Updated: 03 Jul, 2025 09:27 PM
अनुराग बासु की ये फिल्म रिश्तों के उन पहलुओं को छूती है जिनके बारे में हम सोचते तो हैं, पर खुलकर बात नहीं करते।
फिल्मः मेट्रो इन दिनो (Metro In Dino)
डायरेक्टरः अनुराग बसु (Anurag Basu)
कास्टः सारा अली खान (Sara Ali Khan), आदित्य रॉय कपूर (Aditya Roy Kapur), पंकज त्रिपाठी (Pankaj Tripathi), कोंकणा सेन (Konkona Sen), नीना गुप्ता (Neena Gupta), अनुपम खेर (Anupam Kher), अली फजल (Ali Fazal) और फातिमा सना शेख (Fatima Sana Shaikh)
रेटिंग: 4.5*
Metro In Dino: मेट्रो… इन दिनों उन फिल्मों में से एक है जो शोर नहीं मचाती, लेकिन भीतर तक सुनाई देती है। अनुराग बासु की ये फिल्म रिश्तों के उन पहलुओं को छूती है जिनके बारे में हम सोचते तो हैं, पर खुलकर बात नहीं करते। ये फिल्म बताती है कि हर रिश्ता परफेक्ट नहीं होता, लेकिन हर रिश्ते में कुछ सीख होती है और कई बार सिर्फ साथ बैठ जाना ही काफी होता है।
शहर खुद में एक किरदार है
मुंबई, पुणे, बेंगलुरु या दिल्ली, इस फिल्म में शहर सिर्फ जगह नहीं हैं, ये किरदार हैं। इनकी गलियों से रिश्तों की परछाइयां निकलती हैं, जहां हर मोड़ पर अधूरी बातें, अधूरे लोग और अधूरे फैसले मिलते हैं। ‘लाइफ इन ए मेट्रो’ के बाद ये ‘स्पिरिचुअल सीक्वल’ भी शहरों के बीच बसी तन्हाइयों को बहुत खूबसूरती से दिखाता है।

कहानी
फिल्म में पांच कहानियां हैं, लेकिन हर एक में एक ही धड़कन है प्यार की तलाश, समझ की ज़रूरत और खुद से मुलाकात। मोंटी और काजोल (पंकज त्रिपाठी और कोंकणा सेन) की ठंडी पड़ रही शादी, शिबानी (नीना गुप्ता) की इज़्ज़त की चाह, श्रुति और आकाश (फातिमा-अली) की दूरियों से भरी शादी, और फिर मिलते हैं चुमकी और पार्थ (सारा-आदित्य) जो रिश्तों की उलझनों में पहली बार कदम रख रहे हैं।

एक्टिंग
पंकज त्रिपाठी की सिंपल, कोंकणा की गहराई, नीना गुप्ता की सख्त पर कोमल आंखें, अनुपम खेर का ठहराव सब कुछ स्क्रीन पर कमाल दिखाता है। अली फज़ल और फातिमा की कॉम्प्लेक्स केमिस्ट्री आपको सोचने पर मजबूर करती है। वहीं, सारा अली खान इस फिल्म में बिना दिखावे के दिल छूती हैं। उनका किरदार चुमकी बहुत ही सच्चा, मासूम और टूटा हुआ है और सारा ने उसे बिना शोर के बहुत ही इमोशनल और रियल तरीके से निभाया है। वहीं, आदित्य रॉय कपूर भी अपने बिंदास अंदाज में प्रभाव छोड़ते हैं।

डायरेक्शन
अनुराग बसु की स्टोरीटेलिंग आपको वक़्त देती है। वो न सीन खींचते हैं, न फीलिंग्स पर ज़ोर डालते हैं बल्कि बस आपको अपने आप को देखने का मौका देते हैं। कोई भी कहानी अचानक खत्म नहीं होती, बल्कि धीरे-धीरे सामने खुलती है। यही तो उनकी सादगी की ताकत है।

म्यूज़िक
प्रीतम का म्यूजिक यहां सिर्फ गानों तक सीमित नहीं है, वो पूरी फिल्म की रूह है। पापोन और राघव चैतन्य की आवाज़ें दिल में उतरती हैं और हर सीन में इमोशन भर देती हैं। हर गाना फिल्म की कहानी का हिस्सा लगता है, न कि उससे अलग।
फिल्म क्यों देखनी चाहिए?
मेट्रो… इन दिनों कोई ड्रामेटिक फिल्म नहीं है, न ही इसमें बड़ी-बड़ी घटनाएं होती हैं। ये बस आपको आईना दिखाती है – आपकी अपनी कहानियों का। रिश्तों की वो खामोशियां, वो बातें जो हम अक्सर महसूस करते हैं लेकिन बोलते नहीं, वो सब इसमें हैं। और शायद इसी वजह से ये फिल्म हर किसी के दिल में उतर जाएगी।