राष्ट्रवाद जैसे मुद्दे भी काम नहीं कर पाए और पंजाब उपचुनाव में स्थानीय लोगों में करतारपुर कॉरिडोर का मुद्दा भी असर नहीं कर पाया। उपचुनाव के दौरान अकाल तख्त के जत्थेदार ज्ञानी हरप्रीत सिंह ने आर.एस.एस. की कार्यप्रणाली पर सवालिया निशान छोड़ते हुए इस पर प्रतिबंध लगाने की मांग की। ऐसे में भाजपा शिअद के बिना आधी-अधूरी ही नहीं हाशिए पर भी जा सकती है।

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चारों सीटों पर कहीं भी दूसरे नंबर तक नहीं पहुंचे ‘आप’ प्रत्याशी
पंजाब विधानसभा में मुख्य विपक्षी पार्टी के तौर पर बैठने वाली आम आदमी पार्टी 2017 के बाद से हुए एक के बाद एक चुनाव में कहीं भी अपनी उक्त पोजीशन पर नहीं ठहरती। आलम यह है कि लोकसभा चुनाव हों या उप चुनाव ‘आप’ के प्रत्याशी लगातार अपनी जमानतें जब्त करवा रहे हैं। यह हाल तब है, जब पंजाब आम आदमी पार्टी का यूनिट अपने सभी फैसले जमीनी हकीकत देखकर खुद लेने का दम भरता है। राज्य में आम आदमी पार्टी के सबसे लोकप्रिय नेता माने जाते भगवंत मान की चुनावी रैलियों में भले ही भीड़ जुटती रही है लेकिन चुनावी नतीजे लगातार साबित कर रहे हैं कि लोग भगवंत मान की चटपटी बातें सुनने तो जरूर पहुंच जाते हैं लेकिन वही लोग वोटरों में शामिल नहीं हो पाते।  वीरवार को दाखा, फगवाड़ा, मुकेरियां और जलालाबाद उप चुनावों के नतीजों में मुख्य मुकाबला कांग्रेस और शिअद-भाजपा गठबंधन में ही रहा और मुख्य विपक्षी पार्टी आम आदमी पार्टी के चारों प्रत्याशी मुकेरियां से गुरध्यान सिंह मुलतानी, फगवाड़ा से संतोष कुमार गोगी, जलालाबाद से मोहिंद्र सिंह कचूरा और दाखा से अमनदीप सिंह मोही अपनी जमानतें बचाने के लिए भी संघर्ष करते रहे। दिलचस्प बात यह है कि फगवाड़ा और दाखा सीट पर आम आदमी पार्टी के प्रत्याशियों से कहीं अधिक वोट बैंस बंधुओं की लोक इंसाफ पार्टी के प्रत्याशियों को पड़े। दाखा सीट तो ‘आप’ के एच.एस. फूलका द्वारा इस्तीफा देने से ही खाली हुई थी लेकिन यह सीट भी आम आदमी पार्टी बचाने में कामयाब नहीं हो पाई। इससे पहले 2018 में हुए शाहकोट उप चुनाव में भी आम आदमी पार्टी की ऐसे ही शर्मनाक हार हुई थी। ऐसा ही हाल लोकसभा चुनाव 2019 में हुआ, जिसमें भगवंत मान को छोड़कर बाकी सभी प्रत्याशी अपनी जमानत नहीं बचा पाए थे। 

