Edited By Vatika,Updated: 07 Jul, 2025 02:47 PM

15 साल पुराने पैट्रोल व 10 साल पुराने डीजल ‘वाहनों’ पर फ्यूल भरने तक पाबंदी लगा दी गई थी
अमृतसर (इन्द्रजीत): मोटर वाहन कानून में बदलाव के चलते जहां पर पिछले दिनों में राजधानी दिल्ली के बीच किसी भी 15 साल पुराने पैट्रोल व 10 साल पुराने डीजल ‘वाहनों’ पर फ्यूल भरने तक पाबंदी लगा दी गई थी। इसका कारण सरकारी तंत्रों द्वारा यही बताया जा रहा था कि प्रदूषण विशेषज्ञ व सरकारी तंत्र इसी बात को मानकर चलते हैं कि इतना पुराना व्हीकल प्रदूषण का कारण बनता है। हालांकि बाद में आम जनता के बीच बावेला हो जाने के उपरांत इस पर सरकार ने फिलहाल यू-टर्न ले लिया है। वहीं इसके कारण देश भर के करोड़ों की संख्या में ऐसे वाहनों के मालिक परेशान हैं कि न जाने कब कोई गाज़ गिर जाए। वहीं इसकी गहराई तक जाया जाए तो यदि यह कानून लागू हो जाता तो करोड़ों की संख्या में वाहन कबाड़ियों के पास पहुंच जाते हैं। बड़ी बात है कि इनमें 80-90 फीसदी से भी अधिक वाहन मालिकों को उन वाहनों से हाथ धोना पड़ता, जो सही चल रहे थे और उनके परिवार का एक सहारा भी थे। इस संबंध में एक सर्वेक्षण के दौरान अलग-अलग टैक्निशियनज़ ने अपने-अपने अनुभव के आधार पर इसके कारण बताते हुए, अपने टिप्स दिए हैं।
आबादी का एक बहुत बड़ा हिस्सा हो जाता कर्जदार
चार-पहिया वाहनों के पुराने कारोबारी संजय सागर गुप्ता का कहना है कि वास्तव में इस कानून को लागू करने में जल्दबाजी की जा रही थी। वहीं अधिकतर लोग अपने बजट को देखते हुए फोर-व्हीलर कम और टू-व्हीलर वाहन अधिक चलाते हैं। बहुधा लोग अपने परिवार के सदस्यों को किसी आपातकालीन स्थिति से निपटने के लिए अस्पताल आदि पहुंचाने, परिवार सहित विवाह-शादी अथवा सामुदायिक फंक्शन, बच्चों को छुट्टियों के लिए सैरगाह के लिए टूरिस्ट डैस्टिनेशन आदि पर ले जाने के लिए रखते हैं।
उधर, ग्रामीण मध्यम कारोबारी कार पर शहर में सप्ताह अथवा 15 दिन के बाद आकर अपनी कारोबारी खरीद करने और जरूरी घरेलू सामान लाने के लिए कारों का प्रयोग करते हैं। इनके लिए नई कार का होना कोई मायने और आकर्षण नहीं रखता। इसी बीच यदि कोई वाहन चालक दबाव में आकर अपना पुराना वाहन बेचकर किस्तों पर कार खरीद लेता है तो उसे लगभग 5 साल में बैंकों का कर्ज़ चुकाने के लिए 15 हजार रुपए प्रति महीना निरंतर बतौर किस्त और ब्याज के रूप में देना पड़ेगा। उधर आम जनता में बहुधा लोग ऐसे हैं जिनकी मासिक कमाई 40 से 50 हज़ार रुपए अथवा इससे भी कम है और वह अपने घर में कार भी रखते हैं। अब यदि ऐसे वर्ग का परिवार 15 हजार रुपए वाहन की किस्त दे, तो.. या तो वह कर्जदार हो जाएगा, या चार-पहिया वाहन के तौर पर अपना ‘सहारा’ खो बैठेगा। इस पर सरकार को गंभीरता से विचार करने की जरूरत है।
पुराना वाहन प्रदूषण का कारण नहीं, पिस्टन के रिंग होते हैं जिम्मेदार
दोपहिया वाहनों के विशेषज्ञों का कहना है कि किसी भी पुराने वाहन को इस आधार पर रिजैक्ट नहीं किया जा सकता कि वह प्रदूषण छोड़ता है। वर्षों से दोपहिया वाहनों के स्पेशलिस्ट मैकी सिंह पैराडाइज का कहना है कि यदि कोई नया वाहन भी किसी मामूली गैसकिट (जो कागज का बना होता है) के मामूली फट जाने के कारण इंजन का लुब्रिकेटिंग-ऑयल (मोबिल ऑयल) लीक कर देता है तो इसकी (इंजन-तेल) कमी से दोपहिया वाहन का पूरा इंजन अपनी लिमिट से अधिक हीट-अप हो जाता है। इसके बाद वाहन धुएं का प्रदूषण छोड़ना शुरू कर देता है। यह समस्या नए और पुराने दोनों वाहनों के लिए एक ही है। इसी प्रकार यदि कोई वाहन चालक अपने वाहन के पिस्टन रिंग अथवा हैड-गैस्किट बदलवा लेता है तो वाहन का पुनः स्तर जीरो प्रदूषण पर आ जाएगा। देखा जाता है कि अधिक तेज चलने वाले वाहन 1 साल के अंदर ही अपने मोटर बाइक को प्रदूषण के अंतिम कगार तक ले जाते हैं। उधर 40 वर्ष अथवा इससे भी अधिक पुराने वाहन बिना प्रदूषण के अब भी चल रहे हैं।
क्यों डैमेज हो जाते हैं पिस्टन रिंग?
