पराली नहीं, पैट कोक है प्रदूषण का कारण

Edited By swetha,Updated: 15 Oct, 2018 10:46 AM

pollution reason

पंजाब के किसानों द्वारा पराली जलाए जाने से उठे विवाद के बीच एक दूसरा प्रश्न उठ कर सामने आया है कि सरकार प्रदूषण की समस्या को किसानों  पर डालकर उन अमीर उद्योगपतियों को बचा रही है जो भारी प्रदूषण पैदा करने के लिए जिम्मेदार हैं।

अमृतसर (इन्द्रजीत): पंजाब के किसानों द्वारा पराली जलाए जाने से उठे विवाद के बीच एक दूसरा प्रश्न उठ कर सामने आया है कि सरकार प्रदूषण की समस्या को किसानों  पर डालकर उन अमीर उद्योगपतियों को बचा रही है जो भारी प्रदूषण पैदा करने के लिए जिम्मेदार हैं।

विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा जारी किए गए आंकड़ों के मुताबिक किसानों द्वारा जलाए जाने वाली पराली के कारण पैदा हुआ प्रदूषण कारखानों में जलाए जा रहे पैट कोक से साढ़े 8 गुना कम है, वहीं वाहनों का प्रदूषण खेतीबाड़ी के प्रदूषण से 3.2 गुना अधिक है जबकि सरकार इसके लिए किसानों को जिम्मेदार ठहरा कर पूरे प्रदेश का ठीकरा उनके सिर पर  फोड़ रही है।

ऐसे में इस प्रदूषण के लिए पराली नहीं बल्कि पैट कोक मुख्य कारण है। वहीं किसान नेताओं ने सरकार द्वारा किसानों पर केस दर्ज करने और जुर्माना डालने पर कड़ी आपत्ति जताते हुए कहा है कि सरकार इसका विकल्प ढूंढे। इस संबंध में किसान संघर्ष कमेटी के प्रधान सतनाम सिंह पन्नू, जम्हूरी किसान सभा के अध्यक्ष रतन सिंह और किसान नेता सतनाम सिंह अजनाला ने कहा कि सरकार किसानों को प्रति एकड़ 6 हजार रुपए अथवा प्रति टन 200 रुपए की अदायगी करे। किसान नेताओं ने चेतावनी दी कि यदि सरकार ने इस मांग को नहीं माना तो वे संघर्ष पर उतर आएंगे। 

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कारखानों और खेतीबाड़ी का प्रदूषण

डब्ल्यू.एच.ओ. द्वारा जारी किए गए आंकड़ों के अनुसार प्रदेश भर में खेतीबाड़ी द्वारा पैदा किया गया प्रदूषण, जिनमें पराली के अतिरिक्त घास फूस, वेस्ट, गोबर, लकड़ी, कच्चा कोयला इत्यादि सभी कुछ मिला लिया जाए तो कुल प्रदूषण का 8 प्रतिशत बनता है। वहीं कारखानों से पैदा होने वाला प्रदूषण प्रदेश में कुल प्रदूषण के अनुपात में 51 प्रतिशत है जोकि किसानों द्वारा पैदा किए प्रदूषण से 8.5 गुना अधिक है। 

कारखानों में ईंधन की औसत
प्रदूषण विभाग के सूत्रों का कहना है कि बड़े कारखानों में प्रति इकाई 15 टन (15 हजार किलो) पैट कोक प्रतिदिन जलाया जाता है और बड़े यूनिटों में पंजाब भर में सैंकड़ों ऐसे कारखाने हैं जो 2 लाख से 4 लाख किलोग्राम पैट कोक प्रतिदिन जलाते हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि 1 टन पैट कोक के जलने से पैदा हुए प्रदूषण से 5 हजार वाहनों से अधिक प्रदूषण फैलता है जबकि पंजाब के अंदर इस समय पैट कोक जलाने वाले कारखानों की संख्या 1 हजार के करीब है और सस्ता होने के कारण कारखानेदार प्रदूषण को बढ़ावा दे रहे हैं। 

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ओजोन परत के लिए हानिकारक है प्रदूषण 
कैमिस्ट्री के विद्वान प्रो. एम.सी. दुग्गल ने बताया कि कार्बन मोनोऑक्साइड, सल्फर डाईऑक्साइड और नाइट्रोजन डाईऑक्साइड ऐसे खतरनाक कैमिकल हैं जो न केवल मानव शरीर के लिए हानिकारक अपितु प्रदेश भर में वृक्ष, पौधे, फसल, पशु-पक्षी, जल इत्यादि समस्त चीजों को प्रभावित करते हैं। 