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ऐसे बंट गई पार्टी
2016 में ‘आप’ को लग रहा था कि पंजाब में उसकी जड़ें गहरी होती जा रही हैं और वह सूबे की बागडोर संभालने वाली है। आपसी फूट की वजह से ‘आप’ विधानसभा चुनाव में 20 सीटों के साथ 23.72 फीसदी वोटों के साथ ही निपट गई। 2016 में ‘आप’ आलाकमान ने पार्टी के तत्कालीन कन्वीनर सुच्चा सिंह छोटेपुर पर कथित तौर पर रिश्वत का आरोप लगने पर उन्हें पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया था। इसके बाद एच.एस. फूलका, सुखपाल खैहरा, कंवर संधू, जगतार सिंह जग्गा, जगदेव कमालू, मास्टर बलदेव और पिरमल सिंह खालसा सरीखे नेताओं के पार्टी से मुंह मोड़ लेने के कारण ‘आप’ को भारी नुक्सान उठाना पड़ा। 2 विधायकों नाजर सिंह मानशाइया और अमरजीत संदोआ ने कांग्रेस ज्वाइन करने के बाद ‘आप’ के पास अब सिर्फ  11 विधायक हैं। ‘आप’ के बिखरने की एक वजह यह भी रही कि जो नेता पंजाब और पंजाबियत की बात कर रहे थे उन पर केंद्रीय नेतृत्व अपने फैसले थोपता चला गया और पार्टी दिशा विहीन हो गई। कमजोर नेतृत्व और मजबूत मुद्दे एक साथ पंजाब की जनता की समझ से परे हो गए। 

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भाजपा के सियासी समीकरण
2014 लोकसभा चुनाव की बात करें तो इस चुनाव में 4 सीटें कांग्रेस, 4 शिअद, 4 ‘आप’ और 1 सीट भाजपा को मिली थी। पंजाब में ‘आप’ को 24.4 फीसदी वोट मिले थे, अकाली-भाजपा गठबंधन को 35 फीसदी और कांग्रेस को 33 फीसदी से कुछ अधिक वोट मिले थे।  भाजपा सिर्फ 3 सीटों पर चुनाव लड़ी थी। मोदी सरकार ने पहली बार देश की सत्ता संभाली थी। उसके बाद इस 2019 में हुए लोकसभा चुनाव में 8 सीटों पर कांग्रेस, 2 पर भाजपा, 2 पर शिअद और 1 सीट पर ‘आप’ ने जीत दर्ज की है। वोट शेयर की बात करें तो 40.12 फीसदी कांग्रेस, 9.63 फीसदी भाजपा, 27.45 फीसदी शिअद और 7.38 फीसदी ‘आप’ के खाते में गया है। 2019 में देश में मोदी सरकार को भारी बहुमत हासिल करने के बाद पंजाब भाजपा अकेले ही सूबे में अगला विधानसभा चुनाव लडऩे के ख्वाब देखने लगी। अपरोक्ष रूप से इस चर्चा को भाजपा के ही कुछ नेताओं ने तूल देना शुरू कर दिया। आर.एस.एस. ने भी अपना हिंदुत्व का झंडा बुलंद कर दिया। 

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अकाल तख्त के जत्थेदार का बयान
पंजाब में उपचुनाव और हरियाणा में विधानसभा चुनाव के दौरान अकाल तख्त के जत्थेदार ज्ञानी हरप्रीत सिंह का अचानक बयान आया कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए क्योंकि वह भारत को हिंदू राष्ट्र बताकर दूसरे समुदायों में असंतोष पैदा कर रहा है। उनके इस बयान ने राजनीतिक हलकों में हलचल पैदा कर दी है। इस धार्मिक नेता के बयान के बाद कई हिंदू संगठनों और भाजपा के नेताओं ने नाराजगी जाहिर करते हुए ज्ञानी हरप्रीत सिंह के बयान को दुर्भाग्यपूर्ण और तथ्यों से परे बताया। इस विवाद को लेकर अकाली दल के नेताओं से जब मीडिया ने बात करनी चाही तो शिअद पार्टी प्रवक्ता डा. दलजीत सिंह चीमा का कहना था कि अकाल तख्त सिख धर्म की सर्वोच्च संस्था है और वह इसके जत्थेदार नेता के बयान पर कोई टिप्पणी नहीं करना चाहते। ऐसे में भाजपा का पंजाब में बहुत ज्यादा महत्वाकांक्षी होना और नुक्सानदेह है। भाजपा को शिअद के साथ कंधे से कंधा मिलाकर ही चलना पड़ेगा जिससे पंजाब में भाईचारा कायम रहे। 

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