क्या पढ़ी-लिखी, कमाने योग्य पत्नी भी गुजारा भत्ता की हकदार? पढ़ें High court का अहम फैसला

Edited By Vatika,Updated: 09 Aug, 2024 04:19 PM

is an educated earning wife also entitled to alimony

गुजारे भत्ते को लेकर निचली अदालत के आदेश के खिलाफ दायर याचिका पर फैसला सुनाते

चंडीगढ़: गुजारे भत्ते को लेकर निचली अदालत के आदेश के खिलाफ दायर याचिका पर फैसला सुनाते हुए सत्र न्यायालय ने कहा कि पढ़ी-लिखी स्नातक पत्नी के कमाने में सक्षम होने का हवाला देकर गुजारा भत्ता देने से इनकार करने का कोई आधार नहीं है। इसके साथ ट्रायल कोर्ट द्वारा निर्धारित की गई रखरखाव राशि को बढ़ा दिया।

सेशन कोर्ट ने साथ ही कहा कि सब कुछ छोड़कर यह एक पति की नैतिक और वैधानिक जिम्मेदारी है कि वह अपनी पत्नी की देखभाल करे। पति अपनी पत्नी और बच्चों की देखभाल की जिम्मेदारी से इस आधार पर बच नहीं सकता कि उसके पास आय का कोई स्रोत नहीं है। इससे पहले याचिकाकर्ता पत्नी की ओर से भरण-पोषण (गुजारे- भत्ते) के लिए उसके आवेदन पर निचली अदालत (ट्रायल कोर्ट) ने फैसला करते हुए  उसके पति को निर्देश दिया था कि जब तक उसकी पत्नी की दोबारा शादी न हो जाए तब तक वह उसे 2 हजार रुपए प्रति माह और दोनों नाबालिग बच्चों के वयस्क होने तक 2 हजार रुपए प्रति माह का भुगतान करेगा। इस फैसले के बाद पत्नी ने ट्रायल कोर्ट के फैसले पर पुनरीक्षण करते हुए राशि बढ़ाने के लिए सत्र न्यायालय में दायर पुनरीक्षण याचिका पर सत्र न्यायालय ने ये फैसला सुनाया है।

दायर याचिकाकर्ता ने अपनी याचिका में कोर्ट को बताया कि उसका पति एक मैकेनिक की दुकान चलाकर 50 र हजार रुपए प्रति माह कमाता है जबकि उसके पास अपना और अपने नाबालिग बच्चों के भरण-पोषण के लिए आय नका कोई स्रोत नहीं था। इस वजह से न वह अपने रिश्तेदारों की दया पर निर्भर न थी। याचिका में उसकी ओर से दावा किया गया कि उसका पति उसकी और उसके बच्चों की देखभाल करने के लिए बाध्य है। वहां पति ने पत्नी की पुनरीक्षण याचिका का विरोध करते हुए कहा कि वह स्कूटर मैकेनिक था और उसके पास देखभाल के लिए बूढ़े माता-पिता भी है। वह लोन और बीमा पॉलिसियों की किश्तें भी चुका रहा था। पति ने पुनरीक्षण याचिका को यह कहते हुए खारिज करने की मांग कि उसकी पत्नी पढ़ी-लिखी स्नातक है। नर्सिंग के साथ ही ब्यूटी पार्लर का कोर्स भी कर रखा है, इस लिए वह कमाने के लिए योग्य भी है।

ट्रायल कोर्ट के आदेश को किया संशोधित

दोनों पक्षों की दलीलों को सुनने और सामने आए तथ्यों के बाद सत्र न्यायालय ने कहा कि शैक्षणिक योग्यता हासिल करने और पैसा कमाने के लिएशिक्षा का इस्तेमाल करने के बीच बहुत बड़ा अंतर है। अदालत ने कहा कि यदि एक पत्नी स्नातक होकर कमाने में सक्षम है तो वह उसे गुजारा भत्ता देने से इनकार करने का आधार नहीं है, क्योंकि वर्तमान मामले में प्रतिवादी कुछ भी नहीं कमा रहा है। याचिका को आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए ट्रायल कोर्ट द्वारा पारित आदेश को इस हद तक संशोधित किया जाता हैकि याचिकाकर्ता पत्नी का भरण-पोषण हो सके। सत्र न्यायालय ने ट्रायल कोर्ट द्वारा पारित आदेश को संशोधित करते हुए पत्नी की दूसरी शादी होने तक ट्रायल कोर्ट द्वारा निर्धारित किए गए गुजारे भत्ते को 2 हजार से बढ़ाकर 4 हजार रुपये कर दिया है। वहीं अदालत ने दोनों बच्चों को 2 हजार रुपए प्रति माह गुजारे भत्ते का हकदार करार दिया हैं।

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