Punjab BJP के कागजी 'शेर' ही कर गए पार्टी को 'ढेर', 'नकली खुशी' से लगा रहे मरहम

Edited By Vatika,Updated: 19 Jul, 2024 12:17 PM

punjab bjp loksabha election

2024 का लोकसभा चुनाव ऐतिहासिक चुनाव होगा, कुछ इस तरह के दावे भाजपा के नेता पिछले कुछ महीनों में करते देखे जा रहे थे।

जालंधर(अनिल पाहवा): 2024 का लोकसभा चुनाव ऐतिहासिक चुनाव होगा, कुछ इस तरह के दावे भाजपा के नेता पिछले कुछ महीनों में करते देखे जा रहे थे। उनके मुंह से निकले ये शब्द अब सच होते दिख रहे हैं। भाजपा में इन चुनावों के बाद वो सब देखने को मिल रहा है, जो शायद भाजपा के अंदर इतिहास में पहले नहीं हुआ होगा। किसी राज्य में तो सरकार का विरोध हो रहा है तो पंजाब जैसे राज्य में हार के कारणों पर मंथन की बजाय पार्टी के नेताओं को ऐसा झटका लगा है कि पूरी तरह से सुन्न हो गए हैं। किसी के मुंह से कोई शब्द नहीं निकल रहा और कोई भी हार के कारणों पर मंथन नहीं करना चाहता। भाजपा पंजाब में पहली बार नहीं हारी है, लेकिन इस बार की हार इसलिए ज्यादा चुभ रही है क्योंकि पार्टी के कागजी शेरों ने दावे बहुत बड़े कर दिए, लेकिन उन दावों को पूरा करने के लिए किया कुछ नहीं और पार्टी का 'एक्सपैरीमैंट' भी फेल कर दिया।

पार्टी के 'कागजी शेर' जमीनी हकीकत से बेखबर
पंजाब में जिन कागजी शेरों की बात चल रही है, वो अकसर पार्टी में अहम पदों पर तैनात लोग हैं, जिन्होंने किया कुछ नहीं और प्रचार इतना कर दिया कि जैसे 13 की 13 सीटें भाजपा के खेमे में आ गई। राज्य के पार्टी अध्यक्ष से लेकर अन्य पदों पर तैनात सभी नेता केवल अखबारों में खबरें लगवाने तक ही सीमित रहे, किसी भी कागजी शेर ने इस स्तर की  हिम्मत नहीं दिखाई कि वह फील्ड में जाकर जमीनी हकीकत जान सके और हाईकमान को उसकी जानकारी पहुंचा सके। जमीनी हकीकत जानकर संभवतः हाईकमान कोई अलग स्ट्रैटेजी अपनाकर सीट जीतने की कोशिश कर सकता था, लेकिन ऐसा नहीं हुआ और पार्टी पंजाब में औंधे मुंह गिरी।

बाहरी संगठन महामंत्री नहीं पकड़ पा रहे पंजाब की नब्ज
पंजाब में भाजपा की स्थिति इसलिए भी मजबूत नहीं हो पा रही, क्योंकि पार्टी को कोई ऐसा नेता नहीं मिल रहा, जो पंजाब की राजनीतिक स्थिति के साथ-साथ भौगोलिक स्थिति भी जानता हो। राज्य में पिछले काफी समय से संगठन महामंत्री के तौर पर ऐसे लोगों को लगाया जा रहा है, जिन्हें न तो पंजाब की पृष्ठभूमि पता है और न ही उन्हें पंजाब की राजनीतिक समझ है। भौगोलिक स्थिति तो वैसे ही दूर की बात है। ऐसे में अगर कोई नेता आकर संगठन मंत्री को किसी इलाके की रिपोर्ट भी देगा तो शायद संगठन मंत्री के लिए बाहरी नेता होने के कारण उस पर काम करना संभव नहीं रह जाएगा। इससे पहले पंजाब में संगठन मंत्री के तौर पर कई ऐसे नेताओं को लगाया जाता रहा है, जिन्हें पंजाब की समझ होती थी, लेकिन पिछले काफी समय से पंजाब भाजपा ऐसे नेताओं से वंचित है।

