ओमिक्रॉन से जनता क्यों है बेपरवाह! अब लोगों को क्यों नहीं लगता कोरोना से डर

Edited By Sunita sarangal,Updated: 06 Jan, 2022 01:05 PM

public is indifferent to omicron people not feel afraid of corona

कोरोना महामारी की दूसरी लहर थमने के बाद शायद अब जनता दो साल बीता भयावह दौर नहीं देखना चाहती और न ही इसकी कल्पना करना चाहती है।

नई दिल्ली : कोरोना महामारी की दूसरी लहर थमने के बाद शायद अब जनता दो साल बीता भयावह दौर नहीं देखना चाहती और न ही इसकी कल्पना करना चाहती है। जनता वैसे ही जीना चाहती है जैसे दो साल पहले महामारी से पहले जिया करती थी। इसमें भी कोई दोराय नहीं है कि नए साल ने पूरे विश्व में इस बार कोरोना के नए वेरिएंट ओमिक्रॉन के साथ दस्तक दी है और यह पूरे विश्व में तेजी से फैल रहा है। जबकि अब जनता बेरपवाह होकर जीना चाहती है, सड़कों पर मास्क लगा कर चलना छोड़ दिया है, दो गज की दूरी भूल गई है। जो लॉकडाउन झेला उसे दोबारा नहीं देखना चाहती है। समाजिक तौर पर इसकी वजह यह है कि भारत ही नहीं पूरे विश्व में लोगों के गुजरे हुए दो साल एक भयानक सपने की तरह गुजरे हैं। साल 2020 में जब कोरोना महामारी ने जब लोगों की दुनिया की रफ्तार को जाम कर दिया तो उन्हें अपनी जिंदगी किसी राजा के शाही फरमान के मुताबिक जीने को मजबूर होना पड़ा। वजह लाजमी थी कोरोना से निपटने के लिए दवाओं का पता नहीं था वैक्सीन थी नहीं ऐसे में लोगों ने अपनी जान बचाने के लिए वह सब किया जो उन्हें कभी पसंद नहीं था। खौफ से सरकारी फरमानों के मुताबिक लोगों ने घरों से बाहर निकलना बंद कर दिया। दो गज दूरी के चक्कर में एक दूसरे से मिलना ही बंद कर दिया। मास्क को अपने रोजमर्रा के कपड़ों का हिस्सा बनाया। ऑफिस छोड़ घरों से ऑनलाइन काम करना शुरु कर दिया। बच्चों के शिक्षण संस्थान बंद हो गए ऑनलाइन शिक्षा के चक्कर में विश्व के करोड़ों गरीब छात्र पढ़ाई से महरूम हो गए। भारत में सड़कों पर प्रवासी मजदूरों की भीड़ शहरों से गांव पलायन करने लगी।

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क्या अब वह भयावह दौर गुजर चुका है?
यह एक ऐसा भयावह मंजर था जिसे अमीर से अमीर और गरीब से गरीब व्यक्ति को झेलना पड़ा। करीब एक साल पहले जब कोरोना रोधी वैक्सीन उपलब्ध हुई तो दुनिया भर के देशों को लग रहा था कि अब हम कोरोना महामारी की चपेट से बाहर आ जाएंगे। कुछ हद तक भारत सहित कई देश इस बात को लेकर आश्वस्त होने लगे कि सब ठीक हो जाएगा। महामारी की भारत में दूसरी लहर धीमी पड़ने पर हमने भी मान लिया था कि अब वह भयावह दौर गुजर चुका है और हम अब वापिस मुड़ कर नहीं देखने वाले हैं। ऐसी हकीकत की कल्पना दोबारा कोई भी नहीं करना चाहेगा जब गंगा में शव लावारिस हो गए और कब्रिस्तान शवों को दफनाने के लिए कम पड़ने लगे थे। श्मशान में शवों की कतारें लगी थी और अस्थियों से भरी बोरियों के भी ढेर जमा हो गए थे। कोरोना की रफ्तार थमने के बाद यह भी दावा किया जाता है कि 2022 के अंत तक लोगों को कोरोना से निजात मिल जाएगी। यह दावा वैक्सीनेशन पर आधारित है, ये माना जा रहा है कि विश्व में 70 फीसदी लोगों के टीकाकरण के बाद स्थिति काबू में आ जाएगी।  

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जब तक सब सुरक्षित नहीं होंगे, तब तक कोई भी सुरक्षित नहीं
सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (सी.एस.ई.) की महानिदेशक सुनीता नारायण अपने एक लेख में कहती है कि महामारी से जंग में वायरस और इसके वेरिएंट्स की वैक्सीनेशन के साथ रेस थी। कहा गया कि ‘जब तक सब सुरक्षित नहीं होंगे, तब तक कोई भी सुरक्षित नहीं है’। यह स्लोगन हमें फिर से आश्वासन दिलाता था कि हम जीत की ओर बढ़ रहे हैं। हमने जी-7 में दुनिया के नेताओं से इसके बारे में तफसील से सुना। वह लिखती है कि जब हम नए साल में आने को तैयार थे और उम्मीद कर रहे थे कि सामान्य दिन वापस आ जाएंगे, कोरोना के नए वेरिएंट-ओमिक्रॉन ने दुनिया को झटका दिया। अगर 2020 नोवेल कोरोना वायरस का और 2021 इसके डेल्टा वेरिएंट का साल था तो 2022 में ओमिक्रॉन हमें डराने जा रहा है।

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अब इकलौता विकल्प बूस्टर देने का
सुनीता नारायण ने उल्लेख किया है कि हमें नहीं पता कि यह कितना खतरनाक होगा। हम बस इतना जानते हैं कि इसके म्यूटेशन करने की दर काफी ज्यादा है और इसका संक्रमण बहुत तेज है। यह उस प्रतिरोधक क्षमता को नष्ट कर देता है, जो हमने वैक्सीन से हासिल की है, यानी कि अब इकलौता विकल्प बचता है- बूस्टर देने का। उन सारे लोगों को बूस्टर देने का, जो वैक्सीन की पहली दोनों डोज ले चुके हैं ताकि वे ओमिक्रॉन के संक्रमण से कम प्रभावित हों। विश्व स्वास्थ्य संगठन जो हाल-फिलहाल तक अमीर देशों से कह रहा था कि वे कोरोना वायरस को रोकने के लिए अपने यहां सभी को बूस्टर डोज देने की बजाय गरीब देशों को वैक्सीन उपलब्ध कराएं, अब चिल्ला-चिल्लाकर बूस्टर, बूस्टर, बूस्टर कर रहा है। हम वाकई थक चुके हैं।

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