जालंधर शहर के विकास के लिए CM की ग्रांट का दुरुपयोग, हुई जांच तो कई अफसर होंगे सस्पेंड

Edited By Kalash,Updated: 02 Sep, 2023 03:47 PM

misuse of cm s grant

मुख्यमंत्री भगवंत मान ने जालंधर शहर के विकास हेतु करीब एक साल पहले जालंधर निगम को 50 करोड रूपए की ग्रांट जारी की थी

जालंधर : मुख्यमंत्री भगवंत मान ने जालंधर शहर के विकास हेतु करीब एक साल पहले जालंधर निगम को 50 करोड रूपए की ग्रांट जारी की थी परंतु शहर में अभी तक सी.एम. की ग्रांट से ज्यादातर काम हो ही नहीं पाए। पहले तो एस्टीमेट बनाने में ही नगर निगम के अधिकारियों ने काफी समय खराब कर दिया। जब एस्टीमेट बने तो उसमें करोड़ों रुपए के काम ऐसे डाल दिए गए जिनकी कोई जरूरत ही नहीं थी। सी.एम. की ग्रांट का ऐसा दुरुपयोग देखकर चंडीगढ़ बैठे अधिकारियों तक जब शिकायतें पहुंची तो लोकल बॉडीज और पी.आई.डी.बी. के वरिष्ठ अधिकारियों की ड्यूटी लगाकर कुछ एस्टीमेट चैक करवाए गए। इस दौरान भारी गड़बड़ी सामने आई।

अभी निगम अधिकारियों द्वारा बनाए गए एस्टीमेटों का मामला हल भी नहीं हुआ था कि सी.एम. की ग्रांट से पूरे हो चुके कामों की क्वालिटी को लेकर कई तरह के सवाल खड़े होने लगे। चंडीगढ़ से आए चीफ इंजीनियर ने करीब आधा दर्जन स्थानों पर जो मौके देखे, उन कामों में कई कमियां पाई गई जिस कारण उन्होंने सैंपलिंग करवाने और लेबोरेटरी की रिपोर्ट चंडीगढ़ भेजने के निर्देश दिए।

पता चला है कि निगम अधिकारियों ने सी.एम की ग्रांट से हुए कामों की घटिया क्वालिटी को देखते हुए अभी तक सेंपलिंग नहीं की है और न ही लैब टैस्ट करवाए हैं। माना जा रहा है कि यदि सी.एम. की ग्रांट से जालंधर के विभिन्न क्षेत्रों में हुए करोड़ों रुपए के कामों की जांच एन.आई.टी. जालंधर या पी.ई.सी. (पंजाब इंजीनियरिंग कॉलेज) चंडीगढ़ से करवा ली जाए तो जहां नगर निगम के कई अधिकारी सस्पेंड हो सकते हैं वही निगम के ठेकेदारों पर भी आफत आ सकती है और उनमें से भी कईयों के ब्लैक लिस्ट होने की संभावना है।

थर्ड पार्टी एजेंसी द्वारा दिए प्रमाण पत्रों की भी जांच होनी चाहिए

पिछले कई सालों से जालंधर निगम में विकास कार्यों की क्वालिटी बाबत जांच थर्ड पार्टी एजेंसी द्वारा करवाई जा रही है जिसे इस काम के लिए भारी-भरकम राशि अदा की जाती है। पता चला है कि ज्यादातर ठेकेदारों ने इस थर्ड पार्टी एजेंसी से सेटिंग कर रखी है, जिस कारण क्वालिटी को लेकर कई समझौते तक होने के समाचार मिलते रहते हैं। पिछले समय की बात करें तो शायद ही लुक बजरी से बनी कोई सड़क एक साल से ज्यादा चली हो। सीमैंट से बनी सड़कें भी 3-4 साल बाद अक्सर टूट जाती हैं। ऐसे में थर्ड पार्टी एजेंसी ने क्या जांच की होगी, इसका भी पता लगाया जाना चाहिए।

फ्लाइंग ऐश वाला सीमैंट इस्तेमाल करते रहे ठेकेदार

पता चला है कि सी.एम की ग्रांट से हुए ज्यादातर कामों और उससे पहले हुए विकास कार्यों में ज्यादातर ठेकेदार फ्लाइंग ऐश मिक्स सीमैंट का इस्तेमाल करते रहे जबकि पंजाब सरकार द्वारा जो शेड्यूल रेट फिक्स किए गए हैं वह उस सीमेंट के हैं जिसमें फ्लाइंग ऐश मिक्स नहीं होती। क्योंकि फ्लाइंग ऐश वाला सीमेंट थोड़ा सस्ता होता है और फिनिशिंग बढ़िया देता है, इसलिए ज्यादातर ठेकेदार फ्लाइंग ऐश युक्त सीमैंट ही इस्तेमाल करते हैं। इसका नुक्सान यह होता है कि सड़क बनने के बाद उसमें से हल्की-हल्की धूल उठती ही रहती है जो आसपास के दुकानदारों व राहगीरों और निवासियों को काफी परेशान करती है। नगर निगम के अधिकारियों ने आज तक सीमेंट से बनी सड़कों के इस एंगल की जांच नहीं की है।

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