चंद पत्रकारों से सैटिंग को कहते हैं मीडिया मैनेजमैंट
पंजाब में भाजपा के सफल न होने के पीछे एक बड़ा कारण यह भी है कि पार्टी की नीतियों और योजनाओं को मीडिया के माध्यम से आम जनता तक पहुंचाया ही नहीं जा पा रहा। पंजाब के अधिकतर भाजपा नेताओं ने चंद पत्रकारों या मीडिया के लोगों के साथ सैटिंग कर रखी है तथा इनके माध्यम से पार्टी की नीतियों को लोगों तक पहुंचाने की बजाय सैल्फ अप्रैजल तक ही सीमित रहते हैं। इसी को पंजाब भाजपा के नेता मीडिया मैनेजमैंट कहते हैं। कुछ भाजपा के प्रदेश स्तर के नेताओं ने तो स्थानीय चैनलों से सांठगांठ कर रखी है, लेकिन आम जनता तक उनकी बात नहीं पहुंच पा रही। इस पर्सनल सैटिंग के चलते पार्टी का बंटाधार हो रहा है, लेकिन भाजपा के नेताओं को इसकी कोई चिंता नहीं है। उन्हें बस इतनी ही चिंता होती है कि किसी स्थानीय सोशल मीडिया चैनल का उनकी खबर से संबंधित लिंक 100-200 लोग पढ़ लें।

पार्टी की 'बैकबोन' कहे जाने वाले मोर्चों पर इंपोर्टिड नेताओं का कब्जा
पंजाब में भाजपा में इस समय अपने उतने वर्कर तथा पदाधिकारी नहीं है, जितने उन्होंने इंपोर्ट कर लिए हैं। पार्टी में इंपोर्टिंड नेताओं की तादाद बढ़ने के कारण पार्टी का अपना वर्कर घुटन महसूस करने लगा है। हैरानी की बात है कि जिस पार्टी के वर्कर ने भाजपा को 2 से 23 सीटों तक पहुंचाया था, वो सारे का सारा वर्कर घर बैठा है और जिन नेताओं ने अपनी मातृ पार्टी का हाल बेहाल किया, उन्हें भाजपा की कमान सौंप दी और पार्टी 23 से 2 सीटों पर आ गई। हाल यह है कि पार्टी के प्रमुख मोर्चे, जो किसी समय भाजपा की 'बैकबोन' हुआ करते थे, उन पर आज कल दूसरे दलों से आए नेता न केवल विराजमान हैं, बल्कि काम के नाम पर भी खानापूर्ति हो रही है।

जालंधर उपचुनाव में बयानबाजी के माहिर रहे खामोश
हाल ही में जालंधर के वैस्ट हलके में हुए विधानसभा उपचुनाव के दौरान भी भाजपा नेताओं की स्थिति बेहद खराब दिखी। पार्टी के उम्मीदवार शीतल अंगुराल ने पंजाब सरकार से संबंधित कुछ लोगों पर आरोप लगाए, लेकिन एक भी भाजपा नेता ऐसा नहीं था, जिसने शीतल अंगुराल के साथ इन आरोपों में हां में हां मिलाई हो। बयानबाजी करने के माहिर भाजपा के नेता इस पूरे मुद्दे पर चुप रहे और जबकि भाजपा इस मुद्दे को लेकर बेहतर तरीके से मैदान में उतर सकती थी और सरकार को घेरा जा सकता था। लेकिन पार्टी के 'सो काल्ड' कर्ता धर्ता चुप्पी साधे रहे।

वोट भले ही कम लेते, कोई सीट तो जीत लेते
भाजपा पंजाब में 7 सालों में 7 अलग-अलग चुनाव हार चुकी है, लेकिन पार्टी इसी बात पर ताली बजाने से नहीं थम रही कि पार्टी का वोट प्रतिशत बढ़ गया है। पार्टी दावा कर रही है कि वह राज्य में 6 प्रतिशत पर हुआ करती थी, लेकिन अब करीब 18 प्रतिशत पार्टी का वोट आधार हो गया है। हैरानी की बात है कि वोट प्रतिशत को लेकर इतनी उछल रही पार्टी के नेता यह भूल गए हैं कि 2014 के लोकसभा चुनावों में भाजपा का वोट प्रतिशत 8.70 था और पार्टी ने 2 सीटें जीती थीं। 2019 में भाजपा का पंजाब में वोट शेयर 9.63 था और पार्टी ने 3 में से 2 सीटें जीती थीं। शर्म की बात है कि 2024 के चुनावों में पार्टी करीब 18 प्रतिशत वोट लेकर एक भी सीट नहीं जीत पाई और पार्टी इसी बात पर तालियां बजा रही है। दिलचस्प बात यह भी है कि उक्त दोनों चुनावों में पंजाब में भाजपा 3-3 सीटों पर ही चुनाव लड़ी थी और इस बार सभी 13 सीटों पर पार्टी ने अपने उम्मीदवार उतारे।

IPL
Royal Challengers Bengaluru

190/9

20.0

Punjab Kings

184/7

20.0

Royal Challengers Bengaluru win by 6 runs

RR 9.50
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!