दीवाली से पहले ही जहरीला हुआ गुरु नगरी का हवा-पानी, AQI पहुंचा 232 के पार

Edited By Vatika,Updated: 08 Nov, 2020 03:26 PM

amritsar air qualty index

नैशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल की तरफ से वातावरण को प्रदूषित होने से बचाने के लिए सख्त प्रयास किए जा रहे हैं

अमृतसर(नीरज): एकतरफ नैशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल की तरफ से वातावरण को प्रदूषित होने से बचाने के लिए सख्त प्रयास किए जा रहे हैं तो दूसरी तरफ दीवाली से पहले ही गुरु की नगरी का हवा पानी जहरीला हो चुका है। आलम यह है कि अभी दीवाली को एक सप्ताह पड़ा है लेकिन एक्यू.आई. (एयर क्वालिटी इंडैक्स) 232 के पार चला गया है। पराली व मौसम के बदले मजाज ने हवा में स्मॉग पैदा कर दी है और दिन के समय में भी सूर्यदेव धुंधले नजर आते हैं। धूप का रंग भी असमान्य सा नजर आ रहा है, क्योंकि बादलों में धूंएं व मिट्टी से मिलकर पैदा हुई स्मॉग धूप को पूरी तरह से धरती पर आने नहीं देती है। 

दूसरी तरफ दिल्ली, चंडीगढ़ व अन्य राज्यों में पटाखों की बिक्री व इसके प्रयोग पर प्रतिबंध लगाए जाने से अमृतसर के पटाखा व्यापारियों में दहशत का माहौल बना हुआ है उनका डर है कि कहीं दिल्ली व चंडीगढ़ की तर्ज पर पंजाब सरकार भी पटाखों की बिक्री व इसके प्रयोग पर प्रतिबंध न लगा दे, हालांकि पंजाब सरकार व जिला प्रशासन ने इस प्रकार का कोई फैसला लिया नहीं है, लेकिन नैशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने सभी राज्यों की सरकारों से यह राय जरुर मांगी है कि क्यों न पटाखों की बिक्री व इसके प्रयोग पर प्रतिबंध लगा दिया जाए, हालांकि इस मामले में पटाखा व्यापारियों का कोई दोष नहीं है, क्योंकि व्यापारियों ने कई महीने पहले से ही शिवाकासी व अन्य शहरों से करोड़ों रुपयों के पटाखे मंगवा रखे हैं। व्यापारियों का कहना है कि यदि सरकार ने पटाखों की बिक्री व इसके निर्माण और प्रयोग पर प्रतिबंध लगाना था तो कई महीने पहले इसके बारे में ऐलान कर दिया जाता ताकि व्यापारी पटाखों का स्टॉक ही न रखते।        

पॉलिथिन लिफाफों का प्रयोग रोक नहींसका प्रशासन
जिला प्रशासन की तरफ से ऐलान किया गया था कि गुरु नगरी में प्लॉस्टिक लिफाफों का प्रयोग पूरी तरह से बंद कर दिया गया है और प्लॉस्टिक लिफाफों की बजाय मक्की व आलू के मटीरियल से बने लिफाफों का प्रयोग अनिवार्य कर दिया गया है, लेकिनअपने इस आदेश को जिला प्रशासन अमलीजामा नहीं पहना सका है। इसका सबसे बड़ा कारण प्लॉस्टिक लिफाफों का विकल्प मक्की व आलू या ज्यूट से बने लिफाफों की उपलब्धता ना होना है। लंबे समय से प्लॉस्टिक लिफाफों का प्रयोग हो रहा है, जिसको एकदम से रोक पाना आसान नहीं है पंजाब सरकार की तरफ से जिस कंपनी को मक्की व आलू के मटीरियल से बने लिफाफे बनाने की डील की गई थी, वह इतने लिफाफे नहीं बना सकी है कि पूरे जिले में प्लॉस्टिक लिफाफों का विकल्प मिल जाए। मक्की व आलू के मटीरियल से बने लिफाफे अपने आप एक महीने के बाद वेस्ट हो जाते हैं, लेकिन प्लॉस्टिक के लिफाफे इतने खतरनाक है कि सैंकड़ों वर्षों तक वेस्ट नहीं होते हैं। जमीन में दब जाने के बाद भी यह सैकड़ों वर्षों तक जैसे के तैसे रहते हैं। गटर में फंसने के बाद यह सीवरेज जाम कर देते हैं, जबकि जलाए जाने पर जहरीला धुंआं पैदा करते हैं। श्री हरिमन्दिर साहिब में मक्की व आलू के मटीरियल से बने लिफाफों का प्रयोग सफल माना जा रहा है, लेकिन जिला प्रशासन आम जनता के लिए रोजाना के प्रयोग में मक्की व आलू के मटीरियल से बने लिफाफे उपलब्ध नहीं करवा पाया है।

पांच दरियाओं की धरती में 250 फुट बोर पर भी पीने लायक पानी नहीं
जल प्रदूषण की बात करें तो पांच दरियाओं की धरती पंजाब में ज्यादातर इलाकों में पानी पीने के लायक नहीं रहा है। कभी जमाना था 10 फुट बोर करने पर पानी निकल आता था उसके बाद 50 से 70 फुट का बोर करने पर पीने लायक पानी मिल जाता था लेकिन मौजूदा समय में 250 फुट बोर करने पर भी पीने लायक पानी नहीं मिलता है। जानकारी के अनुसार 100 से 150 फुट बोर का पानी का टी.डी.एस. 500 से एक हजार के बीच आ रहा है जबकि कुछ इलाकों में तो 2 हजार से 3 हजार के बीच टी.डी.एस. आ रहा है। जब 300 फुट से ज्यादा का बोर किया जाता है तब पानी 100 से 200 का टी.डी.एस. लाता है। सरकार की तरफ से निगम के ट्यूबवैल्स के जरिए उपलब्ध करवाया जा रहा पानी पीने लायक रहता है, क्योंकि इसका बोर इस समय 600 फुट से ज्यादा होता है, लेकिन निगम के पानी में सीवरेज का पानी मिलकर आ रहा है यह शिकायत कई इलाकों में है। आमतौर पर जो लोग घरों में सबमर्सिबल पंप का प्रयोग कर रहे हैं उनको आरओ लगाना अनिवार्य हो चुका है। पानी में जहर घुलने का बड़ा कारण कारखानों की तरफ से गंदा पानी व जहरीले तत्व पानी में मिलाना माना जा रहा है, क्योंकि ज्यादातर कारखानों में वाटर ट्रीटमैंट प्लांट नहीं लगे हैं। यदि लगे हैं तो उनका प्रयोग नहीं किया जा रहा है।

धान की पराली से पाकिस्तान भी प्रदूषित
वायु प्रदूषण की बात करें तो पराली जलाने के मामले में पाकिस्तान भी कम नहीं है। अमृतसर जिले की पाकिस्तान बार्डर से सटी 153 किलोमीटर के इलाके व पंजाब के 553 किलोमीटर लंबे इलाके में फैंसिंग के पार खेती करने वाले पाकिस्तानी किसान भी पराली को जलाते हैं, जिससे बार्डर फैंसिंग के दोनों तरफ 20 से 25 फुट उंची स्मॉग बन जाती है।पंजाब व हरियाणा में नाड़ जलाए जाने से दिल्ली में धुंएं की चादर छा जाती है। यही कारण है कि मौजूदा हालात में दिल्ली में एक्यूआई 500 के आस-पास व कुछ इलाकों में इससे भी ज्यादा हो चुका है।

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