कैप्टन सरकार के अढ़ाई सालः कुछ नाकामियां तो कुछ अच्छे फैसले,पर वायदे अभी भी अधूरे

Edited By swetha,Updated: 17 Sep, 2019 10:16 AM

two and a half years of captain government

यह वायदे पूरे नहीं कर पाई कैप्टन सरकार

जालंधरः पंजाब में कैप्टन अमरेन्द्र सिंह की सरकार को सत्ता में आए अढ़ाई साल बीत गए हैं । अब उनकी सरकार के पास इतना ही समय शेष बचा है। पंजाब सरकार 2017 में विधानसभा चुनावों के दौरान अपने घोषणा-पत्र में किए गए वायदों को पूरा करने में कितनी सफल हो पाई है, इस संबंध में  पंजाब केसरी ने विश्लेषणात्मक रिपोर्ट तैयार की है। अपनी आधी टर्म पूरी करने पर बीते दिनों कैप्टन अमरेन्द्र सिंह ने कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गांधी के साथ मिलकर 161 में से 140 वायदे पूरे करने का दावा किया है। हालांकि उनकी सरकार के कार्यकाल में कुछ नाकामियां भी रही हैं, लेकिन उनकी सरकार ने कुछ अच्छे फैसले भी लिए हैं। पेश है विश्लेषणात्मक रिपोर्ट-

वायदे पूरे, मुद्दे कायम
पंजाब में कैप्टन सरकार के अढ़ाई वर्ष के कार्यकाल पर असंतुष्टि व्यक्त करते हुए पंजाब प्रदेश कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष व राज्यसभा सदस्य प्रताप सिंह बाजवा एवं शमशेर सिंह दूलो सवाल उठा चुके हैं। वहीं कैप्टन सरकार की अपनी ही पार्टी में कारगुजारी सवालों के घेरे में होने के बावजूद विपक्षी दल विधानसभा में मजबूत भूमिका नहीं निभा पा रहे। मुख्य विपक्षी पार्टी ‘आप’ में गुटबाजी पैदा होने के बाद भी  उसका प्रभाव कम हुआ है। 

यह वायदे पूरे नहीं कर पाई कैप्टन सरकार
कैप्टन सरकार द्वारा किए गए वायदों के अनुसार किसानों की मुकम्मल कर्जा माफी, घर-घर रोजगार जैसे मुद्दों पर सत्तापक्ष को विपक्ष मजबूती से घेर नहीं पा रहा। बिजली कीमतों में लगातार वृद्धि, शांति व्यवस्था तथा नशों जैसे मुद्दों को लेकर भी विपक्ष अभियान लामबंद नहीं कर पा रहा। अवैध माइनिंग का मुद्दा उसी तरह बरकरार है। श्री गुरु ग्रंथ साहिब बेअदबी और बरगाड़ी गोलीकांड के मुद्दे अहम मोड़ पर पहुंच कर भी विपक्ष के एकजुट न होने के कारण बीच में ही लटक चुके हैं। ऐसे अहम मुद्दों पर भी विपक्ष एकजुट नहीं हो पाया और विधानसभा में एक-दूसरे की टांग खींचने का प्रयास होता है। जहां आम आदमी पार्टी वर्तमान में 3-4 गुटों में बंटी हुई है, वहीं विपक्षी पार्टी अकाली दल पर कैप्टन सरकार से मिले होने के आरोप लगते हैं। 

बिखरे विपक्ष का लाभ मिला सत्तापक्ष को
वहीं विपक्षी दल अहम मुद्दों को लेकर अहम भूमिका नहीं निभा पा रहे। सुखबीर बादल के अकाली दल का विधानसभा में नेता रहते समय भी पार्टी अपनी शक्ति नहीं दिखा पाई और अब सुखबीर बादल के सांसद बनने के बाद परमिंदर ढींडसा को पार्टी विधायक दल का नेता बनाया गया है। बेशक ढींडसा पूर्व वित्त मंत्री व पढ़े-लिखे होने के कारण अच्छा बोल लेते हैं परंतु पार्टी के अन्य विधायकों में से कुछ को छोड़कर ज्यादा का ज्ञान इतना अच्छा नहीं है। इस तरह बिखरे विपक्ष का सत्तापक्ष को लाभ मिल रहा है और लोगों के असली मुद्दे नजरअंदाज हो रहे हैं।                  

अढ़ाई वर्ष में रहे नेता विपक्ष 

  1.  एच.एस. फूलका 16 मार्च 2017 से 9 जुलाई  2017 तक 
  2.  सुखपाल खैहरा  9 जुलाई 2017 से 26 जुलाई 2018 तक
  3.  हरपाल सिंह चीमा 27 जुलाई से हैं नेता विपक्ष

बड़े कदम 

  •  बच्चियों से दुष्कर्म पर फांसी की सजा 
  •  ड्रग तस्करों के लिए मौत की सजा की मांग

 बड़े फैसले 

  •  8,886 शिक्षक नियमित करना
  •   3 लाख लोगों का कर्ज माफ, जिनमें खेतीहर मजदूर और भूमिहीन किसान शामिल हैं
  •  42 लाख परिवारों को प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना के तहत लाभ देना  सराहनीय काम 
  •   लाल बत्ती कल्चर खत्म करना
  •  बुजुर्ग को 750 रुपए मासिक पैंशन मिलनी शुरू
  •  सरकारी स्कूलों में नर्सरी और के.जी. की क्लासेज शुरू करना
  •  सभी ब्लॉक के दो सरकारी स्कूलों में अंग्रेजी मीडियम से पढ़ाई करवाना
  •  लड़कियों को प्री नर्सरी से पीएच.डी. तक फ्री में पढ़ाई करवाने का ऐलान

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