उन्होंने कहा कि इन तत्वों से पैदा हुआ नाइट्रिक एसिड और सल्फर एसिड ही इकट्ठा होकर एक कालांतर के उपरांत तेजाबी वर्षा का कारण बनता है जो मानव जीवन के लिए एक काल बन जाता है। उन्होंने कहा कि वर्तमान समय में वायुमंडल के बीच नाइट्रोजन 78.08, ऑक्सीजन 20.93, सी.ओ.-टू 0.03, ऑर्गन गैस 0.93 के आंकड़े पर है किन्तु फैक्टरियों और वाहनों के प्रदूषण से खतरनाक तत्व इस ग्राफ को बिगाड़ रहे हैं जोकि ओजोन परत व पृथ्वी के वायुमंडल के लिए हानिकारक है। 

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कैसा प्रदूषण निकलता है कारखानों से
विशेषज्ञों के अनुसार कारखानों में जलाए जाने वाले पैट कोक से कार्बन मोनोऑक्साइड, सल्फर डाईऑक्साइड, नाइट्रोजन डाईऑक्साइड इत्यादि खतरनाक तत्व निकलते हैं जोकि सेहत के लिए हानिकारक हैं। कारखानों से निकलने वाला सल्फर पिछले वर्षों में सामान्य से कुछ अधिक विभिन्न तत्वों में क्रमश: 17/18/1616 के अनुपात पर निकलता था जोकि इस वर्ष में क्रमश: 19/19/18/21 के अनुपात से डेंजर जोन में पहुंच रहा है, जबकि खेतीबाड़ी से निकलने वाला प्रदूषण इन तीनों तत्वों से रहित होता है इससे पैदा होने वाले धुएं के बाद हस्क की राख सिर में पड़ती है और कपड़ों में खराबी का कारण बनती है जबकि वाहन चलाने वालों के कभी कभार आंखों में पड़ जाती है लेकिन इसका कोई रासायनिक प्रभाव अभी तक सामने नहीं आया। 

वाहनों का प्रदूषण 
वाहनों से पैदा होने वाले धुएं से कार्बन मोनोऑक्साइड और सी.ओ.-2 ग्रीन हाऊस नामक गैस निकलती है। यह भी शरीर के लिए अत्यंत घातक है। इसके उपरांत नाइट्रिक एसिड भी पैदा करती है। बड़ी बात है कि पैट्रोल चलित वाहनों में प्रदूषण कम होता है और डीजल वाहनों से अधिक किन्तु शहरी इलाकों में पैट्रोल चलित वाहनों की संख्या 73 प्रतिशत व डीजल चलित वाहनों की संख्या 17 प्रतिशत है जबकि जी.टी. रोड का आंकड़ा अलग है। इस अनुपात से यदि शहरी क्षेत्रों में प्रदूषण का ग्राफ बढ़ता है तो इसका सीधा अर्थ है कि कारखाने इस प्रदूषण के अधिक जिम्मेदार हैं। 

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क्या कहना है प्रदूषण बोर्ड के चेयरमैन का
इस संबंधी पंजाब प्रदूषण बोर्ड  के चेयरमैन एस.एस. मरवाहा  ने कहा कि सरकार किसानों की समस्या को हल करेगी, कल मुख्यमंत्री से मीटिंग भी हुई है। किसानों को कटाई के दौरान ऐसी मशीनें मिल रही हैं जो पराली के छोटे-छोटे टुकड़े कर देंगी और उसी को जमीन में दोबारा दबा कर इस पराली को खाद की तरह इस्तेमाल किया जाएगा। किसानों पर मुकद्दमे नहीं होने चाहिएं बल्कि किसानों को प्रोत्साहित करना चाहिए। कारखानों में जलाए जाने वाले पैट कोक को सख्ती से रोका जाएगा। वाहनों में गलत ईंधन का प्रयोग करने वाले वाहनों के भी चालान किए जाएंगे।  

प्रदूषण के खिलाफ इस तरह जुड़ें मुहिम से

पंजाब केसरी द्वारा प्रदूषण के खिलाफ शुरू की गई मुहिम से सैंकड़ों लोग जुड़ रहे हैं। इस मुहिम से जुडऩे व सुझाव देने के लिए support@punjabkesari.net.in पर सम्पर्क करें। 

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