प्रदूषण से ग्रस्त वाहन की एक ही पहचान है कि स्टार्ट होने व एक्सेलेरेटर देते ही वह साइलैंसर के रास्ते धुआं छोड़ना शुरू कर देता है। इसका मुख्य कारण यह है कि दो-पहिया वाहन रैश चलने, समय पर इंजन ऑयल की चैकिंग न करने, एयर फिल्टर साफ न करने व आयल लीकिंग के कारण ओवर-हीट हो जाता है। इस प्रक्रिया में उसके सिलेंडर के अंदर पिस्टन के ऊपर चढ़े रिंगज़ घिस कर पतले होते कमजोर हो जाते हैं, जिसके कारण वाहन के ‘मेंन इंजन चैंबर’ में भरा हुआ लुब्रिकेटिंग ऑयल (जो वाहन को प्रेशर देता है) रिंगों से प्रैशर-लीक होने के बाद कच्चा-लुब्रिकेटिंग ऑयल सिलेंडर के रास्ते से होता हुआ वाहन के ‘एग्जास्ट साइलेंसर’ तक धुएं के रूप में बदलकर बाहर पहुंच जाता है।
अधिक समय तक नहीं चल सकता प्रदूषण-युक्त वाहन : रिमैटलिंग-एक्सपर्ट
एक सशक्त तकनीक जो इस व्यवसाय के टैक्नीशियन जानते हैं का मानना है कि कोई भी वाहन जो प्रदूषण युक्त धुआं छोड़ता है, अधिक दिन नहीं चल सकता, क्योंकि जो वाहन धुआं छोड़ेगा तो वास्तव में इंजन का लुब्रिकेटिंग ऑयल जलेगा। बताना जरूरी है कि वाहन के ईंधन (यानि पैट्रोल) का धुआं नहीं होता। अब तर्क यह है कि यदि वाहन का ईंधन धुआं नहीं छोड़ता तो प्रदूषण का कारण तो अलग हुआ। इससे वाहन की समय-अवधि अथवा पुराने होने का एक प्रतिशत हाथ नहीं होता।
इंजन रिमेटलिंग/डिस-मेटल्स करने वाले विशेषज्ञ नरेंद्र सिंह धांजल का कहना है कि प्रदूषण का कारण बन जाने के उपरांत वाहन अधिक देर तक चल नहीं सकता क्योंकि किसी भी समय इंजन के सीज होने का खतरा होता है और मजबूरन या तो वाहन चालक को इस परिस्थिति में वहां बंद करना पड़ता है अथवा रिपेयर करवानी पड़ती है। उधर, वाहन को सही पोजीशन में लाने के लिए रिंग व पिस्टन बदलने के साथ-साथ, सिलेंडर की बोएरिंग, वाल्व-शीटिंग, गास्केट बदलते हुए वाहन के इंजन को दोबारा असेंबल करने पर प्रदूषण की समस्या तुरंत समाप्त हो जाती है। इस पूरी प्रक्रिया में मात्र दोपहिया वाहन को एक दिन लगता है अथवा कोई अधिक खर्च भी नहीं आता मात्र मेहनत ही काम आती है। वही चार-पहिया वाहनों में रिंग और हैड गास्केट ही बदलने पड़ते हैं इसमें मात्र 2 दिन लगते हैं।